Monday, October 22, 2012

देश हमारा


देश  सेवा  -
क्या  शब्द  इस  धर्म  की  विवेचना   कर  पायेंगे ....
ये  एक  भावना  है ,एक  जज्बा ...
जिसे  बिरले  ही  महसूस  कर  पाते  हैं ....
दावा  करने  वाले  कई  बार  सिर्फ  दावा  करते  ही  रह  जाते  हैं ....
खैर  मुद्दे  की  बात  पर  आते  हैं .....
आज  लौंगिया  क्षेत्र  का  दौरा  किया ....
एक  नया  अजमेर ....
एक  पुराना  अजमेर ...
नया  यूँ  जिसे  हम  ने  पहले  कभी  न  देखा  था ...
पुराना  यूँ  क्यों  कि ये  पुराने  अजमेर  की  एक  बसावट  है ....
स्थानीय  पार्षद  के  प्रतिनिधि  से  मिले  और  अतिवृष्टि  से  प्रभावित  लोगों  के  गिरे  घरों  को  देखा ....
जान  का  मोल  डेढ़  लाख  रुपया  है ...जाना ...
हाय   री  किस्मत ...हम  ने  तो  सुना  था  जीवन  अनमोल  है ...
खैर  गरीबों  की  जान  है ....
कच्चे  घरों  में  मरे  थे  सो  कीमत  वो  ही  रही ...
जो  पव्वे  और  चंद  रुपयों  में  अपने  ज़मीर  और  वोट  को  बेच  देते  हैं  उन्हें  सरकार  भी  उसी  तराजू  में  रख  कर  तौलती  है ...
सो  भाई  जान  उन  हादसे  के  शिकार  लोगों  की  जान  की  कीमत  लगी  डेढ़  लाख  रूपये ...
इतने  में  तो  हमारे  मंत्रियों  का  toilet नहीं  बनता  है ...
और  बेचारे  गरीब  भारतीयों  की  जान  की  कीमत  है  ये  तो ...
खैर  जाने  दीजिये ...
हम  रेंगते  कीड़े  जब  तक  अपनी  पहचान  ऐसी  ही  रखेंगे  तो  ये  ही  होगा ...
हम  को  भी  लीडर  समझ  हाथा  जोड़ी  होने  लगी ....
समझाने  पर  माने  कि  हम  भी  उन  की  तरह  ही  जनता  हैं  और  उन  को  उन  की  ताकत  का  एहसास  कराना  ही  हमारा  धर्म  है ...
शायद   ग़ुलामी  हम  ने  सीख  ली  है ...
हम  अपने  काम  को   करवाने  के  लिए  सिर्फ  मुंह ही  ताकते  रहते  हैं ....
कोई  और  हमारा  मसीहा  बने  बस .....
बहुत  बड़ा  और  दुष्कर  काम  है  हमारे  सामने  ....
आम  आदमी  को  ख़ास  होने  का  एहसास  लौटाना....
उस  खुदी  हुई  खाई  को  पाटना .....
अवैध  बस्तियां ....
पहाड़ों  पर  बसी  हुई ....
कोई  किसी  प्रकार  की  सुविधा  नहीं ....
ये  है  हमारा  हिन्दुस्तान ....
बस  अपनी  ज़िन्दगी  के  पल  गुजारता ....
और  अपने  आने  वाली  पीढ़ी  को  भी  ये  ही  विरासत  सौंप  के  जाता  हुआ ....
क्या  ये  सरकार  की  गलती  है ....
नहीं  हम  तो  ये  ही  मानते  हैं  कि  ये  हमारी  गलती  है .....
हम  ने  अपनी  ज़िन्दगी  को  इसी  प्रकार  से  रेंगते  हुए  काटने  का  समझौता  किया  हुआ  है  अपने  आप  से ....
काश  हम  इन  कैदों  से  आज़ाद  हो  पायें ....
कोशिश  ज़ारी  है ....
देखते  हैं  कि  जागरूकता  की  इस  लहर  में  हम  कितना  सफल  होते  हैं ....
क्या  हम  इस  देश  के  नए  नेता  भर  रह  जायेंगे  या  हम  अपने  प्रकार  के  हर  आम  आदमी  को  इस  देश  का  ख़ास  आदमी  बनाने  में  सफल  होंगे ....
ये  सब  भविष्य  के  गर्भ  में  है ....
सफलता  की  दुआएं  मांगते  हैं  उस  अदृश्य  शक्ति  से ....
सफलता  इस  जूनून  के  कदम  चूमे  बस  ये  ही  ख्वाहिश  है ....

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