Monday, December 17, 2012

आरक्षण - सत्ता लोलुपों का एक हथियार

आइये आरक्षण की बात करें .....
और उस का सच जानें .......
आरक्षण एक वो तोहफा था जिस को एक खुशहाल भारत के स्वपन को साकार  करने और वंचित वर्ग को जो समानता का अधिकार सुनिश्चित करने के लिए लागू किया जाना था ......
परन्तु 
अंग्रेजों से विरासत में  मिली और पोषित की गयी divide and rule की policy को आज तक की सत्तारूढ़ पार्टियों ने अपने हित साधने हेतु भुनाया ......
आरक्षण को वोट बैंक का रूप दे कर सीधे सच्चे दलितों को रेंगते हुए कीड़ों की श्रेणी में ला खड़ा किया .......
अपने ही समाज के ठेकेदारों और राजनैतिक पार्टियों द्वारा छले  गए दलित आज तक सत्ता के दलालों द्वारा वोट बैंक की तरह काम में लिए जा रहे हैं .....
उन का अपना कोई वजूद नहीं है ......
वे सिर्फ और सिर्फ वोट बैंक के रूप में इस्तमाल किये जा रहे हैं .....

आरक्षण के झुनझुने से समाज को बांटने की साज़िश को अंजाम दिया जा रहा है ताकि समाज एक जुट न हो सके और सिर्फ और सिर्फ भारतीय नागरिक बन कर न खड़ा हो जाए ......

65 सालों में जो आरक्षण को अंतिम पंक्ति तक न ला पाए उन से क्या आज का भारतीय समाज ये उम्मीद कर सकता है कि वे आने वाले समय में एक समय-बद्ध तरीके से आरक्षण का लाभ अंतिम पंक्ति तक पहुंचा पायेंगे ??

आज हम सब को जागना ही होगा और इन राजनैतिक पार्टियों और अपने अपने समाज के ठेकेदारों से कुछ सवाल पूछने ही होंगे ....
कि क्यूँ कर हमारे दलित भाई और बहनों को आज तक आरक्षण का लाभ नहीं मिल पाया??
क्यूँ आज उन के समाज के ठेकेदार अमीर और अमीर होते जा रहे हैं और क्यूँ वे आज आजादी के 65 साल बाद भी गरीबी की रेखा को पार न कर पायें हैं???

आज हमें आँखें खोल का वस्तु -स्थिति का सामना करना होगा 
और 
कुछ कड़े प्रश्न अपनों से ही करने होंगे  ......
और उन को जवाब देने को बाध्य करना होगा .....
हमें जागना होगा और आँख मूँद कर किसी पर भी ....भले ही वह हमारा जाति  भाई हो .....विश्वास नहीं करना होगा ....
हमें अपने हकों के  लिए अब जागना और सचेत रहना होगा .....

हमें एक जुटता दिखानी होगी और एक भारतीय समाज बन कर उभारना होगा .....

एकता में  शक्ति है .....
परन्तु 
हम तो विभिन्न जातियों और सम्प्रदायों में बंटें हैं ......
हम आज सत्ता के दलालों के हाथ का खिलौना बने हैं ......

अब इन के बिछाए जाल से निकलना होगा और एक समाज भारतीय समाज का गठन करना होगा ......

हमारी जाति  हमारी पूजा पद्यति है और वह हमारा निहायत ही निजी मामला है ....
इसे हमारे घर तक सीमित रहने दीजिये ......

हमें  एक सशक्त भारतीय समाज बन कर उभारना है और इन सत्ता लोलुपों के कुत्सित इरादों को नाकाम करना है .......

देश हित सर्वोपरि ......
जय हिन्द !!!!
जय भारत !!!! 

Thursday, November 29, 2012

AAP राजनीति में क्यूँ ?

हम सब जानते हैं कि  विगत दो वर्षों में  लाखों भारतीय नागरिक भ्रष्टाचार के खिलाफ सड़कों पर उतर आये थे .....
हमारे आम जन के इस विरोध प्रदर्शन ने हमारे आज के राजनीतिज्ञों का बदसूरत और स्वार्थी चेहरा उजागर कर दिया है ....

आज के समय में  कोई भी राजनैतिक पार्टी आम जनता के लिए काम नहीं कर रही है .....

जन लोकपाल आन्दोलन एक आवाज़ थी आम जन की अपने राजीतिज्ञों को -  जो कि नक्कारखाने  में तूती  साबित हुई.....

लगभग दो साल तक हम जनता ने हर प्रकार की कोशिश की सरकार तक अपनी बात पहुंचाने की - शान्ति पूर्ण विरोध,जेल भरो,अनिश्चित कालीन अनशन,सरकार के साथ बातचीत के कई दौर - हम ने हर संभव कोशिश की कि सरकार  भ्रष्टाचार पर लगाम लगाने हेतु एक  मज़बूत लोकपाल  कानून बनाए .....

परन्तु जनता के जन लोकपाल बिल के समर्थन की इस बड़ी लहर को सभी राजनैतिक पार्टियों ने अनदेखा किया और जनता को धोखा दिया और जानबूझ कर इसे सदन में  अधर झूल की स्थिति में  लटकाए रखा ....

शांतिपूर्ण विरोध और अनशन का समय अब बीत चुका है .....

अब समय है कार्यवाही का .....

क्यूंकि ज़यादातर राजनैतिक पार्टियां भ्रष्ट ,लालची, मोटी चमड़ी की और असंवेदनशील हैं इस लिए अब समय है सारी शक्ति को आम जन के हाथों में पुन: देने का ......

हम ये कदापि नहीं कहते कि हर एक राजनीतिज्ञ भ्रष्ट और लालची है।
आज भी कई अच्छे इरादे वाले व्यक्ति हैं जो कि सच्चे दिल से जन सेवा और देश सेवा करना चाहते हैं 

परन्तु 

आज की शासन व्यवस्था इमानदार  राजनीतिज्ञों को सही प्रकार से काम नहीं करने देती .....

हम ये भी नहीं कह सकते कि AAP  से जुड़ा  हुआ हर एक व्यक्ति शत प्रतिशत इमानदार होगा ।

हमारा ये कहना है कि व्यवस्था भ्रष्ट बन चुकी है और इसे तुरंत बदलने की आवश्यकता है .....

AAP का राजनीति में  आने का उद्देश्य सत्ता प्राप्ति कतई नहीं है ....

हमारा उद्देश्य है इस भ्रष्ट और स्वयं की सेवा करने वाली व्यवस्था में  हमेशा के लिए परिवर्तन लाना।
जिस से चाहे जो भी कोई राजनैतिक पार्टी भविष्य में सत्ता में  आये हमारी व्यवस्था शासन किसी भी स्तर  के भ्रष्टाचार को झेलने और काबू करने में सक्षम  हो ....

AAP दूसरी पार्टियों से भिन्न कैसे

How is AAP(Aam Aadmi Party) different from other political parties - 

1. There is no central High Command in AAP.
2.No use of red beacon on the cars.
3.No special security for AAP MP's and MLA's.
4.No election tickets for criminals and mafia dons.
5.No luxury bungalows for AAP MP's and MLA's.
6.Full disclosure of all donations and expenses on website.
7.A strict internal lokpal in place to ensure zero tolerance of corruption.
8.No two members of same family will get election ticket or official post.
9.Committed to enacting Right to Reject and Right to Recall corrupt politicians.
10.Equal representation of women,youth,dalits and other backward classes in the party.


आम आदमी पार्टी और दूसरी राजनीतिक पार्टियों से अलग कैसे है ?

1.पार्टी में  कोई हाईकमान नहीं है।आम आदमी की पार्टी है और आम आदमी सर्वोपरि है ।
2.लाल बत्ती की गाडी नहीं।आम और ख़ास में कोई भेद नहीं।
3.सांसद और विधायकों के लिए कोई विशेष सुरक्षा नहीं।
4.आपराधिक पृष्ठभूमि वाले व्यक्ति को चुनाव में टिकट नहीं।
5.सांसदों और विधायकों को कोई बड़े बंगले नहीं।
6.आर्थिक दान और खर्चों का पूरा ब्यौरा website पर डाला जाएगा।
7.पार्टी का आंतरिक निष्पक्ष लोकपाल पार्टी के भीतरी भ्रष्टाचार पर लगाम लगाने को।
8.किसी भी परिवार के दो सदस्यों को न तो पार्टी का टिकेट मिलेगा और न ही परिवार के दो सदस्य संगठन में पदाधिकारी हो सकते हैं।
9.राईट टू रिकॉल और राईट टू रिजेक्ट द्वारा भ्रष्ट नेताओं की राजनीति पर विराम।
10.पार्टी में महिलाओं,युवाओं,दलितों और दूसरे पिछड़े वर्ग का समान प्रतिनिधित्व।

Friday, October 26, 2012

एक पुराने भारत की तर्ज़ पर नया भारत बनाएं

विडंबनाओं का देश भारत .....
एक ओर अनाज उत्पादन में बहुतयात ..दूसरी ओर भूख से होने वाली मौतों की संख्या में वृद्धि....
क्या ये भारतीय जन-मानस के उदासीन होते रवैये को दर्शाता है या हमारे उभरते स्वार्थ को....
क्या हमारी पुरानी नीतियां सही नहीं थी??
अभी दिल्ली में हुए शिविर में हिमाचल प्रदेश के एक साथी कार्यकर्ता से मुलाकात हुई ओर उन्होंने बताया कि हिमाचल के कई गाँवों में ये व्यवस्था आज तक है कि शाम को घोषणा होती है कि जिस व्यक्ति ने अभी तक भोजन नहीं किया और अगर अभाव है तो मंदिर से भोजन की सामग्री ले कर पका ले......
कोई राहगीर भी वहां भूखा नहीं सोता.....
सब की भूख को तृप्त करने हेतु  गाँव प्रबंध करता है.....

आज के इस युग में हम से कहाँ चूक हो गयी???
पहले से ज़यादा संसाधन संपन्न हम आज  किस  ओर बढ़ रहे हैं ???

एक उदासीन,स्वार्थी समाज ??

नहीं हम भारतीय ऐसे नहीं हो सकते.....

अपने सुप्त संस्कारों को ललकार के जगाइए....
अब समाज ओर जनता के जागने का समय है....
कोई भी अभावग्रस्त व्यक्ति/परिवार को देख अब हम चुप न बैठेंगे,ऐसा ठान लीजिये.....

हमारे टैक्स का पैसा है सो हम अपने जनसेवकों ओर जनप्रतिनिधियों को मजबूर करें कि वो किसी को भूखा न सोने दें....
हम अपने अपने स्तर पर  फिर चाहे वो वार्ड स्तर हो या मौहल्ला  स्तर नागरिक समितियां बनाएं जिस में सरकार/स्थानीय मदद से भोजन सामग्री हर रात को वितरित करने का प्रावधान हो.....

अब कोई भूखा न सोने पाए.....

ये हम जनता का कर्त्तव्य हो....और इस कर्त्तव्य के प्रति हम सचेत हों.....

ये स्थानीय नागरिक समितियां किस भी राजनैतिक पार्टियों से सम्बंधित न हों ....
और इन स्थानीय नागरिक समितियों की सिफारिश पर ही भोजन सामग्री उन के क्षेत्र  में वितरित की जाए....

क्या हम ऐसा कर पायेंगे ???

आइये एक पुराने भारत की तर्ज़ पर नया भारत बनाएं.....

जहाँ किसी स्थानीय भारतीय का भूखा  सोना एक आम भारतीय का अपराध हो...

आइये भारत को  एक समय का भर पेट भोजन तो उपलब्ध कराएं......

Monday, October 22, 2012

देश हमारा


देश  सेवा  -
क्या  शब्द  इस  धर्म  की  विवेचना   कर  पायेंगे ....
ये  एक  भावना  है ,एक  जज्बा ...
जिसे  बिरले  ही  महसूस  कर  पाते  हैं ....
दावा  करने  वाले  कई  बार  सिर्फ  दावा  करते  ही  रह  जाते  हैं ....
खैर  मुद्दे  की  बात  पर  आते  हैं .....
आज  लौंगिया  क्षेत्र  का  दौरा  किया ....
एक  नया  अजमेर ....
एक  पुराना  अजमेर ...
नया  यूँ  जिसे  हम  ने  पहले  कभी  न  देखा  था ...
पुराना  यूँ  क्यों  कि ये  पुराने  अजमेर  की  एक  बसावट  है ....
स्थानीय  पार्षद  के  प्रतिनिधि  से  मिले  और  अतिवृष्टि  से  प्रभावित  लोगों  के  गिरे  घरों  को  देखा ....
जान  का  मोल  डेढ़  लाख  रुपया  है ...जाना ...
हाय   री  किस्मत ...हम  ने  तो  सुना  था  जीवन  अनमोल  है ...
खैर  गरीबों  की  जान  है ....
कच्चे  घरों  में  मरे  थे  सो  कीमत  वो  ही  रही ...
जो  पव्वे  और  चंद  रुपयों  में  अपने  ज़मीर  और  वोट  को  बेच  देते  हैं  उन्हें  सरकार  भी  उसी  तराजू  में  रख  कर  तौलती  है ...
सो  भाई  जान  उन  हादसे  के  शिकार  लोगों  की  जान  की  कीमत  लगी  डेढ़  लाख  रूपये ...
इतने  में  तो  हमारे  मंत्रियों  का  toilet नहीं  बनता  है ...
और  बेचारे  गरीब  भारतीयों  की  जान  की  कीमत  है  ये  तो ...
खैर  जाने  दीजिये ...
हम  रेंगते  कीड़े  जब  तक  अपनी  पहचान  ऐसी  ही  रखेंगे  तो  ये  ही  होगा ...
हम  को  भी  लीडर  समझ  हाथा  जोड़ी  होने  लगी ....
समझाने  पर  माने  कि  हम  भी  उन  की  तरह  ही  जनता  हैं  और  उन  को  उन  की  ताकत  का  एहसास  कराना  ही  हमारा  धर्म  है ...
शायद   ग़ुलामी  हम  ने  सीख  ली  है ...
हम  अपने  काम  को   करवाने  के  लिए  सिर्फ  मुंह ही  ताकते  रहते  हैं ....
कोई  और  हमारा  मसीहा  बने  बस .....
बहुत  बड़ा  और  दुष्कर  काम  है  हमारे  सामने  ....
आम  आदमी  को  ख़ास  होने  का  एहसास  लौटाना....
उस  खुदी  हुई  खाई  को  पाटना .....
अवैध  बस्तियां ....
पहाड़ों  पर  बसी  हुई ....
कोई  किसी  प्रकार  की  सुविधा  नहीं ....
ये  है  हमारा  हिन्दुस्तान ....
बस  अपनी  ज़िन्दगी  के  पल  गुजारता ....
और  अपने  आने  वाली  पीढ़ी  को  भी  ये  ही  विरासत  सौंप  के  जाता  हुआ ....
क्या  ये  सरकार  की  गलती  है ....
नहीं  हम  तो  ये  ही  मानते  हैं  कि  ये  हमारी  गलती  है .....
हम  ने  अपनी  ज़िन्दगी  को  इसी  प्रकार  से  रेंगते  हुए  काटने  का  समझौता  किया  हुआ  है  अपने  आप  से ....
काश  हम  इन  कैदों  से  आज़ाद  हो  पायें ....
कोशिश  ज़ारी  है ....
देखते  हैं  कि  जागरूकता  की  इस  लहर  में  हम  कितना  सफल  होते  हैं ....
क्या  हम  इस  देश  के  नए  नेता  भर  रह  जायेंगे  या  हम  अपने  प्रकार  के  हर  आम  आदमी  को  इस  देश  का  ख़ास  आदमी  बनाने  में  सफल  होंगे ....
ये  सब  भविष्य  के  गर्भ  में  है ....
सफलता  की  दुआएं  मांगते  हैं  उस  अदृश्य  शक्ति  से ....
सफलता  इस  जूनून  के  कदम  चूमे  बस  ये  ही  ख्वाहिश  है ....

Sunday, October 21, 2012

हम और भ्रष्टाचार

एक के बाद एक -
भ्रष्टाचार परत दर परत खुलता ही जा रहा है.....
क्या वाकई दूसरे लोग इस के दोषी हैं.....
क्या सच में ठीकरा इन सब के सर फूटना चाहिए???
क्या कहीं न कहीं हम सब का इस में योगदान नहीं है???
एक कहानी याद आती है कि एक चोर को जब सजा हुई तो उस ने ये कहते हुए  अपनी माँ से मिलने से इनकार कर दिया कि जब में छोटी छोटी चोरी करता था इन्होने मुझे रोका नहीं...
बाल मन पर चोरी कोई गलत बात है ऐसा छाया ही नहीं.....
आज भ्रष्टाचार का भी वही स्वरुप है......
आम आदमी इसे हमारे डीएनए में है ऐसा मानता है...
क्या वाकई ये हमारी राग राग में समा चुका है???
हम घर आँगन  बुहारते हैं...कचरा हमारे घर के बाहर फैंक देते हैं....
आज हमें रेलवे का टिकेट चाहिए - कौन लाइन में लगे??
हम थोडा बहुत किसी के हाथ में रख कर टिकेट जल्दी प्राप्त कर लेते हैं...
फलां जगह हमारी जान पहचान से काम निकाल लेते हैं....
यदि क़ानून का उलंघन करते हैं तो कुछ दे दिला के मामला रफा दफा कर देते हैं .....
वोट देते हुए चाँद रुपयों  में बिक जाते हैं.....
और क्या क्या गिनाएं.....
छोटे भ्रष्टाचार से बड़े भ्रष्टाचार की ओर कदम कब बढ़ जाते हैं पता ही नहीं चलता.....
कुछ देर चिंतन मनन कीजिये ....
क्या पता इस का तोड़ हमारे ही हाथ में हो???
न कुछ देने लेने का रिवाज़ बनाएं और न इस भंवर में फंसें......
अपने गिरेहबान में झांकिए......
इस कैंसर का तोड़ हम और सिर्फ हम हैं.....
ज़रुरत है तो हमें अंगद के पाँव के सामान अडिग रहने की इच्छाशक्ति की......
वन्दे मातरम्.....

Saturday, October 20, 2012

होड़ का तोड़

होड़ मची हो होड़.......
ये भी ले लो,वो भी ले लो....
बस वोट हमें देना,हमारे घोटाले भूल जाना....
हम ने आप के लिए ये किया ...हम ने आप के लिए वो किया...
सब जनता को मूर्ख मानते हैं...
आखिर हम ने ऐसा अपने आप को दिखाया भी है न...
आखिर 65 सालों में हम ने किस बात पर वोट दिया है??
कभी जाति के नाम पर,कभी जान पहचान के नाम पर तो कभी पार्टी के प्रति प्रतिबद्धता के नाम पर...
और तो और..पढ़े लिखे मिडिल क्लास बिरादरी ने तो चुनावों से दूरी सी बना रखी है
 मानो ये उन का कर्त्तव्य नहीं हक है जिसे लें न लें उन की मर्ज़ी...
खैर ऐसा करना उन की मजबूरी रही है...
वोट किस को दें??
उन की बुद्धिमत्ता पूर्ण नज़रों में जब कोई प्रत्याशी लायक नहीं था तो वोट न करना ही एक रास्ता नज़र आता था...
ताकि
वे अपने ज़मीर पे कोई बोझा न रखें कि उन्होंने गलत प्रत्याशी का चयन किया है....
पर अब समीकरण बदल रहे हैं...
अब अच्छे प्रत्याशी ज़रूर उतारे जायेंगे.....
और 
यदि आप की निगाह में कोई भी सही प्रत्याशी नहीं है तो एक विकल्प और भी है सब के सामने 
अपना वोट रजिस्टर ज़रूर कराएं और न दें...
ये हमारी ओर से राजनीतिक पार्टियों को आईना दिखाना होगा कि हम उन के गलत प्रत्याशियों का अपने जन प्रतिनिधियों के तौर पे चयन हरगिज़ न करेंगे....
हमारा यह विरोध भी जन जागृति की एक नयी लहर पैदा करेगा ....
बस ज़रुरत है हमारे जागने की.....
इसी कड़ी में अब सम्पूर्ण प्रदेश में विधानसभा चुनावों के मद्देनज़र वोटर लिस्ट अवलोकन हेतु उपलब्ध करवाई जायेगी....
जागरूक मतदाता बनें और इस का अवलोकन कर अपना नाम नहीं होने की स्थिति में जुडवाने हेतु कार्यवाही जरूर  करें....
अब देश की जनता को ही आगे आकर इस भ्रष्ट व्यवस्था को बदलना है...
हम अपने स्तर पर जितना कर पायें ज़रूर करें ....
भारत माता आप की ओर टकटकी लगा कर देख रही है
उसे अपने सपूतों पर विश्वास है......
बस हमें छोटे छोटे कदम ले कर अपनी भारत माता के विश्वास पर खरे उतरना है.....
जय हिन्द !

Wednesday, October 17, 2012

ज़मीर चाह के भी नहीं जगा सकते.......

केजरीवाल के आरोप चिल्लर .......

गडकरी जी की नज़र में आरोप चिल्लर और रशीद अल्वी जी की निगाह में संगीन.....

जनता है ग़मगीन.....

अरे भाई  बनाना रिपब्लिक के  मैंगो  मैन के चिल्लर आरोपों का ही जवाब दे दीजिये....

ठीक कहा आप ने ज़मीन हडपी नहीं लीज़ पर मिली है....
फिर उन किसानों को क्यों नहीं मिली जो अपनी ज़मीन वापिस मांग  रहे थे ?

खैर ....

एक बात ज़हन में उठती है....

अगर आप पर आरोप लगते हैं तो भाजपा कैसे बदनाम होती है...

गलती तो आप ने की ....

अब बेचारे सीधे सच्चे भाजपाई भी आ गए लपेटे में.....

आखिर पार्टी लाइन के पीछे दुम दबा के जो चलना उन की मजबूरी जो  है....

यदि सच को आइना दिखाने की हिमाकत करते हैं तो अनुशासनहीनता का आरोप सीधे सीधे उन पर लगता है.....

ज़मीर चाह के भी नहीं जगा सकते.......

ये भारत में कैसा सिस्टम है ???

राष्ट्रीय दामाद पर आरोप लगते हैं तो कांग्रेस बचाव में....
कानून मंत्री का पर्दाफाश होता है तो कांग्रेस बचाव की मुद्रा में......

क्या हमारी  राजनैतिक पार्टियाँ पार्टी न हो कर  न हो कर कुछ भ्रष्टाचारियों की जागीर मात्र  बन कर रह गयी है ??

एक बात समझ में नहीं आती की देश भर में बहुत सी co.operatives काम कर रही हैं पर धन वर्षा कुछ पर ही क्यूँ??? 

गडकरी साब के जीवन के मिशन से उन्हें इतना लाभ कैसे अर्जित हो रहा है???

किसान मरते जा रहे हैं और गडकरी जी अमीर होते जा रहे हैं???

ये कैसी co-operative  है ???

जिस के भले के लिए बनी है वो मर रहा है 

और 

जो इस जीवन के मिशन को ले कर चल रहा है वो फल फूल रहा है....

वाह री किस्मत.....

गरीब, अमीर की ज़िन्दगी की मिशन में भी आत्महत्या को मजबूर....

कांग्रेस के  भ्रष्टाचार के खिलाफ जनता ने ही माहौल बनाया और अब उन्ही भ्रष्टाचारियों के साथ मिलकर भाजपा को नुक्सान पहुंचाने की साज़िश भी हम जनता ही रच रही है ???

दूसरों पर आरोप आरोप और आप पर षड़यंत्र ???

सुषमा जी कहती हैं कि चाह कर भी चार की जगह तीन आरोप ही लगा पाए ???

चलिए तीन का ही स्पष्टीकरण दे दीजिये......

जनता सांस रोके खड़ी है अपने प्रमुख विपक्षी दल द्वारा (उन के अध्यक्ष पर लगाए गए) आरोपों के खंडन का  ....

ये पब्लिक है भैया सब जानती है......

हमाम में सब नंगे हैं......

ये पहचानती है......

Thursday, October 11, 2012

राजनीतिक क्रान्ति का प्रस्तावित स्वरुप -

राजनीतिक  क्रान्ति का प्रस्तावित स्वरुप - 

(बहुत से लोगों से विचार विमर्श चल रहा है और अभी कमोबेश ये स्वरुप सामने आया है) 

हर एक के मन में कई विचार और कई प्रश्न हैं.....

नयी पार्टी के बारे में और उस के दृष्टिकोण के बारे में....

सब से पहले-पार्टी का गठन सत्ता हासिल करने हेतु न हो कर सत्ता के केन्द्रों को ध्वस्त कर सत्ता जनता के हाथों में सौंपने के लिए हुआ है.....

1.  सीधे जनता का राज होगा-यानी कि किसी भी इलाके में सरकारी पैसा जनता कि मर्ज़ी से खर्च होगा और सदन में लिए  जाने वाले हर अहम् फैसले(कानून और नीतियाँ बनाने में) में जनता की भागीदारी होगी|
2. भ्रष्टाचार दूर करना - जन लोकपाल/जन लोकायुक्त  के द्वारा समयबद्ध भ्रष्टाचार की जांच और दोषियों को छः महीने में जेल |
    भ्रष्टाचारी की संपत्ति ज़ब्त और नौकरी से बर्खास्त.... 
    तय समय सीमा में हर सरकारी काम और न होने पर दोषी अफसर की तनख्वाह से पीड़ित जनता को   पेनल्टी |
3. महंगाई - बड़ी कंपनियों की सरकार के साथ सांठ-गाँठ ख़त्म की जायेगी.
    जैसे....बड़ी कंपनियों को 13 लाख करोड़ रुपयों  की छूट और आम जनता पर 2 लाख करोड़ रुपयों का टैक्स....यदि आम जनता पर ये टैक्स माफ़ हो जाए तो पेट्रोल 50 रूपये लिटर और डीज़ल 40 रूपये लिटर हो सकता है  और  साथ ही गैस सिलेंडर  350 रूपये के हिसाब से लोग जितने मर्ज़ी सिलेंडर ले सकते हैं.
  इन दामों में कमी के साथ ही अन्य वस्तुओं पर महंगाई अपने आप ही कम हो जायेगी.. 
  राजस्थान के 1250 वर्ग किलोमीटर के तेल के कुएं विदेशी कंपनियों से वापस ले इस का लाभ सीधे जनता को दिया जाए तो तेल और गैस की कीमतें और कम की जा सकती हैं...(विदेशी कम्पनियाँ 3 डॉलर प्रति बैरल से तेल  निकाल 100 डॉलर प्रति बैरल बेचती हैं....)
  बिजली -पानी को निजीकरण/विदेशी कंपनियों को दिए जाने के कारण दामों की वृद्धि को रोकना है...
  सरकारी सट्टेबाजी (दाल,चावल गेंहू आदि )को बंद  करना है....
  4. भूमि अधिग्रहण - 
      भूमि अधिग्रहण स्थानीय जनता की मर्ज़ी के बिना न हो ऐसा सुनिश्चित किया जाएगा....
5. सबको अच्छी शिक्षा और अच्छी स्वास्थ्य सेवायें - 
    सरकारी स्कूलों और अस्पतालों को विश्वस्तरीय बनाना है और यदि ये ठीक से काम नहीं करते तो उन पर सीधे स्थानीय जनता का नियंत्रण होगा.
6. राइट तो रिजेक्ट  -
    उम्मेदवार पसंद न होने पर कोई विकल्प न होने की स्थिति में हमें किसी न किसी को वोते देना पड़ता है...अब नापसन्दी का एक बटन लगाया जाएगा...यदि इस बटन को बहुमत मिलता है तो चुनाव रद्द किये जायेंगे और एक महीने में दोबारा चुनाव किये जायेंगे और नकारे गए उम्मेदवार दुसरे चुनावों में खड़े नहीं हो पायेंगे...
7. राइट तो रिकॉल - 
    चुने जाने के बाद कई प्रतिनिधि जनता की आवाज़ नहीं सुनते ऐसे जनप्रतिनिधियों की शिकायत चुनाव आयोग में कर के उन्हें हटाया जा सकेगा और नए चुनाव करवा सकेंगे.
8. किसानों को फसलों के उचित दाम -
    स्वामीनाथन  आयोग की रिपोर्ट (सारी लागत निकालने के बाद किसान को कम से कम 50 % मुनाफा मिलना चाहिए)को लागू करना.
    किसानों के मुद्दों और फसल के दाम तय करने वाली समितियों में किसानों की बहुतायात होनी चाहिए ताकि उनकी आवाज़ सुनी जा सके.
9. युवाओं को आह्वान- 
    लड़ो पढ़ाई करने को,पढो समाज बदलने को : देश के नेताओं ने कॉलेज के नाम पे दुकानें खोल रखी हैं |युवा चक्कर में फंसे हैं.डिग्री खरीदने के बाद नौकरी की मशक्कत ,जिस के लिए रिश्वत |
    देश और समाज के बारे में सोचने का समय ही नहीं मिलता.
    युवाओं के सामने बड़ी चुनौती - शिक्षा की इन दुकानों  के खिलाफ ,नौकरियों  में भ्रष्टाचार के खिलाफ लड़ाई  और सम्पूर्ण व्यवस्था परिवर्तन के लिए तैयारी करनी होगी .....
    यह क्रान्ति युवाओं की सीधी भागीदारी के बिना संभव नहीं होगी.....
 
    अगर पार्टी के उम्मेदवार जीतने के बाद भ्रष्ट हो जाएँ तो......
    भ्रष्ट और घमंडी नेताओं निकालने और सज़ा दिलवाने की चाबी जनता के हाथ में दी जायेगी.....
    भ्रष्ट लोगों को छ : महीने में जेल - जीतने के बाद जन लोकपाल कानून 10 दिनों में पारित किया जाएगा|भ्रष्ट नेता ,चाहे वो हमारी पार्टी का हो या अन्य पार्टी का ,उस के खिलाफ जनता लोकपाल में शिकायत कर सकेगी|भ्रष्ट नेता को छ : महीने में जेल होगी.....
    जीतने पर  राइट तो रिकॉल कानून पारित किया जाएगा - जनता के मर्ज़ी के मुताबिक़ काम न करने पर जनता चुनाव आयोग में आवेदन करके निर्वाचित जन प्रतिनिधि को हटा सकेगी....

    जनता की ये पार्टी दूसरी पार्टियों से अलग कैसे होगी - 
    1. जीतने के पश्चात कोई जनप्रतिनिधि लाल बत्ती की गाडी नहीं लेगा |
    2. जनप्रतिनिधि कोई सुरक्षा नहीं लेगा....
    3. जनप्रतिनिधि को कोई बड़े बंगले नहीं मिलेंगे....
    4. टिकट का वितरण रुपयों से न होगा....जनता से पूछ कर टिकट दिया जाएगा |
    5. अपराधियों या भ्रष्टाचारियों को टिकट नहीं |
    6. पार्टी के पदाधिकारियों पर  सख्त अचार संहिता लागू होगी.... 
       आंतरिक स्वतंत्र लोकपाल (दो रिटायर्ड जज ) द्वारा सभी पदाधिकारी जांच के दायरे में रहेंगे...
       जनता सबूत के साथ किसी भी जज को शिकायत कर सकती है|
    7. पार्टी को जो भी चंदा मिलेगा वह तुरंत वेब साईट पर डाला जाएगा...
        सारे खर्चों का ब्यौरा भी वेब साईट पर डाला जाएगा....
    8. किसी भी परिवार के दो सदस्यों को चुनाव लड़ने का मौका नहीं दिया जाएगा.

Tuesday, October 9, 2012

मैंगो मैन और बनाना रिपब्लिक

व्यक्ति गुणों की खान है और साथ ही गुनाहों का दलदल भी...

अब देखना ये है कि हमें गुनाहों के दलदल में दफ़न होना है कि गुणों के पारस पत्थर से छू कर सोने में परिवर्तित होना है....

गुनाहों के दल दल को तो आज का मानव बाखूबी समझता भी है,जानता भी है और मानता भी है   इसी के साथ उस में स्वयं कूदता भी है,किसी का हाथ थामता भी है और फिर ईश्वरीय दया से आँखों से ओझल  भी हो जाता है उसी दलदल में....

गुणों के पारखी कम हैं 
गुनाहों के देवता ज़यादा......

गुणों के कद्रदान उँगलियों पर गिने जा सकते हैं ....वे अपनी लड़ाई अपने स्तर पर अकेले ही लड़ते नज़र आते हैं....
गुनाहों के दलदली घोड़े हिनहिनाते,धमकाते और दुलत्ती मारते सब को चारों खाने चित्त करने में जुटे रहते हैं....
गुणी की लड़ाई को अवसरवादिता,निरंकुशता और अराजकता आदि नामों से नवाज़ा जाता है.....
उन्हें येन केन प्रकारेण विवादों में घसीटा जाता है....
परन्तु
ये गुणों के कद्रदान न जाने किस मिटटी के बने हैं और देश प्रेम का क्या जूनून उन पर सवार है कि वे टस से मस नहीं होते....
अर्जुन सा लक्ष्य ले वे एक राह पकडे रहते हैं....अपमान का घूंट पीते रहते हैं और अपनी चुनी हुई राह पर बढ़ते चले जाते हैं.....
और 
गुनाहों के पक्षधर ???
वे अंतत: दलदल के अंधियारे में बेनाम दफ़न हो जाते हैं....

आज के सन्दर्भ में ही बात करते हैं.....
भ्रष्टाचार के दलदल में गोते लगाते राष्ट्रीय दामाद एक भद्दा दाग हैं सासू माँ पर.....
पहले तो इतना छोटा सा घोटाला कर बी पी एल श्रेणी के भ्रष्टाचारियों में अपना नाम दर्ज करा दिए और फिर अपने आप को घिरते देख सासू माँ के शासन पर ही कीचड उछाल दिए -बनाना रिपब्लिक  कह के....
वो सासू माँ जो देश के शासन कुशासन पर कभी मुंह न खोलती थी को भी राष्ट्रीय दामाद के लिए मुंह खोलना पड़ा.......
खैर इतने बड़े तमगे के बाद तो मानो होड़ ही लग गयी अपनी वफादारी दिखाने की....
सब मंत्री लग गए मिजाजपुर्सी में......
होड़ लगी है भाई मेडम को अपनी मेडम भक्ति दिखाने की - कोई जान देने को तैयार है तो कोई जान लेने को....

चलिए इन के तो ये दामाद हैं - 

अब आते हैं खरी खरी पर.....

जिन के दामाद नहीं भी हैं उन के मुंह पर ताले क्यों लग गए ???

कल एक मिमियाता स्वर सुनाई पड़ा ....
केजरीवाल के पास कोई पुख्ता सबूत नहीं हैं वाड्रा के खिलाफ.....

अरे भाई इतने सबूतों के बाद तो थर्ड डिग्री ही बचता है....

वो करवाने की ताकत न पक्ष में है न विपक्ष में.....

हमाम में सब नंगे हैं......

तो जनता 2014 तक राम भजो......
और 
स्मरण शक्ति का ह्वास न होने पाए इस के लिए शंखपुष्पी और बादाम ( यदि बनाना रिपब्लिक की महंगाई खरीदने दे ) लेते रहें..... 

अब चोट जो करनी है पक्ष विपक्ष की इस सोच पर कि आम आदमी की याददाश्त कमज़ोर है...

अब आप का litmus test   है 2014 में....

देखते हैं क्या रंग लाती है जनता की मुहीम........

वन्दे मातरम्.......

Sunday, October 7, 2012

अब याचना नहीं .....

अब तो दिल की ही मानिए....
इस दिल की आवाज़ पर उठना जानिये...
जीना तो हर हाल में है ही, पर दिल की आवाज़ को सुनना जानिये...
जीता तो दुनिया में है हर कोई...
पर
 अपनी शर्तो पे जीना जानिये....
सोते हुए बहुत  काटी है ज़िन्दगी...
अब इस देश की खातिर सड़कों पे जीना ठानिये....
अब याचना नहीं .....
अपने हक को लड़ के लेना जानिये....
इस सुप्त देश प्रेम को झकझोर के जगाइए और ठान लीजिये कि हम अपने हक को अब ले कर ही रहेंगे...
ये समय है ज़ोरदार विरोध का.....
हर नाजायज़ दबाव को ठुकराने का...
अपनी जायज़ मांगों के लिए अड़ जाने का....
रोशन सवेरा तो अपनी ही हिम्मत से होगा...
दूसरों का मुंह ताकना बंद कीजिये...
अपनी सुप्त ताकत को पहचानिए....
किस भी भेद-भाव,दबाव ओर गलत काम को सहने की नहीं रखी...

अब समय है सविनय अवज्ञा आन्दोलन का.....

किसी भी देश हित,समाज हित  और शोषित जन के मुद्दों को ले कर सड़कों पर आईये और अपनी ताकत से उस नाजायज़ बात को समाप्त कीजिये....
पहले गोरों से लड़े थे अब अपनों से लड़ने का समय है...
तब तक जब तक वे हमें...
यानी कि
 आम जन को वोट-बैंक या प्रजा मानना बंद न कर दें....
आइये लोकतांत्रिक देश को सच्चा लोकतंत्र देने की दिशा में कदम बढायें.....
जहाँ जनता के द्वारा,जनता के लिए और जनता का शासन हो...

स्वराज और सुराज....

हमें सुराज तो चाहिए ही ,परन्तु ऐसा सुराज जो स्वराज में समाहित हो....

स्वराज...जनता का राज....जहाँ हर महत्वपूर्ण फैसला जनता से पूछ कर लिया जाए....

सरकारी कोष का उपयोग जनता की मर्ज़ी से किया जाए...

जनता मांगे कि इस जगह सड़क की ज़रुरत है,इस जगह विद्यालय की....
हमारी ज़रूरतों और इच्छा के मुताबिक ही हमारे टैक्स का पैसा खर्च हो.....

किसी भी जनप्रतिनिधि का चयन उस कि छवि और कार्यकुशलता के बल पर हो नाकि उस कि जाति उस का प्रमाणपत्र बने....

हमें अपनी जाति पर गर्व होना चाहिए परन्तु ये हमारे  निजी जीवन तक ही हो....

घर के बाहर हम एक भारतीय कहलाना पसंद करें...

इस देश प्रेम के ज्वार को उठाइये....

हम बार बार कहते हैं कि अपने हक के लिए उठ खड़े होइए क्यों कि ये लड़ाई आप के और हमारे जुड़े बिना पूरी न हो पाएगी...

ये हमारी लड़ाई है.....

आज किसी भी प्रत्याशी को हम चुनें कि ये हमारा जनप्रतिनिधि बन सकता है....
कोई भी व्यक्ति स्थानीय जनता पर थोपा ना जाए...
हमें इस दिशा में  मज़बूत इरादे रखते हुए आगे बढ़ना होगा
 और
 राजनैतिक पार्टियों को अपनी सुलझी सोच का परिचय देना होगा
ताकि
 मूर्ख,भुलक्कड़  जनता का तमगा जो हमें मिला है उसे सजग जनता में तब्दील किया जा सके.....
आज समय है चेत जाने का....

अभी नहीं तो कभी नहीं की स्थिति है....

अपनी आने वाली पीढ़ी को जवाब देने की स्थिति में आप अपने आप को पाते हैं क्या ...

इस का आकलन आप स्वयं करें....

आखिर रोज़ सुबह आईने से दो चार तो आप को  ही होना हैं न....

Thursday, October 4, 2012

आज की राजनीति का स्वरुप

हारता जो नहीं मुश्किलों से कभी ,
जिसका मकसद है मंजिल को पाना ,
धूप में देखकर थोड़ी सी छाया ,
जिसने सीखा नहीं बैठ जाना ,
आग जिसमे "लगन " की जलती है ,
"कामयाबी " उसी को मिलती है ...

 हमें अब एक ऐसी राजनीति की शुरुआत करनी होगी जिस में हम हर सही बात को सही और गलत कार्य को गलत कहने का दम रख सकें...

तुष्टिकरण की नीति फिर चाहे वो किसी भी जाति या सम्प्रदाय या फिर बहुसंख्यक या अल्पसंख्यकवाद क्यों न हो को हमें नकारना है ...


हम में देश प्रेम का वो जज्बा होना होगा जिस के सामने हर पार्टी की पोलिटिक्स शून्य हो...


कहने का तात्पर्य है कि हम सब एक ऐसी नयी पार्टी बनाएं जहाँ हर अच्छे कार्य की प
्रशंसा की जाए फिर वे चाहे किसी भी पार्टी द्वारा किया गया हो....

देश प्रेम सर्वोपरि और तुच्छ स्वार्थ नगण्य.......

यदि हम इन मापदंडों पर खरे उतारते हैं तो यकीन कीजिये हम एक लम्बी रेस का घोडा साबित होंगे......

हमें कोई भी तुष्टिकरण की नीति,कोई अलगाववाद या किसी भी जातिवाद का सहारा न लेना पड़ेगा...

धीरे धीरे हमारे रुख को जनता स्पष्ट रूप से देखेगी और जानेगी और मानेगी....

ज़रुरत है तो हमें अपने आदर्शों पर चलते रहने की और डटे रहने की.....

जीत हम जनता की ही होगी.......

Monday, October 1, 2012

जागृति के पंखों से उड़ान और पुलिस

जागृति के पंखों से उड़ान - 
अपने हकों के लिए जनमानस के विचारों का  द्वंद्व अब मुखर हो क्रियान्वित होता नज़र आ रहा है......
अब अपने हकों की लड़ाई लड़ना सहज सा नज़र आने लगा है सब को...
अपने आप पर confidence  बढ़ रहा है जनता का....
एक राह सुझाई थी गाँधी जी ने और अब अन्ना जी ने......
विरोध के मौन स्वर अब मुखर हो सड़कों पर उतरने लगे हैं अपने हकों के लिए......
अब सब जनता को ये एहसास होने लगा है कि ये मुल्क हमारा भी है...न सिर्फ हमारे आकाओं का...
अब हम अपनी बातें शांतिपूर्ण प्रदर्शन द्वारा मनवा सकतें हैं...
बस 
राह में रुकावट बना है.....
इन आकाओं का दंभ.....
इन की मानसिक रुग्णता .....
ये दंभ कि ये ही इस देश के करता-धर्ता और पालनहार हैं...
इन की मर्ज़ी के बिना पत्ता न हिलने पाए....

ये अपने आप को ६५ सालों से मालिक मानते आयें हैं 
और जनता को ज़रखरीद ग़ुलाम जिस का काम ५ सालों में एक बार वोट देने तक सीमित है...
जनता भी इसी में खुश सी थी...
परन्तु..
ब्रह्मांडीय मस्तिष्क से उत्पन्न हुई बदलाव की लहरियों ने अपने असर दिखाया और दबा ढका विरोध अब मुखर हो उठा है...
पहले हम अंग्रेजों के हाथों कुचले जाते थे और अब अपने ही अंग्रेजी मानसिकता के गुलाम प्रशासन और पुलिस द्वारा.....
जनता को हक़ न विदेशी राज में था और न ही स्वयं जनता के राज में....
प्रशासन में पुलिस का रोल ......
अगर इस की विवेचना की जाए तो इस के दो चेहरे उजागर होते हैं...
एक सरकार की कठपुतली का 
और दूसरा 
जनता को दबाने वाले का....
अपनी मांगों को ले कर शांतिपूर्ण आन्दोलन करने निकली जनता को सरकार पुलिसिया तांडव से कुचलने का प्रयास करती  है.....
कई बार ये देखा जाता है कि  आन्दोलन शान्ति पूर्ण  होता है... व्यवस्था का ज़िम्मा पुलिस का होता है ...परन्तु पुलिस व्यवस्थाओं का हवाला दे कर बर्बर हो जाती है....
विरोध स्वरुप 
प्रदर्शन कारी उग्र हो जाते हैं,
इस उग्रवाद का समर्थन कतई नहीं किया जा रहा  है....
परन्तु जैसा कहा जाता है न every action has a reaction....
इसी प्रकार किसी उग्र हुए आन्दोलन की तह तक जा कर अगर देखा जाए तो पुलिसिया बर्बरता ही किसी भी आन्दोलन के उग्र होने में एक बहुत बड़ी  भूमिका निभाती है....
संयम दोनों ओर से बरता जाना चाहिए....
अपने छोटे से आन्दोलन कारी जीवन में एक बात तो स्पष्ट  रूप से देखने को मिली है कि पुलिस कई बार असहिष्णु होती ही है....
आन्दोलन को कुचलना मात्र ही उद्देश्य होता है....
अब समय आ रहा है की पुलिस को यह जानना होगा कि कौन सा आन्दोलन किस श्रेणी में आता है...और शान्ति व्यवस्था बनाए रखने में उस की क्या भूमिका होनी चाहिए...
अब पुलिस को कठपुतली मात्र नहीं बने रहना चाहिए.....
एक निष्पक्ष पुलिसिया भूमिका की अब देश को ज़रुरत है....
आज ज़रुरत है कि हम इन अंग्रेजों के बनाए हुई कानूनों की देहलीज को लांघें  और अपने देश वासियों को कुचले नहीं ..उन का सही बातों में साथ दें...अपने साथी देशवासियों तक ये सन्देश पहुंचे कि पुलिस क़ानून व्यवस्था बनाने हेतु है ना कि उन के शोषण के लिए.....
अब ज़रुरत है.....अपने हकों के लिए जागृत जनता से काले अँगरेज़ के तरीके से न निपटा जाए.....
याद रहे आप ज़रूर पुलिस में हैं....परन्तु कालांतर में हो सकता है कि आप के परिवार के अन्य जन सिर्फ हमारी तरह आम जनता हों.....
सोचिये....मनन करिए और एक दमनकर्ता का स्वरुप न ओढ़े रखिये....एक सहृदय पुलिस का स्वरुप लीजिये, आम जन में विश्वास उत्पन्न कीजिये..... 
हमें पुलिसिया रोब की नहीं एक कुशल सहनशील और सहिष्णु  पुलिस की आवशयकता   है.......

Monday, September 24, 2012

असमंजस

मदिरालय जाने को घर से चलता है पीने वाला......
किस पथ से जाऊं असमंजस में है वो  भोला भला 
अलग अलग पथ सब बतलाते सब 
पर मैं ये बतलाता हूँ
राह पकड़ तू एक चला  चल..
पा जाएगा मधुशाला........
आज के सन्दर्भ में हरिवंश राय जी की  सारगर्भित रचना.......

आज हर भ्रष्टाचार मुक्त भारत के लिए आन्दोलन रत कार्यकर्ता असमंजस की स्थिति में है....
ये विडंबना ही है कि सद्पथ पर चलने वालों में एकता का अभाव है और भ्रष्ट एक हो तमाशा देख रहे हैं......
सड़क से संसद तक की लड़ाई है......
व्यवस्था परिवर्तन हेतु संग्राम हर पथ पर लड़ा जाना आवश्यक है......
कोई एक पथ पकड़ रहा है,कोई दूसरा...
ठीक है ..
परन्तु
एक पथ दूसरे से बड़ा और सही है...ये किस आधार पर कह सकते हैं??
अरे हम तो अलग अलग लड़ कर अपने आप को कमज़ोर दिखा रहे हैं....
हर राह एक मंजिल तक तब ही पहुंचेगी जब हम अपने अपने पथ पर आगे बढ़ते हुए इक संकल्प मन ही मन ले रहें कि जब ज़रुरत पड़े तो एकता की शक्ति, बिना किसी अहम् के,  सड़क से संसद तक दिखा देंगे....
मंजिल एक है...
राह अलग है तो क्या हुआ...
संकल्पित रहें कि जब देश को ज़रुरत हो तो,एक हो, मंजिल तक हमारे कदम बढ़ेंगे.....

Wednesday, September 19, 2012

आन्दोलन की अलख जगाये रखना है....

संक्रमण काल !!!!!!
नहीं हम ऐसे कह कर इस आन्दोलन की टूटन से अपने आप को दोषमुक्त नहीं कर सकते......
 भारतीय स्वभाव  की कमजोरी हम को ले डूबी......
हम अपने-अपने अहम् में इस कदर डूबे हुए हैं कि अपना देश दोयम दर्जे का स्थान पाता रहा है आदि अनादि काल से.....
जिस व्यक्ति को सूझ-बूझ दिखाते हुए,सब की नैया पार लगानी थी वो ही अपना कर्त्तव्य पूरा न कर पाया......
आन्दोलन को अभी भी सही मार्ग पर रखा जा सकता था.....
ज़रुरत थी कुछ समझ-बूझ और कुछ समझाइश की.....
एक मातृ -संगठन होता और एक दूसरा उस की एक शाखा......
उन को जोड़े रखता .....
एक वट-वृक्ष ......
अपने सबल कन्धों पर बोझ ढ़ोता सब को सही राह दिखाता ......
एक आन्दोलन करता और दूसरा संसद में आन्दोलन-रत रहता.....
दोनों एक दूजे के पूरक......
विकल्प देना ज़रूरी......
लोगों में जागरूकता लाना ज़रूरी.....
एक विकल्प की तैयारी करता ...
दूसरा गाँव गाँव जा कर आम जन को जगाता.....

परस्पर तालमेल से सुखद स्थिति पैदा होती 
और
  देश सेवा का प्रण ले कर आगे आये पूर्ण-कालिक कार्यकर्त्ता देश को अपने देश प्रेम से सराबोर कर जगा देते.....

कर्त्तव्य पथ पर बढ़ते ही रहना था.....

विकल्प ज़रूरी .....

नहीं तो दूसरी पार्टी के प्रत्याशियों को जिता के सदन तक पहुचाने के बाद भी वे पार्टी लाइन फोलो  करते तो हमारा उद्देश्य पूरा न हो पाता.....

निर्दलीय को जिताते हैं तो उस के जीतने के बाद दूसरे दल में जा मिलने की तलवार लगातार लटकती रहती है....

अपनी पार्टी बनाने से हम उन पर दबाव बना पाने की स्थिति में होते हैं...
यदि कोई सांसद या विधायक जन भावनाओं के अनुकूल काम नहीं करता तो हम उस पर पार्टी का दबाव बना सकते हैं.....

अब 

एक और बात भी सही है कि आज सम्पूर्ण देश में विकल्प देने की स्थिति में हम अभी नहीं हैं......

दिल्ली को रोल मॉडल बना कर बस वहां चुनाव लड़े जा सकते हैं और सम्पूर्ण भारत के कार्यकर्ता इस में दिल्ली पहुँच कर सहयोग कर सकते हैं....

दूसरी ओर सम्पूर्ण देश में तब तक अलख जगानी चाहिए 
और
डेढ़  साल में काम किया जा सकता है...

आत्म विश्लेषण कर के फिर प्रत्याशी उतारने की सोची जा सकती है....

यदि जागरूकता फैलाने वाले आन्दोलनकारी साथ काम करते जाते हैं  तो धरातल के  काम को बाखूबी अंजाम दिया जा सकता है ....

अभी भी देर नहीं हुई है......

जागो देश वासियों जागो....

एकता ही हमारी शक्ति है....

अहम् का त्याग और देश प्रेम का ज्वार हमें विकास और भ्रष्टाचार मुक्त भारत को बनाने में सहयोग करेगा.....

ज़रुरत है हमें जानने की और मानने की
 कि
 एकता में शक्ति है......

जब जागो तभी सवेरा.....

आज देश का हर जागरूक  नागरिक ठगा सा महसूस कर रहा है.....

नेतृत्व सब की आँखों में कमतर आँका जा रहा है....
आज नेतृत्व के सामने यह चुनौती है कि उस के कर्यकर्ता रेत समान उस के हाथों से फिसल न जाए.....

हमें नेता नहीं धरातल का कार्यकर्ता बन कर काम करना है....

आन्दोलन की अलख जगाये रखना है....