Monday, October 1, 2012

जागृति के पंखों से उड़ान और पुलिस

जागृति के पंखों से उड़ान - 
अपने हकों के लिए जनमानस के विचारों का  द्वंद्व अब मुखर हो क्रियान्वित होता नज़र आ रहा है......
अब अपने हकों की लड़ाई लड़ना सहज सा नज़र आने लगा है सब को...
अपने आप पर confidence  बढ़ रहा है जनता का....
एक राह सुझाई थी गाँधी जी ने और अब अन्ना जी ने......
विरोध के मौन स्वर अब मुखर हो सड़कों पर उतरने लगे हैं अपने हकों के लिए......
अब सब जनता को ये एहसास होने लगा है कि ये मुल्क हमारा भी है...न सिर्फ हमारे आकाओं का...
अब हम अपनी बातें शांतिपूर्ण प्रदर्शन द्वारा मनवा सकतें हैं...
बस 
राह में रुकावट बना है.....
इन आकाओं का दंभ.....
इन की मानसिक रुग्णता .....
ये दंभ कि ये ही इस देश के करता-धर्ता और पालनहार हैं...
इन की मर्ज़ी के बिना पत्ता न हिलने पाए....

ये अपने आप को ६५ सालों से मालिक मानते आयें हैं 
और जनता को ज़रखरीद ग़ुलाम जिस का काम ५ सालों में एक बार वोट देने तक सीमित है...
जनता भी इसी में खुश सी थी...
परन्तु..
ब्रह्मांडीय मस्तिष्क से उत्पन्न हुई बदलाव की लहरियों ने अपने असर दिखाया और दबा ढका विरोध अब मुखर हो उठा है...
पहले हम अंग्रेजों के हाथों कुचले जाते थे और अब अपने ही अंग्रेजी मानसिकता के गुलाम प्रशासन और पुलिस द्वारा.....
जनता को हक़ न विदेशी राज में था और न ही स्वयं जनता के राज में....
प्रशासन में पुलिस का रोल ......
अगर इस की विवेचना की जाए तो इस के दो चेहरे उजागर होते हैं...
एक सरकार की कठपुतली का 
और दूसरा 
जनता को दबाने वाले का....
अपनी मांगों को ले कर शांतिपूर्ण आन्दोलन करने निकली जनता को सरकार पुलिसिया तांडव से कुचलने का प्रयास करती  है.....
कई बार ये देखा जाता है कि  आन्दोलन शान्ति पूर्ण  होता है... व्यवस्था का ज़िम्मा पुलिस का होता है ...परन्तु पुलिस व्यवस्थाओं का हवाला दे कर बर्बर हो जाती है....
विरोध स्वरुप 
प्रदर्शन कारी उग्र हो जाते हैं,
इस उग्रवाद का समर्थन कतई नहीं किया जा रहा  है....
परन्तु जैसा कहा जाता है न every action has a reaction....
इसी प्रकार किसी उग्र हुए आन्दोलन की तह तक जा कर अगर देखा जाए तो पुलिसिया बर्बरता ही किसी भी आन्दोलन के उग्र होने में एक बहुत बड़ी  भूमिका निभाती है....
संयम दोनों ओर से बरता जाना चाहिए....
अपने छोटे से आन्दोलन कारी जीवन में एक बात तो स्पष्ट  रूप से देखने को मिली है कि पुलिस कई बार असहिष्णु होती ही है....
आन्दोलन को कुचलना मात्र ही उद्देश्य होता है....
अब समय आ रहा है की पुलिस को यह जानना होगा कि कौन सा आन्दोलन किस श्रेणी में आता है...और शान्ति व्यवस्था बनाए रखने में उस की क्या भूमिका होनी चाहिए...
अब पुलिस को कठपुतली मात्र नहीं बने रहना चाहिए.....
एक निष्पक्ष पुलिसिया भूमिका की अब देश को ज़रुरत है....
आज ज़रुरत है कि हम इन अंग्रेजों के बनाए हुई कानूनों की देहलीज को लांघें  और अपने देश वासियों को कुचले नहीं ..उन का सही बातों में साथ दें...अपने साथी देशवासियों तक ये सन्देश पहुंचे कि पुलिस क़ानून व्यवस्था बनाने हेतु है ना कि उन के शोषण के लिए.....
अब ज़रुरत है.....अपने हकों के लिए जागृत जनता से काले अँगरेज़ के तरीके से न निपटा जाए.....
याद रहे आप ज़रूर पुलिस में हैं....परन्तु कालांतर में हो सकता है कि आप के परिवार के अन्य जन सिर्फ हमारी तरह आम जनता हों.....
सोचिये....मनन करिए और एक दमनकर्ता का स्वरुप न ओढ़े रखिये....एक सहृदय पुलिस का स्वरुप लीजिये, आम जन में विश्वास उत्पन्न कीजिये..... 
हमें पुलिसिया रोब की नहीं एक कुशल सहनशील और सहिष्णु  पुलिस की आवशयकता   है.......

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