एक ओर अनाज उत्पादन में बहुतयात ..दूसरी ओर भूख से होने वाली मौतों की संख्या में वृद्धि....
क्या ये भारतीय जन-मानस के उदासीन होते रवैये को दर्शाता है या हमारे उभरते स्वार्थ को....
क्या हमारी पुरानी नीतियां सही नहीं थी??
अभी दिल्ली में हुए शिविर में हिमाचल प्रदेश के एक साथी कार्यकर्ता से मुलाकात हुई ओर उन्होंने बताया कि हिमाचल के कई गाँवों में ये व्यवस्था आज तक है कि शाम को घोषणा होती है कि जिस व्यक्ति ने अभी तक भोजन नहीं किया और अगर अभाव है तो मंदिर से भोजन की सामग्री ले कर पका ले......
कोई राहगीर भी वहां भूखा नहीं सोता.....
सब की भूख को तृप्त करने हेतु गाँव प्रबंध करता है.....
आज के इस युग में हम से कहाँ चूक हो गयी???
पहले से ज़यादा संसाधन संपन्न हम आज किस ओर बढ़ रहे हैं ???
एक उदासीन,स्वार्थी समाज ??
नहीं हम भारतीय ऐसे नहीं हो सकते.....
अपने सुप्त संस्कारों को ललकार के जगाइए....
अब समाज ओर जनता के जागने का समय है....
कोई भी अभावग्रस्त व्यक्ति/परिवार को देख अब हम चुप न बैठेंगे,ऐसा ठान लीजिये.....
हमारे टैक्स का पैसा है सो हम अपने जनसेवकों ओर जनप्रतिनिधियों को मजबूर करें कि वो किसी को भूखा न सोने दें....
हम अपने अपने स्तर पर फिर चाहे वो वार्ड स्तर हो या मौहल्ला स्तर नागरिक समितियां बनाएं जिस में सरकार/स्थानीय मदद से भोजन सामग्री हर रात को वितरित करने का प्रावधान हो.....
अब कोई भूखा न सोने पाए.....
ये हम जनता का कर्त्तव्य हो....और इस कर्त्तव्य के प्रति हम सचेत हों.....
ये स्थानीय नागरिक समितियां किस भी राजनैतिक पार्टियों से सम्बंधित न हों ....
और इन स्थानीय नागरिक समितियों की सिफारिश पर ही भोजन सामग्री उन के क्षेत्र में वितरित की जाए....
क्या हम ऐसा कर पायेंगे ???
आइये एक पुराने भारत की तर्ज़ पर नया भारत बनाएं.....
जहाँ किसी स्थानीय भारतीय का भूखा सोना एक आम भारतीय का अपराध हो...
आइये भारत को एक समय का भर पेट भोजन तो उपलब्ध कराएं......