Friday, May 22, 2015

आरक्षण के नाम पर होते खेल ....

आज बात करते हैं आरक्षण की ....
पर
साथ ही मेरा अपने सभी साथियों से निवेदन है कि यह एक अति संवेदनशील मुद्दा बन गया है ....
इस लिए
इसे पूर्णता में पढ़िए ……

आक्षेप लगाने से पहले, जो भी आप को समझ आये, मुझ से ज़रूर पूछिये ……

परन्तु मेरे शब्दों को अपनी मानसिकता के साथ जोड़ते हुए विश्लेषण ना कीजिये ……

इस बार मेरे लेख का विश्लेषण मुझ से ही करवाइये …

एक नहीं, हज़ार प्रश्न कीजिये और मैं आप को उत्तर देने को बाध्य हूँ ……

एक बात स्पष्ट कर दूँ -
आरक्षण के बारे में ये मेरी व्यक्तिगत सोच है
और पार्टी की सोच इस से इतर हो सकती है .....

आरक्षण की मैं पक्षधर हूँ
परन्तु
आज के आरक्षण की नहीं ....

अब इस सोच को समझने का प्रयत्न करते हैं .....

जब देश स्वतंत्र हुआ तो उस समय की परिस्थितियों को देखते हुए दलित वर्ग के आरक्षण की ज़रुरत महसूस हुई ....

ये उस समय के लिए सही था ...

भारतीय संविधान में समयबद्ध आरक्षण रखा गया ....

निश्चित समय पश्चात इस की समयावधि बढ़ाई गयी ....

और आज स्वतंत्रता के 68 साल के बाद भी हमारे राजनैतिक दल जो कि सरकार के रूप में कार्य कर रहे थे इस आरक्षण को पूर्ण रूपेण लागू नहीं कर पाये ....
और
हमारे दलित सह नागरिक आज भी गरीबी और बेकारी का जीवन जीने को मजबूर हैं ....

इस आज की स्थिति के लिए दोषी कौन है ???

 # वो सरकारें जो इस आरक्षण का लाभ दलितों को ना दे पायीं ?

# वो राजनैतिक दल जो हमारे दलित साथियों की कमज़ोरी का फायदा उठा कर आरक्षण के नाम पर अपने स्वार्थ की रोटियां सेकने लगे ?

3 वो दलित समाज के ठेकेदार जो अपने ही समाज के लोगों की बेबसी का फायदा उठा कर उन के नेता बन कर अपना स्वार्थ सिद्द करने लगे ?

# वो दलित समाज के अमीर जो आरक्षण का लाभ बार बार लेते रहे और उसे अग्रिम पंक्ति से अंतिम पंक्ति तक नहीं पहुँचने दिया ?

या फिर 

# वो दलित साथी जो इतने सालों की आज़ादी के बाद भी अपने भले के लिए दूसरों का ही मुँह ताकते रहे ?

मनन कीजिये ....

दोषी कौन ???

आज समाज में कई वंचित वर्ग हैं और कई सर्व संपन्न .....

खाई लगातार बढ़ती जा रही है.....

भारतीय संविधान के अनुसार भारत का हर गरीब , यहाँ तक कि , भारत का भिखारी भी सरकार को टैक्स देता है और उस टैक्स के पैसे से ही सरकार चलती है ....

सरकार चलती क्या है जी दौड़ती है - आलीशान सरकारी ऑफिस,सरकारी घर,सरकारी गाड़ियों और सरकारी मोटी मोटी तनख्वाहों से ....

जब कि इस विकासशील देश की प्राथमिकता होनी चाहिए सब नागरिकों को कम से कम न्यूनतम बुनियादी जीवन आधार उपलब्ध करवाना .....

जी हाँ हम आरक्षण की बात कर रहे हैं.....

आरक्षण आज भारतीय राजनीति की मजबूरी बन गया है ....

भारतीय राजनीति की डोर वोट बैंक में है ...

हमारी सरकारें और राजनैतिक दल काम कर के वोट नहीं लेना चाहते हैं ....

वे समाज को वर्गों में बाँट कर आसान वोट लेते हैं ....

 आरक्षण का मुद्दा सब से आसान वोट बैंक देता है ....


अब इस जाल से हमारे नागरिकों को स्वयं निकालना होगा ....

अपने आप को आरक्षण की सच्चाइयों से रूबरू कीजिये ....

पिछले 68 सालों से चली आ रही आरक्षण व्यवस्था में ऐसा क्या है कि इस से आज तक सम्पूर्ण वंचित वर्ग लाभान्वित नहीं  हो पाया है ??

अब खरी खरी कहने और समझने का वक्त आ गया है....

यदि सरकारें कार्य के प्रति समर्पित होतीं तो आरक्षण का लाभ निश्चित समयावधि में ना केवल सभी वंचित वर्ग को मिल चुका होता वरन आज भारत का सामाजिक नक्शा कुछ और ही होता ....

आरक्षण के प्रति ना सरकारें, ना राजनैतिक दल  और ना ही समाज के ठेकेदार संजीदा हैं ,,,,,

सब  को ही अपनी अपनी रोटियां सेकने से फुर्सत नहीं है ....

अब समय है आँखें खोल कर देखने का....

सच्चाई से रूबरू होने का ....

सभी वंचित वर्ग के भाइयों और बहनों से एक प्रार्थना ....

अपनी आँखें खोलिए - आप ही के समाज के ठेकेदार आरक्षण का लाभ आप तक नहीं पहुँचने दे रहे .....

वे आप की गरीबी और अशिक्षा का फायदा उठा कर आप को भीड़ तंत्र की तरह काम ले रहे हैं और अपने स्वार्थ सिद्द कर रहे हैं ....

आप के आंदोलन की आड़ में  कमरों में सौदे होते हैं ....

स्वार्थ के सौदे ....

 टिकट और नौकरियों और व्यापार के सौदे ....

और बाहर  आ कर आप को लॉलीपॉप पकड़ा दी जाती है जो कि असलियत  में किसी काम की नहीं होती वरन उस में अगले आंदोलन के लिए loop holes होते हैं जिनका समय आने पर फिर उपयोग किया जा सके ....


आज सभी मनन करें आप को आरक्षण की दरकार क्यों है ??

क्यूंकि आप आर्थिक रूप से कमज़ोर हैं .....

यदि आज आप आर्थिक रूप से सक्षम होते तो जातिवाद गौण होता ....

आज का समाज अर्थ आधारित है ....

तो आरक्षण भी उसी के अनुरूप होना चाहिए ना .....

अब बात करते हैं उस आरक्षण की जिस का पक्ष मैं आप सब के सामने रखना चाहती हूँ ....

हाँ मैं आरक्षण की पक्षधर हूँ ....

मैं चाहती हूँ कि जैसे ही भ्रूण माँ की कोख में आये उसे अपनी माँ सहित आरक्षण का लाभ मिलने लगे .....

कोई भी गरीब माँ कुपोषित बच्चा पैदा ना करे .....

कोई भी बच्चा पैदा होने के पश्चात दूध के बिना ना पले और फिर पूरा पोषण लेते हुए बड़ा हो ....

सरकारी स्कूल ऐसे हों जहाँ बच्चों  का पूरा दिन ध्यान  रखा जाए ....

हर  बच्चे पर समान रूप से मेहनत की जाए और उस की रूचि को देखते हुए उस की उच्च शिक्षा का प्रबंध किया जाए ....

आरक्षण काबिलियत का हो और सब को सामान अवसर मिलें .....

सरकारी योजनाएं शिशु केंद्रित हों क्यूंकि ये शिशु ही हमारा भविष्य हैं .....

समान अवसर और समान पोषण और समान शिक्षा के बाद सभी समान रूप से अपनी काबिलियत के अनुसार कार्य करें .....

ऐसे आरक्षण की ज़रुरत है हमारे देश को ....

कोख से कॉलेज तक का आरक्षण - इस की दरकार है समाज को .....

और ये तब ही मिल सकता है जब हम इस आरक्षण के खेले को खेलने वालों पर अपने आप लगाम लगाएंगे.....

हम स्वयं कहेंगे कि आप के जाल में हम नहीं फंसेंगे .....

अब सब आप के हाथ में है चाहे स्वार्थ के हाथ का खिलौना बनिए या अपने सुनहरे भविष्य ओर स्वयं कदम बढाइये .....

Friday, May 15, 2015

आज अजमेर फिर ठगा गया

अखबार के माध्यम से सूचना मिली कि अजमेर में अवैध निर्माण पर हाई कोर्ट के निर्णय के अनुसार गाज गिरेगी....

ह्रदय को संतोष हुआ कि अजमेर स्मार्ट सिटी की ओर एक कदम बढ़ा .....

परंतु

मस्तिष्क में एक विचार कुलबुलाया कि क्या इस अवैध निर्माण के लिए सिर्फ अवैध निर्माण मालिक ही दोषी है क्या ?

निस्संदेह नहीं ...

हम कार्यवाही की गाज सिर्फ भवन मालिक पर ही नहीं गिरा सकते ...

*क्या इस में वो पार्षद दोषी नहीं जिस की नाक तले ये निर्माण हुआ ...

*क्या वो निगम अधिकारी दोषी नहीं जिस की ड्यूटी है कि वो समय समय पर अपने कार्य क्षेत्र का दौरा करे और निगाह रखे ...

*क्या वो निगम का अधिकारी दोषी नहीं जिस ने घरेलू नक्शा पास कर के व्यावसायिक भवन को completion certificate दिया?

*क्या वो निगम कर्मचारी दोषी नहीं जो रोज़ उस वार्ड में काम करता है ?

और

साथ ही

*क्या वो आम आदमी दोषी नहीं जिस ने पडोसी से सम्बन्ध के कारण उसे देख के अनदेखा किया ?

फिर गाज निर्माण मालिक पर ही क्यों ?

हमारे विश्लेषण का ये अर्थ कदापि नहीं कि हम भवन मालिक को किसी भी प्रकार की रियायत देने के पक्षधर हैं ...

जो व्यक्ति आज अपने लाखों रुपये डूबने की दुहाई दे रहा है वो निर्माण करवाते समय ये भली भाँति जानता था कि ये निर्माण अवैध है और फिर भी उस ने नियमों को दर किनार कर अपने स्वार्थ को तरजीह दी ...

वो कदापि दया का पात्र नहीं है और उस पर कठोर कार्यवाही बनती है ...

परंतु

मुद्दा ये है कि क्या अब जागरूकता के इस माहौल में भवन मालिक के साथ मिल कर अवैध निर्माण के साथी रहे पार्षद ,अफसर और कर्मचारियों को यूँ ही छोड़ देना चाहिए ?

क्या उन की जवाबदेही नहीं बनती ?

हम तो इस बात के पक्षधर हैं कि मालिक के साथ साथ दोषी निगम पार्षद व निगम कर्मियों को भी दंड मिलना चाहिए ...

और

उन की अपने अपने क्षेत्र के लिए जवाबदेही तय की जानी चाहिए ...

हर निगम कर्मी को एक निश्चित समयावधि में लिखित में ये रिपोर्ट सौंपनी चाहिए कि उन के क्षेत्र में कोई अवैध निर्माण व अतिक्रमण नहीं हो रहा ...

और

यदि कभी भी कोई अतिक्रमण या अवैध निर्माण पाया जाता है तो उस निगम कर्मी को दण्डित करने का प्रावधान होना चाहिए ...

आज ये ही सब सोच कर आम आदमी पार्टी अजमेर के सदस्यों ने नगर निगम के मुख्य कार्यकारी अधिकारी को इस बाबत एक ज्ञापन देने की ठानी ...

परंतु

आज माननीय उच्च न्यायालय के एक फैसले के कारण उस ज्ञापन का औचित्य नहीं रहा ...

आज माननीय अदालत ने अवैध निर्माणों को सीज़ करने की कार्यवाही पर रोक लगाते हुए उन के नियमन की अनुशंसा की ...

(कोर्ट का पूर्ण आदेश नहीं प्राप्त होने के कारण पूर्ण टिप्पणी नहीं कर पा रहे )

आज अजमेर फिर ठगा गया ...

Monday, May 11, 2015

लूट मची है लूट

स्मार्ट सिटी बनने की ओर अजमेर ने बहुत ख़ुशी ख़ुशी एक कदम बढ़ाया ...

टेम्पो यूनियन , ऑटो यूनियन और सिटी बस यूनियन ने विरोध किया परंतु विरोध ठन्डे बस्ते में पहुँच गया ...

इस पर चर्चा अगली बार ...

हाँ तो स्मार्ट सिटी बनने चले अजमेर की टैक्सी सर्विसेज की बात करते हैं ...

सब से पहले आई Ola टैक्सी सर्विस ...

अजमेरवासियों ने खुले दिल से स्वागत किया परंतु कुछ ही दिनों में इस का बुकिंग सिस्टम धोखा दे गया ...

अब मुद्दे पर आते हैं -

बात करते हैं Taxi for Sure कंपनी की ....

अभी तक ये कंपनी पहले चार किलोमीटर पर 49 ₹ ले रही थी और फिर हर किलोमीटर पर और साथ ही यदि ग्राहक रुकता है तो वेटिंग चार्जेज भी ....

बिलकुल सही ...

परंतु

आज शाम को जब टैक्सी बुक कराने के लिए फोन किया तो ज्ञात हुआ कि हर किलोमीटर पर charge करने के साथ ही साथ अब कंपनी route time पर भी चार्ज करेगी
यानि कि ग्राहक हर किलोमीटर की सवारी का तो पैसा देगा ही साथ ही उसी दूरी को तय करने में जितना समय लगता है उसे हर मिनट का भी किराया देना होगा ...

आज के इस जागरूक समय में ये बात गले नहीं उतरी कि distance covered के साथ ही साथ हम समय के भी पैसे दें ...

कल्पना करें कि अजमेर में दरगाह ज़ियारत के लिए कोई शासन प्रमुख आता है और आप Taxi for Sure की गाडी में जा रहे हैं और आप को जाम में रुकना पड़ा तो आप के 15 मिनट का लक्ष्य अब खिसक कर 45 मिनट में पूरा हुआ ....

हम प्रति किलोमीटर के साथ + 45 ₹ देंगे क्योंकि चाहे हम ने 10 किलोमीटर की यात्रा की परंतु हम पूरे 45 मिनट तक कार में बैठे रहे सो उस का समयबद्ध किराया देना भी ज़रूरी है ..

मैंने तो आज ये सुनते ही टैक्सी का विचार छोड़ दिया ...

मेरे पति की गाढ़े पसीने की कमाई को एक ही जगह जाने के लिए दो दो बार पैसे क्यों दूँ ?

मेरा हर साथी आम नागरिक से निवेदन है कि ऐसी कंपनी जो एक ही स्थान तक पहुंचाने के लिए आप से दो दो बार वसूली करे उसे नकारना ही बेहतर रहेगा ...

हम अपने लक्ष्य तक पहुँचने के लिए किलोमीटर के हिसाब से पैसे दे ही रहे हैं , अगर कहीं टैक्सी रोकते हैं तो वेटिंग चार्ज भी देने को तैयार रहते हैं फिर ये trip time पर पैसा वसूली क्यों ?

आशा है ग्राहक जागेगा और कंपनी की मनमानी वसूली के विरोध में Taxi for Sure कंपनी की सेवाएं लेने से तब तक परहेज़ करेगा जब तक वो trip time के पैसे वसूलने का फरमान वापिस नहीं लेते ...

हमारा पैसा पेड़ पर नहीं उगता वरन ये हमारे कठोर परिश्रम से हमें प्राप्त होता है अतः हम इसे फ़िज़ूल में किसी को नहीं देंगे ...

जय हिन्द !!!