Friday, October 26, 2012

एक पुराने भारत की तर्ज़ पर नया भारत बनाएं

विडंबनाओं का देश भारत .....
एक ओर अनाज उत्पादन में बहुतयात ..दूसरी ओर भूख से होने वाली मौतों की संख्या में वृद्धि....
क्या ये भारतीय जन-मानस के उदासीन होते रवैये को दर्शाता है या हमारे उभरते स्वार्थ को....
क्या हमारी पुरानी नीतियां सही नहीं थी??
अभी दिल्ली में हुए शिविर में हिमाचल प्रदेश के एक साथी कार्यकर्ता से मुलाकात हुई ओर उन्होंने बताया कि हिमाचल के कई गाँवों में ये व्यवस्था आज तक है कि शाम को घोषणा होती है कि जिस व्यक्ति ने अभी तक भोजन नहीं किया और अगर अभाव है तो मंदिर से भोजन की सामग्री ले कर पका ले......
कोई राहगीर भी वहां भूखा नहीं सोता.....
सब की भूख को तृप्त करने हेतु  गाँव प्रबंध करता है.....

आज के इस युग में हम से कहाँ चूक हो गयी???
पहले से ज़यादा संसाधन संपन्न हम आज  किस  ओर बढ़ रहे हैं ???

एक उदासीन,स्वार्थी समाज ??

नहीं हम भारतीय ऐसे नहीं हो सकते.....

अपने सुप्त संस्कारों को ललकार के जगाइए....
अब समाज ओर जनता के जागने का समय है....
कोई भी अभावग्रस्त व्यक्ति/परिवार को देख अब हम चुप न बैठेंगे,ऐसा ठान लीजिये.....

हमारे टैक्स का पैसा है सो हम अपने जनसेवकों ओर जनप्रतिनिधियों को मजबूर करें कि वो किसी को भूखा न सोने दें....
हम अपने अपने स्तर पर  फिर चाहे वो वार्ड स्तर हो या मौहल्ला  स्तर नागरिक समितियां बनाएं जिस में सरकार/स्थानीय मदद से भोजन सामग्री हर रात को वितरित करने का प्रावधान हो.....

अब कोई भूखा न सोने पाए.....

ये हम जनता का कर्त्तव्य हो....और इस कर्त्तव्य के प्रति हम सचेत हों.....

ये स्थानीय नागरिक समितियां किस भी राजनैतिक पार्टियों से सम्बंधित न हों ....
और इन स्थानीय नागरिक समितियों की सिफारिश पर ही भोजन सामग्री उन के क्षेत्र  में वितरित की जाए....

क्या हम ऐसा कर पायेंगे ???

आइये एक पुराने भारत की तर्ज़ पर नया भारत बनाएं.....

जहाँ किसी स्थानीय भारतीय का भूखा  सोना एक आम भारतीय का अपराध हो...

आइये भारत को  एक समय का भर पेट भोजन तो उपलब्ध कराएं......

Monday, October 22, 2012

देश हमारा


देश  सेवा  -
क्या  शब्द  इस  धर्म  की  विवेचना   कर  पायेंगे ....
ये  एक  भावना  है ,एक  जज्बा ...
जिसे  बिरले  ही  महसूस  कर  पाते  हैं ....
दावा  करने  वाले  कई  बार  सिर्फ  दावा  करते  ही  रह  जाते  हैं ....
खैर  मुद्दे  की  बात  पर  आते  हैं .....
आज  लौंगिया  क्षेत्र  का  दौरा  किया ....
एक  नया  अजमेर ....
एक  पुराना  अजमेर ...
नया  यूँ  जिसे  हम  ने  पहले  कभी  न  देखा  था ...
पुराना  यूँ  क्यों  कि ये  पुराने  अजमेर  की  एक  बसावट  है ....
स्थानीय  पार्षद  के  प्रतिनिधि  से  मिले  और  अतिवृष्टि  से  प्रभावित  लोगों  के  गिरे  घरों  को  देखा ....
जान  का  मोल  डेढ़  लाख  रुपया  है ...जाना ...
हाय   री  किस्मत ...हम  ने  तो  सुना  था  जीवन  अनमोल  है ...
खैर  गरीबों  की  जान  है ....
कच्चे  घरों  में  मरे  थे  सो  कीमत  वो  ही  रही ...
जो  पव्वे  और  चंद  रुपयों  में  अपने  ज़मीर  और  वोट  को  बेच  देते  हैं  उन्हें  सरकार  भी  उसी  तराजू  में  रख  कर  तौलती  है ...
सो  भाई  जान  उन  हादसे  के  शिकार  लोगों  की  जान  की  कीमत  लगी  डेढ़  लाख  रूपये ...
इतने  में  तो  हमारे  मंत्रियों  का  toilet नहीं  बनता  है ...
और  बेचारे  गरीब  भारतीयों  की  जान  की  कीमत  है  ये  तो ...
खैर  जाने  दीजिये ...
हम  रेंगते  कीड़े  जब  तक  अपनी  पहचान  ऐसी  ही  रखेंगे  तो  ये  ही  होगा ...
हम  को  भी  लीडर  समझ  हाथा  जोड़ी  होने  लगी ....
समझाने  पर  माने  कि  हम  भी  उन  की  तरह  ही  जनता  हैं  और  उन  को  उन  की  ताकत  का  एहसास  कराना  ही  हमारा  धर्म  है ...
शायद   ग़ुलामी  हम  ने  सीख  ली  है ...
हम  अपने  काम  को   करवाने  के  लिए  सिर्फ  मुंह ही  ताकते  रहते  हैं ....
कोई  और  हमारा  मसीहा  बने  बस .....
बहुत  बड़ा  और  दुष्कर  काम  है  हमारे  सामने  ....
आम  आदमी  को  ख़ास  होने  का  एहसास  लौटाना....
उस  खुदी  हुई  खाई  को  पाटना .....
अवैध  बस्तियां ....
पहाड़ों  पर  बसी  हुई ....
कोई  किसी  प्रकार  की  सुविधा  नहीं ....
ये  है  हमारा  हिन्दुस्तान ....
बस  अपनी  ज़िन्दगी  के  पल  गुजारता ....
और  अपने  आने  वाली  पीढ़ी  को  भी  ये  ही  विरासत  सौंप  के  जाता  हुआ ....
क्या  ये  सरकार  की  गलती  है ....
नहीं  हम  तो  ये  ही  मानते  हैं  कि  ये  हमारी  गलती  है .....
हम  ने  अपनी  ज़िन्दगी  को  इसी  प्रकार  से  रेंगते  हुए  काटने  का  समझौता  किया  हुआ  है  अपने  आप  से ....
काश  हम  इन  कैदों  से  आज़ाद  हो  पायें ....
कोशिश  ज़ारी  है ....
देखते  हैं  कि  जागरूकता  की  इस  लहर  में  हम  कितना  सफल  होते  हैं ....
क्या  हम  इस  देश  के  नए  नेता  भर  रह  जायेंगे  या  हम  अपने  प्रकार  के  हर  आम  आदमी  को  इस  देश  का  ख़ास  आदमी  बनाने  में  सफल  होंगे ....
ये  सब  भविष्य  के  गर्भ  में  है ....
सफलता  की  दुआएं  मांगते  हैं  उस  अदृश्य  शक्ति  से ....
सफलता  इस  जूनून  के  कदम  चूमे  बस  ये  ही  ख्वाहिश  है ....

Sunday, October 21, 2012

हम और भ्रष्टाचार

एक के बाद एक -
भ्रष्टाचार परत दर परत खुलता ही जा रहा है.....
क्या वाकई दूसरे लोग इस के दोषी हैं.....
क्या सच में ठीकरा इन सब के सर फूटना चाहिए???
क्या कहीं न कहीं हम सब का इस में योगदान नहीं है???
एक कहानी याद आती है कि एक चोर को जब सजा हुई तो उस ने ये कहते हुए  अपनी माँ से मिलने से इनकार कर दिया कि जब में छोटी छोटी चोरी करता था इन्होने मुझे रोका नहीं...
बाल मन पर चोरी कोई गलत बात है ऐसा छाया ही नहीं.....
आज भ्रष्टाचार का भी वही स्वरुप है......
आम आदमी इसे हमारे डीएनए में है ऐसा मानता है...
क्या वाकई ये हमारी राग राग में समा चुका है???
हम घर आँगन  बुहारते हैं...कचरा हमारे घर के बाहर फैंक देते हैं....
आज हमें रेलवे का टिकेट चाहिए - कौन लाइन में लगे??
हम थोडा बहुत किसी के हाथ में रख कर टिकेट जल्दी प्राप्त कर लेते हैं...
फलां जगह हमारी जान पहचान से काम निकाल लेते हैं....
यदि क़ानून का उलंघन करते हैं तो कुछ दे दिला के मामला रफा दफा कर देते हैं .....
वोट देते हुए चाँद रुपयों  में बिक जाते हैं.....
और क्या क्या गिनाएं.....
छोटे भ्रष्टाचार से बड़े भ्रष्टाचार की ओर कदम कब बढ़ जाते हैं पता ही नहीं चलता.....
कुछ देर चिंतन मनन कीजिये ....
क्या पता इस का तोड़ हमारे ही हाथ में हो???
न कुछ देने लेने का रिवाज़ बनाएं और न इस भंवर में फंसें......
अपने गिरेहबान में झांकिए......
इस कैंसर का तोड़ हम और सिर्फ हम हैं.....
ज़रुरत है तो हमें अंगद के पाँव के सामान अडिग रहने की इच्छाशक्ति की......
वन्दे मातरम्.....

Saturday, October 20, 2012

होड़ का तोड़

होड़ मची हो होड़.......
ये भी ले लो,वो भी ले लो....
बस वोट हमें देना,हमारे घोटाले भूल जाना....
हम ने आप के लिए ये किया ...हम ने आप के लिए वो किया...
सब जनता को मूर्ख मानते हैं...
आखिर हम ने ऐसा अपने आप को दिखाया भी है न...
आखिर 65 सालों में हम ने किस बात पर वोट दिया है??
कभी जाति के नाम पर,कभी जान पहचान के नाम पर तो कभी पार्टी के प्रति प्रतिबद्धता के नाम पर...
और तो और..पढ़े लिखे मिडिल क्लास बिरादरी ने तो चुनावों से दूरी सी बना रखी है
 मानो ये उन का कर्त्तव्य नहीं हक है जिसे लें न लें उन की मर्ज़ी...
खैर ऐसा करना उन की मजबूरी रही है...
वोट किस को दें??
उन की बुद्धिमत्ता पूर्ण नज़रों में जब कोई प्रत्याशी लायक नहीं था तो वोट न करना ही एक रास्ता नज़र आता था...
ताकि
वे अपने ज़मीर पे कोई बोझा न रखें कि उन्होंने गलत प्रत्याशी का चयन किया है....
पर अब समीकरण बदल रहे हैं...
अब अच्छे प्रत्याशी ज़रूर उतारे जायेंगे.....
और 
यदि आप की निगाह में कोई भी सही प्रत्याशी नहीं है तो एक विकल्प और भी है सब के सामने 
अपना वोट रजिस्टर ज़रूर कराएं और न दें...
ये हमारी ओर से राजनीतिक पार्टियों को आईना दिखाना होगा कि हम उन के गलत प्रत्याशियों का अपने जन प्रतिनिधियों के तौर पे चयन हरगिज़ न करेंगे....
हमारा यह विरोध भी जन जागृति की एक नयी लहर पैदा करेगा ....
बस ज़रुरत है हमारे जागने की.....
इसी कड़ी में अब सम्पूर्ण प्रदेश में विधानसभा चुनावों के मद्देनज़र वोटर लिस्ट अवलोकन हेतु उपलब्ध करवाई जायेगी....
जागरूक मतदाता बनें और इस का अवलोकन कर अपना नाम नहीं होने की स्थिति में जुडवाने हेतु कार्यवाही जरूर  करें....
अब देश की जनता को ही आगे आकर इस भ्रष्ट व्यवस्था को बदलना है...
हम अपने स्तर पर जितना कर पायें ज़रूर करें ....
भारत माता आप की ओर टकटकी लगा कर देख रही है
उसे अपने सपूतों पर विश्वास है......
बस हमें छोटे छोटे कदम ले कर अपनी भारत माता के विश्वास पर खरे उतरना है.....
जय हिन्द !

Wednesday, October 17, 2012

ज़मीर चाह के भी नहीं जगा सकते.......

केजरीवाल के आरोप चिल्लर .......

गडकरी जी की नज़र में आरोप चिल्लर और रशीद अल्वी जी की निगाह में संगीन.....

जनता है ग़मगीन.....

अरे भाई  बनाना रिपब्लिक के  मैंगो  मैन के चिल्लर आरोपों का ही जवाब दे दीजिये....

ठीक कहा आप ने ज़मीन हडपी नहीं लीज़ पर मिली है....
फिर उन किसानों को क्यों नहीं मिली जो अपनी ज़मीन वापिस मांग  रहे थे ?

खैर ....

एक बात ज़हन में उठती है....

अगर आप पर आरोप लगते हैं तो भाजपा कैसे बदनाम होती है...

गलती तो आप ने की ....

अब बेचारे सीधे सच्चे भाजपाई भी आ गए लपेटे में.....

आखिर पार्टी लाइन के पीछे दुम दबा के जो चलना उन की मजबूरी जो  है....

यदि सच को आइना दिखाने की हिमाकत करते हैं तो अनुशासनहीनता का आरोप सीधे सीधे उन पर लगता है.....

ज़मीर चाह के भी नहीं जगा सकते.......

ये भारत में कैसा सिस्टम है ???

राष्ट्रीय दामाद पर आरोप लगते हैं तो कांग्रेस बचाव में....
कानून मंत्री का पर्दाफाश होता है तो कांग्रेस बचाव की मुद्रा में......

क्या हमारी  राजनैतिक पार्टियाँ पार्टी न हो कर  न हो कर कुछ भ्रष्टाचारियों की जागीर मात्र  बन कर रह गयी है ??

एक बात समझ में नहीं आती की देश भर में बहुत सी co.operatives काम कर रही हैं पर धन वर्षा कुछ पर ही क्यूँ??? 

गडकरी साब के जीवन के मिशन से उन्हें इतना लाभ कैसे अर्जित हो रहा है???

किसान मरते जा रहे हैं और गडकरी जी अमीर होते जा रहे हैं???

ये कैसी co-operative  है ???

जिस के भले के लिए बनी है वो मर रहा है 

और 

जो इस जीवन के मिशन को ले कर चल रहा है वो फल फूल रहा है....

वाह री किस्मत.....

गरीब, अमीर की ज़िन्दगी की मिशन में भी आत्महत्या को मजबूर....

कांग्रेस के  भ्रष्टाचार के खिलाफ जनता ने ही माहौल बनाया और अब उन्ही भ्रष्टाचारियों के साथ मिलकर भाजपा को नुक्सान पहुंचाने की साज़िश भी हम जनता ही रच रही है ???

दूसरों पर आरोप आरोप और आप पर षड़यंत्र ???

सुषमा जी कहती हैं कि चाह कर भी चार की जगह तीन आरोप ही लगा पाए ???

चलिए तीन का ही स्पष्टीकरण दे दीजिये......

जनता सांस रोके खड़ी है अपने प्रमुख विपक्षी दल द्वारा (उन के अध्यक्ष पर लगाए गए) आरोपों के खंडन का  ....

ये पब्लिक है भैया सब जानती है......

हमाम में सब नंगे हैं......

ये पहचानती है......

Thursday, October 11, 2012

राजनीतिक क्रान्ति का प्रस्तावित स्वरुप -

राजनीतिक  क्रान्ति का प्रस्तावित स्वरुप - 

(बहुत से लोगों से विचार विमर्श चल रहा है और अभी कमोबेश ये स्वरुप सामने आया है) 

हर एक के मन में कई विचार और कई प्रश्न हैं.....

नयी पार्टी के बारे में और उस के दृष्टिकोण के बारे में....

सब से पहले-पार्टी का गठन सत्ता हासिल करने हेतु न हो कर सत्ता के केन्द्रों को ध्वस्त कर सत्ता जनता के हाथों में सौंपने के लिए हुआ है.....

1.  सीधे जनता का राज होगा-यानी कि किसी भी इलाके में सरकारी पैसा जनता कि मर्ज़ी से खर्च होगा और सदन में लिए  जाने वाले हर अहम् फैसले(कानून और नीतियाँ बनाने में) में जनता की भागीदारी होगी|
2. भ्रष्टाचार दूर करना - जन लोकपाल/जन लोकायुक्त  के द्वारा समयबद्ध भ्रष्टाचार की जांच और दोषियों को छः महीने में जेल |
    भ्रष्टाचारी की संपत्ति ज़ब्त और नौकरी से बर्खास्त.... 
    तय समय सीमा में हर सरकारी काम और न होने पर दोषी अफसर की तनख्वाह से पीड़ित जनता को   पेनल्टी |
3. महंगाई - बड़ी कंपनियों की सरकार के साथ सांठ-गाँठ ख़त्म की जायेगी.
    जैसे....बड़ी कंपनियों को 13 लाख करोड़ रुपयों  की छूट और आम जनता पर 2 लाख करोड़ रुपयों का टैक्स....यदि आम जनता पर ये टैक्स माफ़ हो जाए तो पेट्रोल 50 रूपये लिटर और डीज़ल 40 रूपये लिटर हो सकता है  और  साथ ही गैस सिलेंडर  350 रूपये के हिसाब से लोग जितने मर्ज़ी सिलेंडर ले सकते हैं.
  इन दामों में कमी के साथ ही अन्य वस्तुओं पर महंगाई अपने आप ही कम हो जायेगी.. 
  राजस्थान के 1250 वर्ग किलोमीटर के तेल के कुएं विदेशी कंपनियों से वापस ले इस का लाभ सीधे जनता को दिया जाए तो तेल और गैस की कीमतें और कम की जा सकती हैं...(विदेशी कम्पनियाँ 3 डॉलर प्रति बैरल से तेल  निकाल 100 डॉलर प्रति बैरल बेचती हैं....)
  बिजली -पानी को निजीकरण/विदेशी कंपनियों को दिए जाने के कारण दामों की वृद्धि को रोकना है...
  सरकारी सट्टेबाजी (दाल,चावल गेंहू आदि )को बंद  करना है....
  4. भूमि अधिग्रहण - 
      भूमि अधिग्रहण स्थानीय जनता की मर्ज़ी के बिना न हो ऐसा सुनिश्चित किया जाएगा....
5. सबको अच्छी शिक्षा और अच्छी स्वास्थ्य सेवायें - 
    सरकारी स्कूलों और अस्पतालों को विश्वस्तरीय बनाना है और यदि ये ठीक से काम नहीं करते तो उन पर सीधे स्थानीय जनता का नियंत्रण होगा.
6. राइट तो रिजेक्ट  -
    उम्मेदवार पसंद न होने पर कोई विकल्प न होने की स्थिति में हमें किसी न किसी को वोते देना पड़ता है...अब नापसन्दी का एक बटन लगाया जाएगा...यदि इस बटन को बहुमत मिलता है तो चुनाव रद्द किये जायेंगे और एक महीने में दोबारा चुनाव किये जायेंगे और नकारे गए उम्मेदवार दुसरे चुनावों में खड़े नहीं हो पायेंगे...
7. राइट तो रिकॉल - 
    चुने जाने के बाद कई प्रतिनिधि जनता की आवाज़ नहीं सुनते ऐसे जनप्रतिनिधियों की शिकायत चुनाव आयोग में कर के उन्हें हटाया जा सकेगा और नए चुनाव करवा सकेंगे.
8. किसानों को फसलों के उचित दाम -
    स्वामीनाथन  आयोग की रिपोर्ट (सारी लागत निकालने के बाद किसान को कम से कम 50 % मुनाफा मिलना चाहिए)को लागू करना.
    किसानों के मुद्दों और फसल के दाम तय करने वाली समितियों में किसानों की बहुतायात होनी चाहिए ताकि उनकी आवाज़ सुनी जा सके.
9. युवाओं को आह्वान- 
    लड़ो पढ़ाई करने को,पढो समाज बदलने को : देश के नेताओं ने कॉलेज के नाम पे दुकानें खोल रखी हैं |युवा चक्कर में फंसे हैं.डिग्री खरीदने के बाद नौकरी की मशक्कत ,जिस के लिए रिश्वत |
    देश और समाज के बारे में सोचने का समय ही नहीं मिलता.
    युवाओं के सामने बड़ी चुनौती - शिक्षा की इन दुकानों  के खिलाफ ,नौकरियों  में भ्रष्टाचार के खिलाफ लड़ाई  और सम्पूर्ण व्यवस्था परिवर्तन के लिए तैयारी करनी होगी .....
    यह क्रान्ति युवाओं की सीधी भागीदारी के बिना संभव नहीं होगी.....
 
    अगर पार्टी के उम्मेदवार जीतने के बाद भ्रष्ट हो जाएँ तो......
    भ्रष्ट और घमंडी नेताओं निकालने और सज़ा दिलवाने की चाबी जनता के हाथ में दी जायेगी.....
    भ्रष्ट लोगों को छ : महीने में जेल - जीतने के बाद जन लोकपाल कानून 10 दिनों में पारित किया जाएगा|भ्रष्ट नेता ,चाहे वो हमारी पार्टी का हो या अन्य पार्टी का ,उस के खिलाफ जनता लोकपाल में शिकायत कर सकेगी|भ्रष्ट नेता को छ : महीने में जेल होगी.....
    जीतने पर  राइट तो रिकॉल कानून पारित किया जाएगा - जनता के मर्ज़ी के मुताबिक़ काम न करने पर जनता चुनाव आयोग में आवेदन करके निर्वाचित जन प्रतिनिधि को हटा सकेगी....

    जनता की ये पार्टी दूसरी पार्टियों से अलग कैसे होगी - 
    1. जीतने के पश्चात कोई जनप्रतिनिधि लाल बत्ती की गाडी नहीं लेगा |
    2. जनप्रतिनिधि कोई सुरक्षा नहीं लेगा....
    3. जनप्रतिनिधि को कोई बड़े बंगले नहीं मिलेंगे....
    4. टिकट का वितरण रुपयों से न होगा....जनता से पूछ कर टिकट दिया जाएगा |
    5. अपराधियों या भ्रष्टाचारियों को टिकट नहीं |
    6. पार्टी के पदाधिकारियों पर  सख्त अचार संहिता लागू होगी.... 
       आंतरिक स्वतंत्र लोकपाल (दो रिटायर्ड जज ) द्वारा सभी पदाधिकारी जांच के दायरे में रहेंगे...
       जनता सबूत के साथ किसी भी जज को शिकायत कर सकती है|
    7. पार्टी को जो भी चंदा मिलेगा वह तुरंत वेब साईट पर डाला जाएगा...
        सारे खर्चों का ब्यौरा भी वेब साईट पर डाला जाएगा....
    8. किसी भी परिवार के दो सदस्यों को चुनाव लड़ने का मौका नहीं दिया जाएगा.

Tuesday, October 9, 2012

मैंगो मैन और बनाना रिपब्लिक

व्यक्ति गुणों की खान है और साथ ही गुनाहों का दलदल भी...

अब देखना ये है कि हमें गुनाहों के दलदल में दफ़न होना है कि गुणों के पारस पत्थर से छू कर सोने में परिवर्तित होना है....

गुनाहों के दल दल को तो आज का मानव बाखूबी समझता भी है,जानता भी है और मानता भी है   इसी के साथ उस में स्वयं कूदता भी है,किसी का हाथ थामता भी है और फिर ईश्वरीय दया से आँखों से ओझल  भी हो जाता है उसी दलदल में....

गुणों के पारखी कम हैं 
गुनाहों के देवता ज़यादा......

गुणों के कद्रदान उँगलियों पर गिने जा सकते हैं ....वे अपनी लड़ाई अपने स्तर पर अकेले ही लड़ते नज़र आते हैं....
गुनाहों के दलदली घोड़े हिनहिनाते,धमकाते और दुलत्ती मारते सब को चारों खाने चित्त करने में जुटे रहते हैं....
गुणी की लड़ाई को अवसरवादिता,निरंकुशता और अराजकता आदि नामों से नवाज़ा जाता है.....
उन्हें येन केन प्रकारेण विवादों में घसीटा जाता है....
परन्तु
ये गुणों के कद्रदान न जाने किस मिटटी के बने हैं और देश प्रेम का क्या जूनून उन पर सवार है कि वे टस से मस नहीं होते....
अर्जुन सा लक्ष्य ले वे एक राह पकडे रहते हैं....अपमान का घूंट पीते रहते हैं और अपनी चुनी हुई राह पर बढ़ते चले जाते हैं.....
और 
गुनाहों के पक्षधर ???
वे अंतत: दलदल के अंधियारे में बेनाम दफ़न हो जाते हैं....

आज के सन्दर्भ में ही बात करते हैं.....
भ्रष्टाचार के दलदल में गोते लगाते राष्ट्रीय दामाद एक भद्दा दाग हैं सासू माँ पर.....
पहले तो इतना छोटा सा घोटाला कर बी पी एल श्रेणी के भ्रष्टाचारियों में अपना नाम दर्ज करा दिए और फिर अपने आप को घिरते देख सासू माँ के शासन पर ही कीचड उछाल दिए -बनाना रिपब्लिक  कह के....
वो सासू माँ जो देश के शासन कुशासन पर कभी मुंह न खोलती थी को भी राष्ट्रीय दामाद के लिए मुंह खोलना पड़ा.......
खैर इतने बड़े तमगे के बाद तो मानो होड़ ही लग गयी अपनी वफादारी दिखाने की....
सब मंत्री लग गए मिजाजपुर्सी में......
होड़ लगी है भाई मेडम को अपनी मेडम भक्ति दिखाने की - कोई जान देने को तैयार है तो कोई जान लेने को....

चलिए इन के तो ये दामाद हैं - 

अब आते हैं खरी खरी पर.....

जिन के दामाद नहीं भी हैं उन के मुंह पर ताले क्यों लग गए ???

कल एक मिमियाता स्वर सुनाई पड़ा ....
केजरीवाल के पास कोई पुख्ता सबूत नहीं हैं वाड्रा के खिलाफ.....

अरे भाई इतने सबूतों के बाद तो थर्ड डिग्री ही बचता है....

वो करवाने की ताकत न पक्ष में है न विपक्ष में.....

हमाम में सब नंगे हैं......

तो जनता 2014 तक राम भजो......
और 
स्मरण शक्ति का ह्वास न होने पाए इस के लिए शंखपुष्पी और बादाम ( यदि बनाना रिपब्लिक की महंगाई खरीदने दे ) लेते रहें..... 

अब चोट जो करनी है पक्ष विपक्ष की इस सोच पर कि आम आदमी की याददाश्त कमज़ोर है...

अब आप का litmus test   है 2014 में....

देखते हैं क्या रंग लाती है जनता की मुहीम........

वन्दे मातरम्.......

Sunday, October 7, 2012

अब याचना नहीं .....

अब तो दिल की ही मानिए....
इस दिल की आवाज़ पर उठना जानिये...
जीना तो हर हाल में है ही, पर दिल की आवाज़ को सुनना जानिये...
जीता तो दुनिया में है हर कोई...
पर
 अपनी शर्तो पे जीना जानिये....
सोते हुए बहुत  काटी है ज़िन्दगी...
अब इस देश की खातिर सड़कों पे जीना ठानिये....
अब याचना नहीं .....
अपने हक को लड़ के लेना जानिये....
इस सुप्त देश प्रेम को झकझोर के जगाइए और ठान लीजिये कि हम अपने हक को अब ले कर ही रहेंगे...
ये समय है ज़ोरदार विरोध का.....
हर नाजायज़ दबाव को ठुकराने का...
अपनी जायज़ मांगों के लिए अड़ जाने का....
रोशन सवेरा तो अपनी ही हिम्मत से होगा...
दूसरों का मुंह ताकना बंद कीजिये...
अपनी सुप्त ताकत को पहचानिए....
किस भी भेद-भाव,दबाव ओर गलत काम को सहने की नहीं रखी...

अब समय है सविनय अवज्ञा आन्दोलन का.....

किसी भी देश हित,समाज हित  और शोषित जन के मुद्दों को ले कर सड़कों पर आईये और अपनी ताकत से उस नाजायज़ बात को समाप्त कीजिये....
पहले गोरों से लड़े थे अब अपनों से लड़ने का समय है...
तब तक जब तक वे हमें...
यानी कि
 आम जन को वोट-बैंक या प्रजा मानना बंद न कर दें....
आइये लोकतांत्रिक देश को सच्चा लोकतंत्र देने की दिशा में कदम बढायें.....
जहाँ जनता के द्वारा,जनता के लिए और जनता का शासन हो...

स्वराज और सुराज....

हमें सुराज तो चाहिए ही ,परन्तु ऐसा सुराज जो स्वराज में समाहित हो....

स्वराज...जनता का राज....जहाँ हर महत्वपूर्ण फैसला जनता से पूछ कर लिया जाए....

सरकारी कोष का उपयोग जनता की मर्ज़ी से किया जाए...

जनता मांगे कि इस जगह सड़क की ज़रुरत है,इस जगह विद्यालय की....
हमारी ज़रूरतों और इच्छा के मुताबिक ही हमारे टैक्स का पैसा खर्च हो.....

किसी भी जनप्रतिनिधि का चयन उस कि छवि और कार्यकुशलता के बल पर हो नाकि उस कि जाति उस का प्रमाणपत्र बने....

हमें अपनी जाति पर गर्व होना चाहिए परन्तु ये हमारे  निजी जीवन तक ही हो....

घर के बाहर हम एक भारतीय कहलाना पसंद करें...

इस देश प्रेम के ज्वार को उठाइये....

हम बार बार कहते हैं कि अपने हक के लिए उठ खड़े होइए क्यों कि ये लड़ाई आप के और हमारे जुड़े बिना पूरी न हो पाएगी...

ये हमारी लड़ाई है.....

आज किसी भी प्रत्याशी को हम चुनें कि ये हमारा जनप्रतिनिधि बन सकता है....
कोई भी व्यक्ति स्थानीय जनता पर थोपा ना जाए...
हमें इस दिशा में  मज़बूत इरादे रखते हुए आगे बढ़ना होगा
 और
 राजनैतिक पार्टियों को अपनी सुलझी सोच का परिचय देना होगा
ताकि
 मूर्ख,भुलक्कड़  जनता का तमगा जो हमें मिला है उसे सजग जनता में तब्दील किया जा सके.....
आज समय है चेत जाने का....

अभी नहीं तो कभी नहीं की स्थिति है....

अपनी आने वाली पीढ़ी को जवाब देने की स्थिति में आप अपने आप को पाते हैं क्या ...

इस का आकलन आप स्वयं करें....

आखिर रोज़ सुबह आईने से दो चार तो आप को  ही होना हैं न....

Thursday, October 4, 2012

आज की राजनीति का स्वरुप

हारता जो नहीं मुश्किलों से कभी ,
जिसका मकसद है मंजिल को पाना ,
धूप में देखकर थोड़ी सी छाया ,
जिसने सीखा नहीं बैठ जाना ,
आग जिसमे "लगन " की जलती है ,
"कामयाबी " उसी को मिलती है ...

 हमें अब एक ऐसी राजनीति की शुरुआत करनी होगी जिस में हम हर सही बात को सही और गलत कार्य को गलत कहने का दम रख सकें...

तुष्टिकरण की नीति फिर चाहे वो किसी भी जाति या सम्प्रदाय या फिर बहुसंख्यक या अल्पसंख्यकवाद क्यों न हो को हमें नकारना है ...


हम में देश प्रेम का वो जज्बा होना होगा जिस के सामने हर पार्टी की पोलिटिक्स शून्य हो...


कहने का तात्पर्य है कि हम सब एक ऐसी नयी पार्टी बनाएं जहाँ हर अच्छे कार्य की प
्रशंसा की जाए फिर वे चाहे किसी भी पार्टी द्वारा किया गया हो....

देश प्रेम सर्वोपरि और तुच्छ स्वार्थ नगण्य.......

यदि हम इन मापदंडों पर खरे उतारते हैं तो यकीन कीजिये हम एक लम्बी रेस का घोडा साबित होंगे......

हमें कोई भी तुष्टिकरण की नीति,कोई अलगाववाद या किसी भी जातिवाद का सहारा न लेना पड़ेगा...

धीरे धीरे हमारे रुख को जनता स्पष्ट रूप से देखेगी और जानेगी और मानेगी....

ज़रुरत है तो हमें अपने आदर्शों पर चलते रहने की और डटे रहने की.....

जीत हम जनता की ही होगी.......

Monday, October 1, 2012

जागृति के पंखों से उड़ान और पुलिस

जागृति के पंखों से उड़ान - 
अपने हकों के लिए जनमानस के विचारों का  द्वंद्व अब मुखर हो क्रियान्वित होता नज़र आ रहा है......
अब अपने हकों की लड़ाई लड़ना सहज सा नज़र आने लगा है सब को...
अपने आप पर confidence  बढ़ रहा है जनता का....
एक राह सुझाई थी गाँधी जी ने और अब अन्ना जी ने......
विरोध के मौन स्वर अब मुखर हो सड़कों पर उतरने लगे हैं अपने हकों के लिए......
अब सब जनता को ये एहसास होने लगा है कि ये मुल्क हमारा भी है...न सिर्फ हमारे आकाओं का...
अब हम अपनी बातें शांतिपूर्ण प्रदर्शन द्वारा मनवा सकतें हैं...
बस 
राह में रुकावट बना है.....
इन आकाओं का दंभ.....
इन की मानसिक रुग्णता .....
ये दंभ कि ये ही इस देश के करता-धर्ता और पालनहार हैं...
इन की मर्ज़ी के बिना पत्ता न हिलने पाए....

ये अपने आप को ६५ सालों से मालिक मानते आयें हैं 
और जनता को ज़रखरीद ग़ुलाम जिस का काम ५ सालों में एक बार वोट देने तक सीमित है...
जनता भी इसी में खुश सी थी...
परन्तु..
ब्रह्मांडीय मस्तिष्क से उत्पन्न हुई बदलाव की लहरियों ने अपने असर दिखाया और दबा ढका विरोध अब मुखर हो उठा है...
पहले हम अंग्रेजों के हाथों कुचले जाते थे और अब अपने ही अंग्रेजी मानसिकता के गुलाम प्रशासन और पुलिस द्वारा.....
जनता को हक़ न विदेशी राज में था और न ही स्वयं जनता के राज में....
प्रशासन में पुलिस का रोल ......
अगर इस की विवेचना की जाए तो इस के दो चेहरे उजागर होते हैं...
एक सरकार की कठपुतली का 
और दूसरा 
जनता को दबाने वाले का....
अपनी मांगों को ले कर शांतिपूर्ण आन्दोलन करने निकली जनता को सरकार पुलिसिया तांडव से कुचलने का प्रयास करती  है.....
कई बार ये देखा जाता है कि  आन्दोलन शान्ति पूर्ण  होता है... व्यवस्था का ज़िम्मा पुलिस का होता है ...परन्तु पुलिस व्यवस्थाओं का हवाला दे कर बर्बर हो जाती है....
विरोध स्वरुप 
प्रदर्शन कारी उग्र हो जाते हैं,
इस उग्रवाद का समर्थन कतई नहीं किया जा रहा  है....
परन्तु जैसा कहा जाता है न every action has a reaction....
इसी प्रकार किसी उग्र हुए आन्दोलन की तह तक जा कर अगर देखा जाए तो पुलिसिया बर्बरता ही किसी भी आन्दोलन के उग्र होने में एक बहुत बड़ी  भूमिका निभाती है....
संयम दोनों ओर से बरता जाना चाहिए....
अपने छोटे से आन्दोलन कारी जीवन में एक बात तो स्पष्ट  रूप से देखने को मिली है कि पुलिस कई बार असहिष्णु होती ही है....
आन्दोलन को कुचलना मात्र ही उद्देश्य होता है....
अब समय आ रहा है की पुलिस को यह जानना होगा कि कौन सा आन्दोलन किस श्रेणी में आता है...और शान्ति व्यवस्था बनाए रखने में उस की क्या भूमिका होनी चाहिए...
अब पुलिस को कठपुतली मात्र नहीं बने रहना चाहिए.....
एक निष्पक्ष पुलिसिया भूमिका की अब देश को ज़रुरत है....
आज ज़रुरत है कि हम इन अंग्रेजों के बनाए हुई कानूनों की देहलीज को लांघें  और अपने देश वासियों को कुचले नहीं ..उन का सही बातों में साथ दें...अपने साथी देशवासियों तक ये सन्देश पहुंचे कि पुलिस क़ानून व्यवस्था बनाने हेतु है ना कि उन के शोषण के लिए.....
अब ज़रुरत है.....अपने हकों के लिए जागृत जनता से काले अँगरेज़ के तरीके से न निपटा जाए.....
याद रहे आप ज़रूर पुलिस में हैं....परन्तु कालांतर में हो सकता है कि आप के परिवार के अन्य जन सिर्फ हमारी तरह आम जनता हों.....
सोचिये....मनन करिए और एक दमनकर्ता का स्वरुप न ओढ़े रखिये....एक सहृदय पुलिस का स्वरुप लीजिये, आम जन में विश्वास उत्पन्न कीजिये..... 
हमें पुलिसिया रोब की नहीं एक कुशल सहनशील और सहिष्णु  पुलिस की आवशयकता   है.......