Monday, July 13, 2015

हमारा पार्षद कैसा हो ?

दैन दिन्य  की ज़िन्दगी में हमारा सफाई , पानी, बिजली , सड़क , नाली , आवारा पशु आदि से पाला पड़ता है ....

67 साल की व्यवस्था की दुर्दशा से छुटकारा पाने का इरादा है इस बार ....

अपने वोट के बहुमूल्य होने का एहसास भी हो चुका है ...

रोज़ रोज़ की ज़िन्दगी में अब राजनैतिक पार्टियों की कोई जगह नहीं दीख पड़ रही है ....

अब  चाहिए जनता के द्वारा चुना गया , जनता के लिए चुना गया और जनता के प्रति उत्तरदायी / जवाबदेह पार्षद ..... 

हमें चाहिए एक कर्मठ सेवा भावी पार्षद जो अपने वार्ड वासियों के लिए सदैव उपलब्ध हो ...

सो अब समीक्षा करते हैं अपनी अपेक्षाओं की ...



1.  हमारा पार्षद स्थानीय हो जिस से वो हमें दिन हो या रात सदैव उपलब्ध रहे ...

हम अपनी सहूलियत से उस के पास अपना काम ले कर जा सकें 

नाकि 

उस की सहूलियत से हम अपने कामों को रोके रखें ... 

आखिर उन्हीं कामों के लिए तो हम ने उसे अपना बहुमूल्य वोट दे कर चुना है...


2.  हमारा पार्षद पढ़ा लिखा होना चाहिए ....

कम से कम ग्रेजुएट ....

एक पढ़ा लिखा सुलझा हुआ बन्दा ही दांव पेंच से परे, समस्याओं को समझ कर ,उन्हें सुलझाने का प्रयत्न कर सकता है ...


 3.  हमारा पार्षद किसी भी राजनैतिक पार्टी से सम्बद्ध ना हो ...

आज तक हम ने यह ही देखा है कि पार्टी से जुड़े हुए हमारे प्रतिनिधि चुनाव जीतने के बाद हमारी कम और पार्टी की ज़यादा चिंता करते हैं ....

वे पार्टी की नीतियों से बंधे होते हैं ...

हमें अब ऐसे पार्षद चाहियें जो अपने मतदाता , यानि , हम से जुड़े हों ...

जिन्हें पार्टी लाइन की नहीं अपने मतदाताओं की इच्छा की चिंता हो ...

जो अपने मतदाता और अपने चुनाव क्षेत्र की समस्याओं के लिये लड़ें और उन्हें सुलझाएं ....

ऐसा ना हो कि क्षेत्र में अतिक्रमण हो और अतिक्रमण करने वाला किसी नेता का परिचित हो 

और 

पार्षद महोदय अपने मतदाताओं और अपने कर्तव्य को भूलकर अतिक्रमी की मिज़ाज़ पुरसी में लीन हो जाएँ ....

इस लिए हमारा पार्षद सिवाय हमारे किसी भी राजनैतिक दल या क्लब का सदस्य नहीं वरन हमारे वार्ड का सदस्य हो ...

दूसरे शब्दों में हमें निर्दलीय पार्षद चुनने होंगे ...

जो हमारा पार्षद बनाना चाहता है उसे किसी भी राजनैतिक पार्टी का सदस्य नही होना चाहिए ... 

और

यदि वो किसी राजनैतिक पार्टी से सम्बन्ध रखता है तो चुनाव पूर्व उसे उस पार्टी की प्राथमिक सदस्यता से त्यागपत्र देना होगा

 और 

साथ ही एक शपथ पत्र भी देना होगा कि जब तक वो पार्षद रहेगा तब तक वो किसी भी राजनैतिक पार्टी की सदस्यता ग्रहण नहीं करेगा ...

 वह पूर्णत: जनता का प्रतिनिधि ही बन कर रहेगा ...



4.  हमारे  पार्षद का अपने वार्ड में एक ऑफिस होना चाहिए जिस में वो अथवा कोई भी सक्षम व्यक्ति , कम से कम , सुबह 8 बजे से शाम 7 बजे तक उपलब्ध रहे ....

तथा

वार्ड के हर बूथ स्तर पर कम से कम एक ऐसा सक्षम व्यक्ति नियुक्त हो जिस से कोई भी मतदाता जो वार्ड ऑफिस तक नहीं जा सके , वो अपनी समस्या से उस सक्षम व्यक्ति को अवगत करवा सके ....

साथ ही हमारा पार्षद अपने वार्ड का एक हेल्पलाइन नंबर भी उपलब्ध करवाये जिस पर फोन कर के नागरिक अपनी समस्याओं से उन्हें अवगत करवा सकें ……

दूसरे शब्दों में हमारा चुना हुआ पार्षद अपने मतदाता के लिए उपलब्ध रहे और उन की समस्याओं के निराकरण हेतु निरंतर प्रयासरत रहे ....


 5.  हमें अपने पार्षद से ये अपेक्षा है कि वह हमारे नगर निगम के काम अपने वार्ड ऑफिस से ही करवा दे जिस से स्थानीय नागरिक को निगम के चक्कर ना लगाने पड़ें ...

आज आम नागरिक अपने पार्षदों को चुनने के बाद भी जन्म मृत्यु पंजीकरण , नक़्शे पास करवाने हेतु , अतिक्रमण की शिकायत हेतु , आवारा पशुओं को पकड़वाने हेतु , bpl कार्ड या राशन कार्ड बनवाने हेतु और किसी भी प्रकार की निगम द्वारा दी जा रही पेंशन या सहायता हेतु निगम के चक्कर काटता रहता है ... 

आम मतदाता पार्षद को कार्य सम्पादन हेतु चुनता है , फिर वो चक्कर क्यों लगाए ??

इस लिए अब हमें अपने पार्षद से ये अपेक्षा रहेगी कि वह अपने वार्ड कार्यालय के मार्फत हमारे कार्य करवाये ....



 6.  हमारे टैक्स के पैसों से सरकार हमारे लिए विभिन्न योजनाएं चलाती है ...

हमारी अपने पार्षद से ये अपेक्षा रहेगी कि वह नगर निगम के अंतर्गत आने वाली सभी योजनाओं की जानकारी रखे 

और 

मौहल्ला सभाओं के या बूथ सभाओं के माध्यम से अपने मतदाताओं को ये जानकारी दे व उसका लाभ भी दिलवाये ....



 7.  हमारा पार्षद हर माह एक वार्ड सभा के माध्यम से अपने मतदाताओं के रूबरू हो और उन से संवाद कायम करे ...

       यदि कार्यसम्पादन में उसे कोई कठिनाई का सामना करना पड़ रहा है तो वह खुल कर वार्ड सभा के माध्यम से इस का अपने मतदाताओं से ज़िक्र करे जिस से सब मिल कर उस समस्या का समाधान निकाल सकें  …… 

हम दो तरफ़ा संवाद इसी लिए चाहते हैं ताकि किसी भी प्रकार का communication gap ना रहे और हम अपने पार्षद की समस्या भी समझ सकें .... 

और 

यह तभी हो पायेगा जब हमारा पार्षद पारदर्शी तरीके से हम से निरंतर संवाद में रहे .... 


 8.  हमारा पार्षद अपने वार्ड के सफाई कर्मियों की लिस्ट अपने ऑफिस के बाहर चस्पा करे

और 

कौन सा सफाई कर्मी किस जगह सफाई कर रहा है ये रोज़ सुबह शाम ऑफिस के बाहर सूचना पट्ट पर अंकित हो ....

साथ ही सफाई कर्मियों की उपस्थिति सार्वजनिक रूप से अंकित हो ...

जिस से उपस्थिति के अनुसार ही ,जनता के टैक्स के पैसे से जो सफाईकर्मियों को भुगतान होता है, उस की पारदर्शिता बनी  रहे .....


9.  हमारा पार्षद अपने स्वीकृत पार्षद कोष को वार्ड सभा के माध्यम से , अपने मतदाताओं की इच्छा अनुरूप खर्च करे  ....

इस के लिए सर्वप्रथम नियमित बूथ सभाओं के माध्यम से हर बूथ की समस्या और ज़रुरत की जानकारी जुटाई जाए ....

हर समस्या और ज़रुरत की priority सेट की जाए और उन की अनुमानित लागत पता लगाईं जाए ....

फिर वार्ड सभा के माध्यम से priority और ज़रुरत के हिसाब से कौन सा कार्य पहले करवाया जाना चाहिए इस को चिन्हित कर लिस्ट बनायी जानी चाहिए

 और 

इस लिस्ट को वार्ड सभा से अनुमोदन करवाने के बाद ही उन कार्यों को करवाने की पार्षद द्वारा अनुशंसा की जानी चाहिए 

और 

फिर इसी के अनुसार पार्षद निधि का उपयोग किया जाना चाहिए ...


 10.  हमारे  पार्षद द्वारा अपने वार्ड के लिए स्वीकृत निधि से करवाये जाने वाले कार्यों को नागरिक निगरानी समिति की देख रेख में करवाना चाहिए ...

इस नागरिक निगरानी समिति का गठन हर बूथ के नागरिकों की सहभागिता से होना चाहिए ...

हर कार्य के लिए समिति का गठन वार्ड सभा के माध्यम से किया जाना चाहिए

यथा

रोड निगरानी समिति , नाली निगरानी समिति , अतिक्रमण निगरानी समिति , सफाई व्यवस्था निगरानी समिति , स्ट्रीट लाइट निगरानी समिति, आवारा पशु निगरानी समिति आदि ....

इन समितियों में हर बूथ से कम से कम एक व्यक्ति होना चाहिए और कोई भी व्यक्ति दो समितियों का मेंबर नहीं हो सकता ....

इस प्रकार आम आदमी में अपने वार्ड के कार्यों के प्रति सहभागिता की भावना घर करेगी ...

कोई भी विकास कार्य इन निगरानी समितियों की देख रेख में संपन्न होगा

 और 

इन समितियों द्वारा हरी झंडी दिए जाने के बाद ही पार्षद निगम को पैसों के भुगतान की अनुशंसा करेगा ...


11.  हमारा पार्षद अपने मतदाताओं के प्रति उत्तरदायी होगा 
और 
चुनाव से पहले वो अपने वार्ड के मतदाताओं को एक शपथ पत्र लिख कर देगा कि यदि वह उन की इच्छाओं के अनुरूप कार्य नहीं कर पाया
 तो 
वार्ड वासी अपने स्तर पर दो तिहाई बहुमत से उसे रिकॉल कर सकते हैं 
और 
यदि ऐसा हुआ तो वह निगम से अपनी सदस्यता से त्यागपत्र दे देगा ...


तो इस बार अजमेर की जनता कुछ ऐसा नगर निगम का बोर्ड बनाना चाहती है जो किसी राजनैतिक पार्टी के प्रति उत्तरदायी ना हो 

अपितु

जो मतदाता अपना बहुमूल्य वोट दे कर उसे जिताएंगे वे उन की इच्छा के अनुसार काम करें ...


अब स्वार्थनीति नहीं लोकनीति का बोर्ड चाहती है अजमेर की जनता ....

Friday, May 22, 2015

आरक्षण के नाम पर होते खेल ....

आज बात करते हैं आरक्षण की ....
पर
साथ ही मेरा अपने सभी साथियों से निवेदन है कि यह एक अति संवेदनशील मुद्दा बन गया है ....
इस लिए
इसे पूर्णता में पढ़िए ……

आक्षेप लगाने से पहले, जो भी आप को समझ आये, मुझ से ज़रूर पूछिये ……

परन्तु मेरे शब्दों को अपनी मानसिकता के साथ जोड़ते हुए विश्लेषण ना कीजिये ……

इस बार मेरे लेख का विश्लेषण मुझ से ही करवाइये …

एक नहीं, हज़ार प्रश्न कीजिये और मैं आप को उत्तर देने को बाध्य हूँ ……

एक बात स्पष्ट कर दूँ -
आरक्षण के बारे में ये मेरी व्यक्तिगत सोच है
और पार्टी की सोच इस से इतर हो सकती है .....

आरक्षण की मैं पक्षधर हूँ
परन्तु
आज के आरक्षण की नहीं ....

अब इस सोच को समझने का प्रयत्न करते हैं .....

जब देश स्वतंत्र हुआ तो उस समय की परिस्थितियों को देखते हुए दलित वर्ग के आरक्षण की ज़रुरत महसूस हुई ....

ये उस समय के लिए सही था ...

भारतीय संविधान में समयबद्ध आरक्षण रखा गया ....

निश्चित समय पश्चात इस की समयावधि बढ़ाई गयी ....

और आज स्वतंत्रता के 68 साल के बाद भी हमारे राजनैतिक दल जो कि सरकार के रूप में कार्य कर रहे थे इस आरक्षण को पूर्ण रूपेण लागू नहीं कर पाये ....
और
हमारे दलित सह नागरिक आज भी गरीबी और बेकारी का जीवन जीने को मजबूर हैं ....

इस आज की स्थिति के लिए दोषी कौन है ???

 # वो सरकारें जो इस आरक्षण का लाभ दलितों को ना दे पायीं ?

# वो राजनैतिक दल जो हमारे दलित साथियों की कमज़ोरी का फायदा उठा कर आरक्षण के नाम पर अपने स्वार्थ की रोटियां सेकने लगे ?

3 वो दलित समाज के ठेकेदार जो अपने ही समाज के लोगों की बेबसी का फायदा उठा कर उन के नेता बन कर अपना स्वार्थ सिद्द करने लगे ?

# वो दलित समाज के अमीर जो आरक्षण का लाभ बार बार लेते रहे और उसे अग्रिम पंक्ति से अंतिम पंक्ति तक नहीं पहुँचने दिया ?

या फिर 

# वो दलित साथी जो इतने सालों की आज़ादी के बाद भी अपने भले के लिए दूसरों का ही मुँह ताकते रहे ?

मनन कीजिये ....

दोषी कौन ???

आज समाज में कई वंचित वर्ग हैं और कई सर्व संपन्न .....

खाई लगातार बढ़ती जा रही है.....

भारतीय संविधान के अनुसार भारत का हर गरीब , यहाँ तक कि , भारत का भिखारी भी सरकार को टैक्स देता है और उस टैक्स के पैसे से ही सरकार चलती है ....

सरकार चलती क्या है जी दौड़ती है - आलीशान सरकारी ऑफिस,सरकारी घर,सरकारी गाड़ियों और सरकारी मोटी मोटी तनख्वाहों से ....

जब कि इस विकासशील देश की प्राथमिकता होनी चाहिए सब नागरिकों को कम से कम न्यूनतम बुनियादी जीवन आधार उपलब्ध करवाना .....

जी हाँ हम आरक्षण की बात कर रहे हैं.....

आरक्षण आज भारतीय राजनीति की मजबूरी बन गया है ....

भारतीय राजनीति की डोर वोट बैंक में है ...

हमारी सरकारें और राजनैतिक दल काम कर के वोट नहीं लेना चाहते हैं ....

वे समाज को वर्गों में बाँट कर आसान वोट लेते हैं ....

 आरक्षण का मुद्दा सब से आसान वोट बैंक देता है ....


अब इस जाल से हमारे नागरिकों को स्वयं निकालना होगा ....

अपने आप को आरक्षण की सच्चाइयों से रूबरू कीजिये ....

पिछले 68 सालों से चली आ रही आरक्षण व्यवस्था में ऐसा क्या है कि इस से आज तक सम्पूर्ण वंचित वर्ग लाभान्वित नहीं  हो पाया है ??

अब खरी खरी कहने और समझने का वक्त आ गया है....

यदि सरकारें कार्य के प्रति समर्पित होतीं तो आरक्षण का लाभ निश्चित समयावधि में ना केवल सभी वंचित वर्ग को मिल चुका होता वरन आज भारत का सामाजिक नक्शा कुछ और ही होता ....

आरक्षण के प्रति ना सरकारें, ना राजनैतिक दल  और ना ही समाज के ठेकेदार संजीदा हैं ,,,,,

सब  को ही अपनी अपनी रोटियां सेकने से फुर्सत नहीं है ....

अब समय है आँखें खोल कर देखने का....

सच्चाई से रूबरू होने का ....

सभी वंचित वर्ग के भाइयों और बहनों से एक प्रार्थना ....

अपनी आँखें खोलिए - आप ही के समाज के ठेकेदार आरक्षण का लाभ आप तक नहीं पहुँचने दे रहे .....

वे आप की गरीबी और अशिक्षा का फायदा उठा कर आप को भीड़ तंत्र की तरह काम ले रहे हैं और अपने स्वार्थ सिद्द कर रहे हैं ....

आप के आंदोलन की आड़ में  कमरों में सौदे होते हैं ....

स्वार्थ के सौदे ....

 टिकट और नौकरियों और व्यापार के सौदे ....

और बाहर  आ कर आप को लॉलीपॉप पकड़ा दी जाती है जो कि असलियत  में किसी काम की नहीं होती वरन उस में अगले आंदोलन के लिए loop holes होते हैं जिनका समय आने पर फिर उपयोग किया जा सके ....


आज सभी मनन करें आप को आरक्षण की दरकार क्यों है ??

क्यूंकि आप आर्थिक रूप से कमज़ोर हैं .....

यदि आज आप आर्थिक रूप से सक्षम होते तो जातिवाद गौण होता ....

आज का समाज अर्थ आधारित है ....

तो आरक्षण भी उसी के अनुरूप होना चाहिए ना .....

अब बात करते हैं उस आरक्षण की जिस का पक्ष मैं आप सब के सामने रखना चाहती हूँ ....

हाँ मैं आरक्षण की पक्षधर हूँ ....

मैं चाहती हूँ कि जैसे ही भ्रूण माँ की कोख में आये उसे अपनी माँ सहित आरक्षण का लाभ मिलने लगे .....

कोई भी गरीब माँ कुपोषित बच्चा पैदा ना करे .....

कोई भी बच्चा पैदा होने के पश्चात दूध के बिना ना पले और फिर पूरा पोषण लेते हुए बड़ा हो ....

सरकारी स्कूल ऐसे हों जहाँ बच्चों  का पूरा दिन ध्यान  रखा जाए ....

हर  बच्चे पर समान रूप से मेहनत की जाए और उस की रूचि को देखते हुए उस की उच्च शिक्षा का प्रबंध किया जाए ....

आरक्षण काबिलियत का हो और सब को सामान अवसर मिलें .....

सरकारी योजनाएं शिशु केंद्रित हों क्यूंकि ये शिशु ही हमारा भविष्य हैं .....

समान अवसर और समान पोषण और समान शिक्षा के बाद सभी समान रूप से अपनी काबिलियत के अनुसार कार्य करें .....

ऐसे आरक्षण की ज़रुरत है हमारे देश को ....

कोख से कॉलेज तक का आरक्षण - इस की दरकार है समाज को .....

और ये तब ही मिल सकता है जब हम इस आरक्षण के खेले को खेलने वालों पर अपने आप लगाम लगाएंगे.....

हम स्वयं कहेंगे कि आप के जाल में हम नहीं फंसेंगे .....

अब सब आप के हाथ में है चाहे स्वार्थ के हाथ का खिलौना बनिए या अपने सुनहरे भविष्य ओर स्वयं कदम बढाइये .....

Friday, May 15, 2015

आज अजमेर फिर ठगा गया

अखबार के माध्यम से सूचना मिली कि अजमेर में अवैध निर्माण पर हाई कोर्ट के निर्णय के अनुसार गाज गिरेगी....

ह्रदय को संतोष हुआ कि अजमेर स्मार्ट सिटी की ओर एक कदम बढ़ा .....

परंतु

मस्तिष्क में एक विचार कुलबुलाया कि क्या इस अवैध निर्माण के लिए सिर्फ अवैध निर्माण मालिक ही दोषी है क्या ?

निस्संदेह नहीं ...

हम कार्यवाही की गाज सिर्फ भवन मालिक पर ही नहीं गिरा सकते ...

*क्या इस में वो पार्षद दोषी नहीं जिस की नाक तले ये निर्माण हुआ ...

*क्या वो निगम अधिकारी दोषी नहीं जिस की ड्यूटी है कि वो समय समय पर अपने कार्य क्षेत्र का दौरा करे और निगाह रखे ...

*क्या वो निगम का अधिकारी दोषी नहीं जिस ने घरेलू नक्शा पास कर के व्यावसायिक भवन को completion certificate दिया?

*क्या वो निगम कर्मचारी दोषी नहीं जो रोज़ उस वार्ड में काम करता है ?

और

साथ ही

*क्या वो आम आदमी दोषी नहीं जिस ने पडोसी से सम्बन्ध के कारण उसे देख के अनदेखा किया ?

फिर गाज निर्माण मालिक पर ही क्यों ?

हमारे विश्लेषण का ये अर्थ कदापि नहीं कि हम भवन मालिक को किसी भी प्रकार की रियायत देने के पक्षधर हैं ...

जो व्यक्ति आज अपने लाखों रुपये डूबने की दुहाई दे रहा है वो निर्माण करवाते समय ये भली भाँति जानता था कि ये निर्माण अवैध है और फिर भी उस ने नियमों को दर किनार कर अपने स्वार्थ को तरजीह दी ...

वो कदापि दया का पात्र नहीं है और उस पर कठोर कार्यवाही बनती है ...

परंतु

मुद्दा ये है कि क्या अब जागरूकता के इस माहौल में भवन मालिक के साथ मिल कर अवैध निर्माण के साथी रहे पार्षद ,अफसर और कर्मचारियों को यूँ ही छोड़ देना चाहिए ?

क्या उन की जवाबदेही नहीं बनती ?

हम तो इस बात के पक्षधर हैं कि मालिक के साथ साथ दोषी निगम पार्षद व निगम कर्मियों को भी दंड मिलना चाहिए ...

और

उन की अपने अपने क्षेत्र के लिए जवाबदेही तय की जानी चाहिए ...

हर निगम कर्मी को एक निश्चित समयावधि में लिखित में ये रिपोर्ट सौंपनी चाहिए कि उन के क्षेत्र में कोई अवैध निर्माण व अतिक्रमण नहीं हो रहा ...

और

यदि कभी भी कोई अतिक्रमण या अवैध निर्माण पाया जाता है तो उस निगम कर्मी को दण्डित करने का प्रावधान होना चाहिए ...

आज ये ही सब सोच कर आम आदमी पार्टी अजमेर के सदस्यों ने नगर निगम के मुख्य कार्यकारी अधिकारी को इस बाबत एक ज्ञापन देने की ठानी ...

परंतु

आज माननीय उच्च न्यायालय के एक फैसले के कारण उस ज्ञापन का औचित्य नहीं रहा ...

आज माननीय अदालत ने अवैध निर्माणों को सीज़ करने की कार्यवाही पर रोक लगाते हुए उन के नियमन की अनुशंसा की ...

(कोर्ट का पूर्ण आदेश नहीं प्राप्त होने के कारण पूर्ण टिप्पणी नहीं कर पा रहे )

आज अजमेर फिर ठगा गया ...

Monday, May 11, 2015

लूट मची है लूट

स्मार्ट सिटी बनने की ओर अजमेर ने बहुत ख़ुशी ख़ुशी एक कदम बढ़ाया ...

टेम्पो यूनियन , ऑटो यूनियन और सिटी बस यूनियन ने विरोध किया परंतु विरोध ठन्डे बस्ते में पहुँच गया ...

इस पर चर्चा अगली बार ...

हाँ तो स्मार्ट सिटी बनने चले अजमेर की टैक्सी सर्विसेज की बात करते हैं ...

सब से पहले आई Ola टैक्सी सर्विस ...

अजमेरवासियों ने खुले दिल से स्वागत किया परंतु कुछ ही दिनों में इस का बुकिंग सिस्टम धोखा दे गया ...

अब मुद्दे पर आते हैं -

बात करते हैं Taxi for Sure कंपनी की ....

अभी तक ये कंपनी पहले चार किलोमीटर पर 49 ₹ ले रही थी और फिर हर किलोमीटर पर और साथ ही यदि ग्राहक रुकता है तो वेटिंग चार्जेज भी ....

बिलकुल सही ...

परंतु

आज शाम को जब टैक्सी बुक कराने के लिए फोन किया तो ज्ञात हुआ कि हर किलोमीटर पर charge करने के साथ ही साथ अब कंपनी route time पर भी चार्ज करेगी
यानि कि ग्राहक हर किलोमीटर की सवारी का तो पैसा देगा ही साथ ही उसी दूरी को तय करने में जितना समय लगता है उसे हर मिनट का भी किराया देना होगा ...

आज के इस जागरूक समय में ये बात गले नहीं उतरी कि distance covered के साथ ही साथ हम समय के भी पैसे दें ...

कल्पना करें कि अजमेर में दरगाह ज़ियारत के लिए कोई शासन प्रमुख आता है और आप Taxi for Sure की गाडी में जा रहे हैं और आप को जाम में रुकना पड़ा तो आप के 15 मिनट का लक्ष्य अब खिसक कर 45 मिनट में पूरा हुआ ....

हम प्रति किलोमीटर के साथ + 45 ₹ देंगे क्योंकि चाहे हम ने 10 किलोमीटर की यात्रा की परंतु हम पूरे 45 मिनट तक कार में बैठे रहे सो उस का समयबद्ध किराया देना भी ज़रूरी है ..

मैंने तो आज ये सुनते ही टैक्सी का विचार छोड़ दिया ...

मेरे पति की गाढ़े पसीने की कमाई को एक ही जगह जाने के लिए दो दो बार पैसे क्यों दूँ ?

मेरा हर साथी आम नागरिक से निवेदन है कि ऐसी कंपनी जो एक ही स्थान तक पहुंचाने के लिए आप से दो दो बार वसूली करे उसे नकारना ही बेहतर रहेगा ...

हम अपने लक्ष्य तक पहुँचने के लिए किलोमीटर के हिसाब से पैसे दे ही रहे हैं , अगर कहीं टैक्सी रोकते हैं तो वेटिंग चार्ज भी देने को तैयार रहते हैं फिर ये trip time पर पैसा वसूली क्यों ?

आशा है ग्राहक जागेगा और कंपनी की मनमानी वसूली के विरोध में Taxi for Sure कंपनी की सेवाएं लेने से तब तक परहेज़ करेगा जब तक वो trip time के पैसे वसूलने का फरमान वापिस नहीं लेते ...

हमारा पैसा पेड़ पर नहीं उगता वरन ये हमारे कठोर परिश्रम से हमें प्राप्त होता है अतः हम इसे फ़िज़ूल में किसी को नहीं देंगे ...

जय हिन्द !!!

Wednesday, April 22, 2015

यथार्थ से रूबरू

कल एक सच से रूबरू हुए ..

स्वीकारोक्ति - किसान की आत्महत्या एक समाचार होती थी...

परंतु कल के वाकये ने झकझोर कर रख दिया ...

ऐसा क्या हो गया कि किसान को संगठित कर के ,उन्हें सम्बल दे कर ,उन की लड़ाई लड़ने की रैली में हमारा एक किसान भाई अपने आप को समाप्त कर ले ?

गजेन्द्र जी की मृत्यु कई सवालों को जन्म दे गयी है ...

1. हमारे देश में अन्नदाता ही भूखा क्यों ?

2. क्यों आज तक ,देश को स्वतंत्र हुए 66 सालों से अधिक समय में हम, गाँवों में बसे इस देश को, एक स्वस्थ किसान नीति नहीं दे पाये ?

3. क्यों हमारा किसान अब तक प्राकृतिक संसाधनों पर ही निर्भर है ?

4. क्यों वह आज कर्ज़ों के बोझ तले डाब कर आत्महत्या को मजबूर है ?

सरकार आज किसानों समेत आम नागरिकों के वोट से चुनें जाने के बाद, किसानों और आम नागरिकों के टैक्स के पैसे से अय्याशी करती है और किसान पैसों के अभाव में दम तोड़ देता है .....

क्या अब समय नहीं आ गया है कि हमारे पैसों की जवाबदेही तय की जाए ?

क्या हमारे किसान भाइयों , जो कि हमारे मुँह में जीवनदायिनी निवाला पहुंचाता है, के प्रति हमारे और उन के द्वारा चुनें गए जनप्रतिनिधियों की कोई ज़िम्मेदारी नहीं बनती ?

कब तक हम मूक दर्शक बन कर इन सरकार के नुमाइंदों को अपना राजा बने देखते रहेंगे ?

क्यों हमारे किसान भाइयों के नुकसान का आकलन दूसरे हाथों में रहेगा ?

क्यों नहीं स्थानीय ग्राम सभा स्वयं प्राकृतिक नुक्सान का आकलन करे और मुआवज़ा निश्चित करे ?

और क्यों नहीं उस मुआवज़े में नष्ट हुई फसल के साथ साथ उस गरीब किसान के निवाले को भी जोड़ा जाए अर्थात क्यों नहीं उस मुआवज़े में किसान के वर्ष भर के खाद्यान का भी जुगाड़ हो ?

सरकार किसी की मौत पर मनमर्ज़ी का  मुआवज़ा बाँट कर एहसान करने की जिस मुद्रा में आ जाती है , उसे उस का त्याग करना होगा ...

हम सब को यह बात कूट कूट कर स्वयं और सरकारी कारिंदों के ज़हन में डाल देनी पड़ेगी कि ये देश और टैक्स का पैसा स्वयं जनता का है

और

कारिंदे सिर्फ कार्य सम्पादन के लिए हैं ...

वे हमारे राजा और हमारे पोषक नहीं है

वरन

हम अपने टैक्स के पैसों से उन का पोषण करते हैं ...

मन बहुत उद्वेलित है ...

और सच मानिए इन सब परिस्थितियों के ज़िम्मेदार हम स्वयं हैं ...

हमें अपने आप को सुधारना होगा और इस देश की बागडोर अपने हाथों में लेकर देश को चलाना होगा ...

अब इन राजनेताओं पर भरोसा नहीं कर अपने आप पर भरोसा कर इन से अपने मन मुताबिक़ कार्य करवाना होगा ...

जागिये और अपना और साथी देश वासियों का जीवन सुधारिये ...

कुछ ऐसा करने का प्रयत्न कीजिये कि किसी और गजेन्द्र को हताशा में अपना बहुमूल्य जीवन ना गंवाना पड़े ...

कोई और बच्चे यूँ अनाथ ना हों ...

जागो हनुमान आप में वो शक्ति अन्तर्निहित है ,

बस,

उसे पहचानिये ...

जय हिन्द !!!

Sunday, April 12, 2015

एक स्नेहिल पाती मेरे आंदोलनकारी भाइयों व साथी कार्यकर्ताओं के नाम -

एक स्नेहिल पाती मेरे आंदोलनकारी भाइयों व साथी कार्यकर्ताओं के नाम -


याद है हम सब मिलकर अपने अपने जिलों में अपने घरों से निकल कर आये थे भ्रष्टाचार के विरुद्ध ...

ना कोई आधार और ना ही कोई स्वार्थ बस एक जूनून था कि व्यवस्था को बदल डालेंगे और अपनी मातृभूमि को भ्रष्टाचार मुक्त कर के ही दम लेंगे ....


कई बाधाएं आयीं , लाठियां खाईं और जेल यात्रा भी की परंतु कभी ना टूटे ....

वो जूनून हम सब को एकता की डोर में पिरोये रहा ...

आदरणीय अन्ना जी ने राजनैतिक विकल्प की घोषणा की ....

हम में से बहुत असहमत थे परंतु हम ने अपने नेता पर विश्वास रखा ...

हम ने राजनैतिक पार्टी बनायी ...

आदरणीय अन्ना जी का रुख बदला और उन्होंने पार्टी से हाथ खींच लिया ....

हम ने उन पर श्रद्धा ना खोयी और साथ ही अपने लीडर पर भरोसा भी ना खोया और बहुत अपशब्द सुने पर लीडर पर विश्वास कायम रखा ....

पूरे जूनून के साथ दिल्ली चुनाव में हिस्सा लिया और जीते भी ...

ना चाहते हुए दिल्ली में सरकार बनायी और फिर उसे छोड़ने की भूल भी की ...

बहुत उतार चढ़ाव आये परंतु हमारा अपने लीडर पर से विश्वास डावांडोल नहीं हुआ ...

फिर दिल्ली में अभूतपूर्व विजय हासिल की ...

जो कि सब को दूर की कौड़ी लग रही थी...

पर

अरविन्द जी का विश्वास था जो हम टूटे हुओं को प्रेरित कर रहा था ...

हमारी जीत हुई ...

इस जीत के बाद ऐसा क्या हुआ कि कुछ साथी अरविन्द जी पर विश्वास खोने लगे ?

सच तो ये है कि उन्होंने विश्वास खोया नहीं अपितु उन की स्वराज के प्रति निष्ठा को कुछ स्वार्थी तत्वों ने अपने निहित स्वार्थ की लड़ाई में काम में लेने की कोशिश की ...

मुझे मालूम है कि मेरे साथी भाई और बहन मेरे इस प्रश्न को गौर से पढ़ेंगे और मनन करेंगे ...


जब हम सड़कों पर भरी धूप में आंदोलन कर रहे थे तो ये स्वराज के पुरोधा वातानुकूलित कक्ष में वंशवादी परम्परा की राजनीति खेलने वाली कांग्रेस के युवराज को राजनीति की शिक्षा दे रहे थे ...

*तब कहाँ था उन का स्वराज प्रेम ?


*जब वे पिछली राष्ट्रीय परिषद् की बैठक में संविधान संशोधन का गलत translation कर रहे थे तब कहाँ था उन का स्वराज ?

*जब वे हमें इसी बैठक में भेड़ बकरी की तरह हांक रहे थे तब कहाँ था उन का स्वराज प्रेम ?

*जब वे आँख के तारे थे तब पार्टी में स्वराज ही स्वराज था आज जब उन के स्वार्थ और अतिमहत्वाकांक्षा को पकड़ लिया गया और वे आँख की किरकिरी बन गए तो वे स्वराज का नारा लगाने लगे ?

अपनी आँखें खोलिए और इस स्वार्थ की लड़ाई से दूर कर लीजिये अपने आप को ...

पार्टी भी वो ही है और अपने लीडर भी नहीं बदले...

अपने आप पर विश्वास ना खोइए ...

स्नेहाशीष के साथ
आप की बहन

Tuesday, April 7, 2015

स्वराज का यथार्थ

स्वराज मेरा जन्मसिद्ध अधिकार है और मैं इसे ले कर रहूँगा .... भारतवर्ष के हर पढ़े लिखे व्यक्ति को ये वाक्य जोश में भर देता है ....

आज भी इस वाक्य का एक शब्द ज़ोर शोर से उठ रहा है ....

कुछ इस पर काम कर रहे हैं और कुछ इस पर अपने नव राजनैतिक रोटियां सेकने की जुगत में हैं ....

चलिए इस शब्द की व्याख्या करते हैं ....
स्वराज यानि स्वयं का राज या एक ऐसी व्यवस्था जहाँ अपनी बात के अनुसार काम होता है ....

अब इस व्याख्या को कुछ लोग मुखौटा पहना कर स्वार्थ सिद्ध करना चाह रहे हैं ....

भोले भाले कार्यकर्ताओं को दिग्भ्रमित कर उन्हें पशोपेश में डाल रहे हैं ....

आज के आम आदमी पार्टी के सन्दर्भ में इस की विवेचना करते हैं जिस से पार्टी का स्वराज स्पष्ट हो और वे धूर्त, जो इस पर अपनी राजनैतिक रोटियां सेकना चाहते हैं ,बेनकाब हों....

पार्टी की व्यवस्था के अनुसार पार्टी का primary unit (बूथ)के कार्यकर्ता अपनी इच्छानुसार अपना प्रतिनिधि चुनेंगे और उसे वार्ड की कार्यकारिणी में भेजेंगे...

वार्ड की कार्यकारिणी विधानसभा की कार्यकारिणी का गठन करेगी और ये सब प्रतिनिधि जिला की परिषद् का गठन करेंगे और परिषद् जिला कार्यकारिणी का ...

इसी प्रकार राज्य परिषद् और राष्ट्रीय परिषद् और कार्यकारिणी का गठन होगा ....

जब हमारी primary unit, जो कि अपने बूथ मेंबर्स को represent करती है, जिला,राज्य और राष्ट्रीय परिषद् में पार्टी की गतिविधि को संचालित करेगी तो वो क्या स्वराज नहीं है ?

क्या वो बूथ कार्यकर्ता की आवाज़ नहीं है ?

आम आदमी पार्टी संगठन विस्तार से इसी स्वराज की परिकल्पना को साकार करने जा रही है ....

इसी को जानते हुए कई स्वार्थी तत्त्व बहती गंगा में हाथ धो कर स्वयं का उद्धार करना चाह रहे थे ....

दाल ना गलने पर स्वराज का तोता रटन प्रारम्भ कर साथी कार्यकर्ताओं को बरगलाने की कोशिश करने लगे हैं ...

हमें अपने साथियों पर विश्वास है कि वे धूर्त अतिमहत्वाकांक्षी लोगों के इस नकाब को उतार फेंकेंगे और अपनी पार्टी के साथ देश सेवा के व्रत को पूरा करने में लग जाएंगे ....

आम आदमी पार्टी के स्वराज को यथार्थ रूप देना है ...

आइये जुट जाएँ ...

जय हिन्द !!!

Friday, March 27, 2015

एक सत्य का तमाचा ...

एक ब्लॉग पढ़ा -अरविन्द आप को क्या हो गया है ?

लेखक की इस बात से मैं पूर्णतः सहमत हूँ कि वे AC और गाड़ियों के आराम को छोड़ कर आंदोलनकारी कार्यकर्ताओं के साथ कभी भी सड़कों पर नहीं उतरे ....

वे दिल्ली चुनावों में कभी भी सड़कों की ख़ाक छानते मतदाताओं से व्यवस्था परिवर्तन और स्वराज की स्थापना हेतु मतदान की अपील करते नहीं घूमें ....

वे कभी भी आम कार्यकर्ता बनने इच्छुक नहीं थे बस कौशाम्बी में उपस्थिति दर्शा कर अपने नंबर बढ़वाने में व्यस्त रहे , उन्हें लगा कि बाकी राजनैतिक पार्टियों के समान यहाँ भी चापलूसी और चमचागिरी से काम चल पायेगा ...

कौशाम्बी कार्यालय को वे बहुत समय तक दिग्भ्रमित नहीं कर पाये ....

ये महानुभाव दिग्भ्रमित करते जब आँख के तारे थे तो स्वराज मात्र नारा था ...

आज अपने कुकृत्यों के चलते आँख की किरकिरी हैं तो स्वराज की स्थापना का बिगुल बजा कर अपना उल्लू सीधा करना चाहते हैं ...

सर्वप्रथम सब साथी आंदोलनकारियों से करबद्ध क्षमाप्रार्थी हूँ कि हम सब नवराजनीतिज्ञ गाय की खाल ओढ़े भेड़ियों को नहीं पहचान पाये और उन को पार्टी के राज्यों में कार्यभार सौंप कर उन से व्यवस्था परिवर्तन की लड़ाई में सार्थकता की उम्मीद पाल बैठे ...

आज जब उन के असत्यता भरे, स्वयं को परोसने वाले ब्लॉग्स पढ़ती हूँ तो स्वयं पर क्षोभ होता है ...

अतिमहत्वाकांक्षी ये अवसरवादी आम आदमी पार्टी के भोलेभाले देशभक्तों को अपने स्वार्थ के चलते कैसे दिग्भ्रमित कर रहे हैं ....

अपनी लकीर को बढ़ा पाने की काबिलियत ना होने के चलते ये दूसरों की लकीर मिटा कर छोटी करने का असंभव कुकृत्य में फंस कर रह गए हैं ...

इन के एक एक स्वार्थ को अब कार्यकर्ताओं के सामने लाना ज़रूरी हो गया है ....

आज पूछा जा रहा है कि क्या प्रश्न करना गुनाह है ?

अजमेर की तत्कालीन जिला संयोजक जब अपने खिलाफ लगे charges को बार बार पूछ रही थी तो आप का उत्तर था कि ये आरोप आप पर लगे हैं और संगीन हैं इस लिए आप को आरोप बताये नहीं जा सकते ....

कार्यकारिणी निलंबन में आरोप संगीन तो दिखे ही नहीं ...

जब अजमेर में निलंबित कार्यकारिणी सदस्य प्रश्न कर रहे थे और आप अपनी उपस्थिति का आभास भी होने से बच रहे थे और सर झुका कर बैठे थे और उत्तर देने आगे नहीं आये ,क्या तब प्रश्न पूछना गलत था ?

जब आप गुटबाज़ी को बढ़ावा देने की मंशा से कार्यकारिणी से प्रथक किये गए कार्यकर्ताओं को sms भेजते थे और कार्यकारिणी को ignore करते थे तब आप स्वराज का निर्वहन कर रहे होते थे right ?

जब आप ने बिना show cause notice के, media में, अजमेर की कार्यकारिणी भंग करने का notice एक रात को release किया,  जोकि निवर्तमान जिला संयोजक को दूसरे दिन दिन में 2 बजे प्राप्त हुआ , तब आप आम आदमी पार्टी में स्वराज की परिकल्पना को साकार कर रहे थे right ?

जब आप राज्य कारिकारिणी की बैठक की सूचना अजमेर की जिला संयोजक को नहीं देते थे तब आप स्वराज का झंडा बुलंद करते थे right ?

आफिस में बैठकर कर कार्यकर्ताओं को धमकाने वाली चौकड़ी का आज स्वराज स्वराज रटना इस शब्द की मर्यादा को तार तार कर रहा है ...

आइये आप के झूठों की समीक्षा की जाए ....

आप स्वयं जयपुर की कार्यकारिणी से बाहर नहीं रहे, अपितु आप का नाम किसी ने प्रोपोज़ ही नहीं किया ....

जयपुर से स्वयं के टिकट के लिए आप ने लॉबिंग की ...

शुरू से पदलोलुप और चुनाव में टिकट पाने की इच्छा लिए आप अपने ब्लॉग में झूठ लिख कर जो निःस्वार्थता का चोला ओढ़ने की कोशिश कर रहे हैं उस की सत्यता हर वो कार्यकर्ता जानता है जिस के समक्ष इन्होंने publicly इसे स्वीकार किया था ...

मेरी अपने साथी आंदोलनकारियों और कार्यकर्ता बंधुओं से अपील है कि क्षुद्र सोच लिए इन संकीर्ण मानसिकता वाले स्वार्थियों ने स्वराज का झंडा सिर्फ अपने को पार्टी में स्थापित करने को उठाया है ...

इन के जाल में ना फंसिए ...

लक्ष्य पर आँख रख हे अर्जुन

और

अपनी राह की बाधाओं को रौंदते हुए मंज़िल की ओर बढे चलो ....

जय हिन्द !!!

Sunday, March 1, 2015

अस्पताल - आँखों देखी

कहते हैं कि आँखों देखा ही सच होता है ....

बहुत सुना था कि अस्पताल में गन्दगी का आलम रहता है ....

डॉ और नर्सिंग स्टाफ मरीज़ का इलाज ढंग से नहीं करते ....

आये दिन मरीजों के परिजनों और डॉ के बीच झड़प और आरोप प्रत्यारोप का दौर चलता है ....

आदरणीय पिता जी के आईसीयू में भर्ती होने पर सच्चाई से रूबरू हुई ...

ये सच है कि व्यवस्था में अनेकों खामियां हैं ....

मरीज़ के साथ एक ही अटेंडेंट रह सकता है

परंतु

जांच के voils लेने, जांच के सैंपल देने, जांच के सैंपल लाने, दवाई लाने , मरीज़  की बेसिक needs में साथ देने और उस गन्दगी को साफ़ करने, दवाई खिलाने और आई वी पर निगाह रखने इन सब के लिए मरीज़ का अटेंडेंट ही ज़िम्मेदार होता है ...

आप स्वयं सोच सकते हैं कि क्या एक अटेंडेंट ये सब कार्य कर सकता है ?

कल इतवार था और पूरा दिन कोई सफाई नहीं हुई ...

यदि आई सी यू का ये हाल है तो दूसरे वार्ड का क्या हाल होगा ...

टॉयलेट्स बदबू मारते रहते हैं और सफाई का अभाव ....

ये बात भी सच है कि मरीज़ के परिजन भी गन्दगी फैलाने के दोषी हैं परंतु सफाई भी हर समय नहीं की जाती ....

जिस प्रकार डॉ की ड्यूटी पारी के अनुसार होती है उसी प्रकार सफाई कर्मी भी पारी के अनुसार कार्य सम्पादन हेतु रखे जाएँ तो सफाई व्यवस्था सुचारू हो सकती है ....

रही बात डॉ और नर्सिंग स्टाफ की तो कोई भी कोताही देखने को नहीं मिली ...

दोनों मुस्तैदी से अपना कार्य दिन रात करते हैं ...

हाँ नर्सिंग कर्मी अपनी बोली थोड़ी मधुर कर लें तो शायद उन की तरह सेवाभावी और प्रिय कोई और हो ही नहीं सकता ...

सिर्फ थोड़ी समझ, संवेदनशीलता और इच्छाशक्ति से अस्पताल की व्यवस्था बहुत अच्छी हो सकती है ....

बस प्रयास अस्पताल प्रशासन और मरीज़ के परिजन दोनों की ओर से होने ज़रूरी हैं ....