Wednesday, April 22, 2015

यथार्थ से रूबरू

कल एक सच से रूबरू हुए ..

स्वीकारोक्ति - किसान की आत्महत्या एक समाचार होती थी...

परंतु कल के वाकये ने झकझोर कर रख दिया ...

ऐसा क्या हो गया कि किसान को संगठित कर के ,उन्हें सम्बल दे कर ,उन की लड़ाई लड़ने की रैली में हमारा एक किसान भाई अपने आप को समाप्त कर ले ?

गजेन्द्र जी की मृत्यु कई सवालों को जन्म दे गयी है ...

1. हमारे देश में अन्नदाता ही भूखा क्यों ?

2. क्यों आज तक ,देश को स्वतंत्र हुए 66 सालों से अधिक समय में हम, गाँवों में बसे इस देश को, एक स्वस्थ किसान नीति नहीं दे पाये ?

3. क्यों हमारा किसान अब तक प्राकृतिक संसाधनों पर ही निर्भर है ?

4. क्यों वह आज कर्ज़ों के बोझ तले डाब कर आत्महत्या को मजबूर है ?

सरकार आज किसानों समेत आम नागरिकों के वोट से चुनें जाने के बाद, किसानों और आम नागरिकों के टैक्स के पैसे से अय्याशी करती है और किसान पैसों के अभाव में दम तोड़ देता है .....

क्या अब समय नहीं आ गया है कि हमारे पैसों की जवाबदेही तय की जाए ?

क्या हमारे किसान भाइयों , जो कि हमारे मुँह में जीवनदायिनी निवाला पहुंचाता है, के प्रति हमारे और उन के द्वारा चुनें गए जनप्रतिनिधियों की कोई ज़िम्मेदारी नहीं बनती ?

कब तक हम मूक दर्शक बन कर इन सरकार के नुमाइंदों को अपना राजा बने देखते रहेंगे ?

क्यों हमारे किसान भाइयों के नुकसान का आकलन दूसरे हाथों में रहेगा ?

क्यों नहीं स्थानीय ग्राम सभा स्वयं प्राकृतिक नुक्सान का आकलन करे और मुआवज़ा निश्चित करे ?

और क्यों नहीं उस मुआवज़े में नष्ट हुई फसल के साथ साथ उस गरीब किसान के निवाले को भी जोड़ा जाए अर्थात क्यों नहीं उस मुआवज़े में किसान के वर्ष भर के खाद्यान का भी जुगाड़ हो ?

सरकार किसी की मौत पर मनमर्ज़ी का  मुआवज़ा बाँट कर एहसान करने की जिस मुद्रा में आ जाती है , उसे उस का त्याग करना होगा ...

हम सब को यह बात कूट कूट कर स्वयं और सरकारी कारिंदों के ज़हन में डाल देनी पड़ेगी कि ये देश और टैक्स का पैसा स्वयं जनता का है

और

कारिंदे सिर्फ कार्य सम्पादन के लिए हैं ...

वे हमारे राजा और हमारे पोषक नहीं है

वरन

हम अपने टैक्स के पैसों से उन का पोषण करते हैं ...

मन बहुत उद्वेलित है ...

और सच मानिए इन सब परिस्थितियों के ज़िम्मेदार हम स्वयं हैं ...

हमें अपने आप को सुधारना होगा और इस देश की बागडोर अपने हाथों में लेकर देश को चलाना होगा ...

अब इन राजनेताओं पर भरोसा नहीं कर अपने आप पर भरोसा कर इन से अपने मन मुताबिक़ कार्य करवाना होगा ...

जागिये और अपना और साथी देश वासियों का जीवन सुधारिये ...

कुछ ऐसा करने का प्रयत्न कीजिये कि किसी और गजेन्द्र को हताशा में अपना बहुमूल्य जीवन ना गंवाना पड़े ...

कोई और बच्चे यूँ अनाथ ना हों ...

जागो हनुमान आप में वो शक्ति अन्तर्निहित है ,

बस,

उसे पहचानिये ...

जय हिन्द !!!

Sunday, April 12, 2015

एक स्नेहिल पाती मेरे आंदोलनकारी भाइयों व साथी कार्यकर्ताओं के नाम -

एक स्नेहिल पाती मेरे आंदोलनकारी भाइयों व साथी कार्यकर्ताओं के नाम -


याद है हम सब मिलकर अपने अपने जिलों में अपने घरों से निकल कर आये थे भ्रष्टाचार के विरुद्ध ...

ना कोई आधार और ना ही कोई स्वार्थ बस एक जूनून था कि व्यवस्था को बदल डालेंगे और अपनी मातृभूमि को भ्रष्टाचार मुक्त कर के ही दम लेंगे ....


कई बाधाएं आयीं , लाठियां खाईं और जेल यात्रा भी की परंतु कभी ना टूटे ....

वो जूनून हम सब को एकता की डोर में पिरोये रहा ...

आदरणीय अन्ना जी ने राजनैतिक विकल्प की घोषणा की ....

हम में से बहुत असहमत थे परंतु हम ने अपने नेता पर विश्वास रखा ...

हम ने राजनैतिक पार्टी बनायी ...

आदरणीय अन्ना जी का रुख बदला और उन्होंने पार्टी से हाथ खींच लिया ....

हम ने उन पर श्रद्धा ना खोयी और साथ ही अपने लीडर पर भरोसा भी ना खोया और बहुत अपशब्द सुने पर लीडर पर विश्वास कायम रखा ....

पूरे जूनून के साथ दिल्ली चुनाव में हिस्सा लिया और जीते भी ...

ना चाहते हुए दिल्ली में सरकार बनायी और फिर उसे छोड़ने की भूल भी की ...

बहुत उतार चढ़ाव आये परंतु हमारा अपने लीडर पर से विश्वास डावांडोल नहीं हुआ ...

फिर दिल्ली में अभूतपूर्व विजय हासिल की ...

जो कि सब को दूर की कौड़ी लग रही थी...

पर

अरविन्द जी का विश्वास था जो हम टूटे हुओं को प्रेरित कर रहा था ...

हमारी जीत हुई ...

इस जीत के बाद ऐसा क्या हुआ कि कुछ साथी अरविन्द जी पर विश्वास खोने लगे ?

सच तो ये है कि उन्होंने विश्वास खोया नहीं अपितु उन की स्वराज के प्रति निष्ठा को कुछ स्वार्थी तत्वों ने अपने निहित स्वार्थ की लड़ाई में काम में लेने की कोशिश की ...

मुझे मालूम है कि मेरे साथी भाई और बहन मेरे इस प्रश्न को गौर से पढ़ेंगे और मनन करेंगे ...


जब हम सड़कों पर भरी धूप में आंदोलन कर रहे थे तो ये स्वराज के पुरोधा वातानुकूलित कक्ष में वंशवादी परम्परा की राजनीति खेलने वाली कांग्रेस के युवराज को राजनीति की शिक्षा दे रहे थे ...

*तब कहाँ था उन का स्वराज प्रेम ?


*जब वे पिछली राष्ट्रीय परिषद् की बैठक में संविधान संशोधन का गलत translation कर रहे थे तब कहाँ था उन का स्वराज ?

*जब वे हमें इसी बैठक में भेड़ बकरी की तरह हांक रहे थे तब कहाँ था उन का स्वराज प्रेम ?

*जब वे आँख के तारे थे तब पार्टी में स्वराज ही स्वराज था आज जब उन के स्वार्थ और अतिमहत्वाकांक्षा को पकड़ लिया गया और वे आँख की किरकिरी बन गए तो वे स्वराज का नारा लगाने लगे ?

अपनी आँखें खोलिए और इस स्वार्थ की लड़ाई से दूर कर लीजिये अपने आप को ...

पार्टी भी वो ही है और अपने लीडर भी नहीं बदले...

अपने आप पर विश्वास ना खोइए ...

स्नेहाशीष के साथ
आप की बहन

Tuesday, April 7, 2015

स्वराज का यथार्थ

स्वराज मेरा जन्मसिद्ध अधिकार है और मैं इसे ले कर रहूँगा .... भारतवर्ष के हर पढ़े लिखे व्यक्ति को ये वाक्य जोश में भर देता है ....

आज भी इस वाक्य का एक शब्द ज़ोर शोर से उठ रहा है ....

कुछ इस पर काम कर रहे हैं और कुछ इस पर अपने नव राजनैतिक रोटियां सेकने की जुगत में हैं ....

चलिए इस शब्द की व्याख्या करते हैं ....
स्वराज यानि स्वयं का राज या एक ऐसी व्यवस्था जहाँ अपनी बात के अनुसार काम होता है ....

अब इस व्याख्या को कुछ लोग मुखौटा पहना कर स्वार्थ सिद्ध करना चाह रहे हैं ....

भोले भाले कार्यकर्ताओं को दिग्भ्रमित कर उन्हें पशोपेश में डाल रहे हैं ....

आज के आम आदमी पार्टी के सन्दर्भ में इस की विवेचना करते हैं जिस से पार्टी का स्वराज स्पष्ट हो और वे धूर्त, जो इस पर अपनी राजनैतिक रोटियां सेकना चाहते हैं ,बेनकाब हों....

पार्टी की व्यवस्था के अनुसार पार्टी का primary unit (बूथ)के कार्यकर्ता अपनी इच्छानुसार अपना प्रतिनिधि चुनेंगे और उसे वार्ड की कार्यकारिणी में भेजेंगे...

वार्ड की कार्यकारिणी विधानसभा की कार्यकारिणी का गठन करेगी और ये सब प्रतिनिधि जिला की परिषद् का गठन करेंगे और परिषद् जिला कार्यकारिणी का ...

इसी प्रकार राज्य परिषद् और राष्ट्रीय परिषद् और कार्यकारिणी का गठन होगा ....

जब हमारी primary unit, जो कि अपने बूथ मेंबर्स को represent करती है, जिला,राज्य और राष्ट्रीय परिषद् में पार्टी की गतिविधि को संचालित करेगी तो वो क्या स्वराज नहीं है ?

क्या वो बूथ कार्यकर्ता की आवाज़ नहीं है ?

आम आदमी पार्टी संगठन विस्तार से इसी स्वराज की परिकल्पना को साकार करने जा रही है ....

इसी को जानते हुए कई स्वार्थी तत्त्व बहती गंगा में हाथ धो कर स्वयं का उद्धार करना चाह रहे थे ....

दाल ना गलने पर स्वराज का तोता रटन प्रारम्भ कर साथी कार्यकर्ताओं को बरगलाने की कोशिश करने लगे हैं ...

हमें अपने साथियों पर विश्वास है कि वे धूर्त अतिमहत्वाकांक्षी लोगों के इस नकाब को उतार फेंकेंगे और अपनी पार्टी के साथ देश सेवा के व्रत को पूरा करने में लग जाएंगे ....

आम आदमी पार्टी के स्वराज को यथार्थ रूप देना है ...

आइये जुट जाएँ ...

जय हिन्द !!!