Sunday, July 14, 2013

मानवीय संवेदनाओं की घुटती साँसें

मानवीय संवेदनाओं की घुटती साँसें .....
हताशा का चरम ....
आज की भारत की स्थिति कुछ ऐसी ही प्रतीत हो रही है .....

कल एक माँ ने अपने ही बच्चे को आनासागर झील में फैंक दिया .....

इस से बड़ा चांटा और क्या हो सकता है हमारे आज के भारत के गाल पर कि हम 65  साल बाद भी अपने आम भारतीय को मूलभूत आवश्यकताओं से वंचित रखें हैं .....

ये हमारी व्यवस्था जो नागरिक केन्द्रित न हो कर के VIP केन्द्रित हो चुकी है ...

हमारी सड़ी हुई व्यवस्था जो आज आम नागरिक को हताशा के चरम तक पहुंचा चुकी है .....

हृदय द्रवित हुआ तो मंथन शुरू हो गया .....

लेकिन सच्चाई ये है कि जब जब मंथन होता है तो बुराई की जड़ में हम स्वयं अपने आप को .. आम जनता को ही पाते हैं .....

अशिक्षा 
समाज 
जाति 
धर्म 
स्वार्थ 
पैसा 
पव्वा 
और निष्क्रियता 
इन सब से बंधी भारत की जनता नेताओं के तलवे चाटती है .....

अपने ही जन सेवकों और जन प्रतिनिधियों को अपना माइबाप मानती है .....

भिखारी बनी खुश है .....

चहुँ और मची लूट से अनभिज्ञ / अंधी हम आम जनता स्वार्थ के भंवर में फंसी अपना शोषण करवाती है .....

हमें अपने सब से बड़े अधिकार /कर्त्तव्य की जानकारी ही नहीं है ...या हम जानना नहीं चाहते .....


खैर कल एक महिला ने अपने जिगर के लाडले को आनासागर झील में फेंक दिया .....

हृदय विदारक घटना है .....

इस पर राजनीति बनती नहीं है .....

पर हुज़ूर हो जाती है .....

आदरणीय अजमेर कांग्रेस पार्टी अध्यक्ष महेंद्र सिंह जी रलावता ने दावा किया कि महिला मानसिक रूप से विक्षिप्त है और ये ही कारण रहा कि वो ऐसा कृत्य कर बैठी ....
उन्होंने तो डाक्टरी जांच तक का दावा कर दिया कि ऐसा जांच में प्रूव हो जाएगा ....

वे इस मुद्दे पर अशोक गहलोत सरकार की प्रशंसा के पुल बाँधने लगे ......

अरे भाई एक लाचार महिला ने अपने जिगर के टुकड़े को अपने ही हाथ से फैंका है .....
इसी अशोक गहलोत की रामराज्य सरकार के कार्यकाल में ......

अशोक गहलोत की कांग्रेस सरकार के राज में प्रजा को बहुतायत में सस्ता (एक रुपये किलो ) अनाज जनता को आसानी से उपलब्ध होने का दावा ठोका गया .....
मानो कि आज सब गरीबों को भरपेट खाना उपलब्ध हो ....
कोई भूखा ना सोता हो ....

तरस आता है कागज़ी घोड़ों को दौड़ते देख कर .....

धरातल के सच से आँखें मूंदते इन नेताओं को धिक्कारते हैं हम ....

आज ह्रदय बहुत अशांत है .....

आज एक माँ अपने ही बच्चे को इस संसार में ला कर अपने आप को जब विफल पाती है ....
तो हम अन्दर ही अन्दर रो देते हैं ....
अपने आप को कोसते हैं कि इस व्यवस्था परिवर्तन हेतु पहले ही सब क्यूँ ना उठ खड़े हुए ....

अजमेर दक्षिण की विधायक माननीय अनीता जी मानती हैं कि कहीं ना कहीं हमारी चूक है .....
और उन का दावा भी था कि उन तक पहुंचाई बातों का हल निकलता है ....

अनीता जी को विधायक बने कितने साल हुए ?

अजमेर कहाँ से कहाँ पहुँच गया ??
उन के कार्यकाल में ?
हम सब ने उन की सफल कार्यकालों की कहानियां तो पढ़ी ही होंगी ??

कितनी सफल रहीं वो ?
अजमेर का काय कल्प करवा चुकी हैं .....
हम सब नतमस्तक हैं .....

छी !!!!

कभी कुछ कर ना पाए हमारे जनप्रतिनिधि .....
और दावों की पोटलियाँ बड़ी बड़ी ......

मंथन कीजिये ....

सब और लूट मची है ....
हताशा चरम पर है ....
इस मुद्दे पर भी राजनीति हो रही है ....

परन्तु आम आदमी सो रहा है ....

एक गहरी स्वार्थी नींद ......

ना जाने क्यूँ इन हृदयविदारक घटनाओं को देख कर भी हमारा मन नहीं पसीजता ......

ना जाने हम जनता कब जागेंगे ......

एक अनुत्तरित प्रश्न जो कि शायद हर बार की तरह इस बार भी कहीं खो सा गया है ....

क्या कोई आशा की किरण है ?

आइये आत्मचिंतन कर उत्तर स्वयं अपने भीतर से ही ढूंढें .....

विश्वास रखिये इस का जवाब हम में ही है और ज़रूर मिलेगा ......

जय हिन्द !!!!!!

Saturday, April 20, 2013

सत्यता के धरातल पर योजनाओं की सच्चाई - राजस्थान का सच - A Series


चुनाव का शंखनाद होते ही राजनैतिक पार्टियों की गतिविधियों को मानो पंख लग जाते हैं । 
शुरू हो जाता है घोषणाओं का दौर ...
सरकार अपनी योजनाओं को बढ़ा चढ़ा कर पेश करती है और विपक्ष उस की टांग खिंचाई । 
सत्यता को दोनों नकारते हैं ....एक धरातल की सच्चाई को और दूसरा उपलब्धियों को । 
दरकार है तो अब एक निष्पक्ष आँख की जो सरकारी योजनाओं और घोषणाओं को धरातल पर आंकें । 
आइये हम अब से राजस्थान सरकार की घोषणाओं और योजनाओं का सच सब के सामने लायें । 
विधान सभा चुनाव नज़दीक हैं और राजस्थान सरकार वाहवाही लूटने का कोई मौका अपने हाथों से नहीं जाने देना चाहती । 
आचार संहिता लगने में कुछ माह का समय बाकी है और कांग्रेस सरकार इस से पहले ही अपनी योजनाओं का लाभ लेना चाहती है । 
राज्य सरकार नित नयी घोषणाएं कर रही है और हर वर्ग को लुभाने में जुटी है । 

पर सवाल ये है कि उन पुरानी योजनाओं का क्या हुआ ?
 कितनों को लाभ मिला ? 
कौन कौन सी घोषणाएं पूरी हुई ? 
 उस घोषणा पत्र  का क्या हुआ जिसे दिखा कर वे सत्ता के गलियारों में पैठ कर पाए हैं ?

आइये इन सब पर चर्चा शुरू करें .....


1. सामाजिक और आर्थिक बदलाव वाली योजनाओं की कडवी हकीकत - 


सब से पहले विधवाओं से जुडी योजनाओं की बात करते हैं -

भारत के विभिन्न राज्यों में विधवा पेंशन योजनायें लागू हैं । 

आइये देखें कौन सा राज्य विधवा महिलाओं को कितनी मासिक पेंशन दे रहा है -
दिल्ली - 1500 रुपये प्रति माह 
हरियाणा - 750  रुपये प्रति माह 
महाराष्ट्र - 600 रुपये प्रति माह 
राजस्थान - 500 रुपये प्रति माह 

राजस्थान में विधवा महिलाओं की संख्या है 19 लाख और पेंशन का लाभ मिल रहा है मात्र 4 लाख महिलाओं को । 

राजस्थान में 19 लाख विधवाओं में से 80 % अपने ही हाल पर जिंदा हैं । 

सरकार मदद के नाम पर देती है 500 रुपये प्रति माह पेंशन,खुद के पुनर्विवाह के लिए 15,000 और बेटी हो तो उस के विवाह के लिए 10,000 रु ।
 इस में भी नियम -कायदों का मकडजाल । सरकारी कर्मचारियों -अफसरों और दफ्तरों के अनगिनित चक्कर और साथ ही सुरसा के मुंह के समान कुछ पाने की लालसा लिए दलाल ....
यही वजह है कि विधवा महिला मेहनत  मजदूरी कर अपना और अपने बच्चों का गुज़ारा कर रही है ....

पारदर्शी और संवेदनशील सरकार देने का वादा करने वाली कांग्रेस पिछले चार वर्षों में सिर्फ एक योजना को ही ठीक से धरातल पर कारगर नहीं बना पायी है .....

# योजनायें सिर्फ कागजों में - 

बजट अध्ययन केंद्र राजस्थान के अनुसार महिलाओं के लिए 11 विभागों में करीब 18 योजनायें हैं । इन में से यदि विधवा पेंशन को छोड़ दें तो लगभग सभी योजनायें कागजों तक सीमित हैं,लोगों को उन की जानकारी तक नहीं है और तो और विधवा महिलाओं से जुडी कई योजनाओं के तो विभागों के पास आंकड़े तक उपलब्ध नहीं हैं । 

जैसे - 

1. राज्य में 18 से 50 साल तक की विधवाओं के लिए पुनर्विवाह पर 15,000 रु देने का प्रावधान है । 
* इस योजना में  वर्ष 2009 -10 में 2.85 लाख रु का प्रावधान था ।
 वर्ष 2012-13 में इसे बढ़ा कर 5.00 लाख कर दिया गया । 
* इस में सितम्बर 12 तक मात्र 30,000 रु खर्च हुए थे । 
* लाभ लेने वाली विधवा महिलाओं की संख्या 19 से घट कर 2 पर आ गयी । 

2. विधवाओं की पुत्रियों के विवाह के लिए अनुदान योजना में विधवाओं की बेटी (अधिकतम 2 ) के विवाह के लिए 10,000 रु देने का प्रावधान है । 
* इस में वर्ष 2007-08 में जहाँ 2349 विधवाओं ने सहायता ली थी वहीँ दिसम्बर 2011 तक इन की संख्या घट कर 723 पर आ गयी । 
* बजट में भी  234.90 लाख से घट कर 72.30 लाख रु रह गया । 


सरकार नित लोक लुभावनी घोषणाएं तो कर रही है पर अपनी इन योजनाओं को बीते चार सालों को कसौटी पर नहीं तोल रही और आम जनता को इस लुभावने मकडजाल में उलझा रही है । 
अब आम आदमी को अपनी आँखें खोल कर इन योजनाओं के गणित को समझना और परखना होगा ....
और आप की आँखें खोलने में साथ देंगे हम ......

 - ( आंकडें और कुछ सामग्री साभार दैनिक भास्कर )

Wednesday, February 27, 2013

क्या सर्वोपरि है .....

एक साधारण जागरूक गृहणी हैं हम और कोई एक्सपर्ट नहीं ...
हमारी बात को पार्टी के शब्द न माने जाएँ ....
सिर्फ एक गृहिणी  की सोच ......
ठीक है चुनावी साल है और शब्दों के मायाजाल में घिरे लोक लुभावने बजट की उम्मीद है ....
धरातल की सच्चाइयों से कोसों दूर ......
पर थोडा बजट सेशन देखा तो लगी एक बात मन में घुमड़ने ......
ये सब को अलग थलग सा करता बजट देखने में तो सब का हित समेटे सा लगता है 
परन्तु 
सब को अलग अलग compartments में डालता हुआ .....
हम सब आम भारतीय जनता रहे ही कब हैं ....
हम तो जाति ,धर्म और लिंग में बंटे हैं .....राजनीति के मारे हैं .....
बस एक गुजारिश है वित्त मंत्री से .....
थोडा सा पैसा एक नए विभाग को भी दीजिये जो ये पता लगाए कि पिछले बजट के अनुसार कितने नए लोग लाभान्वित हुए,कितने अल्पसंख्यकों को सच में इन बजट की वित्तीय योजनाओं का लाभ मिला,कितने दलितों को और कितनी महिलाओं को ......
हर बार बजट में घोषणाओं का दौर तो चलता है पर एक feedback website भी बनाइये जिस से कि आम जनता को भी तो पता चले कि घोषणाएं सिर्फ घोषणाएं भर न थीं ...अमली जाम भी पहना था उन ने ....
विश्वास जगाइये आम आदमी में कि उस के टैक्स का पैसा आम जनता के काम आ रहा है ...किसी की जेब में नहीं जा रहा .....
अब बजट में बजट फीडबैक का भी प्रावधान हो .........
हम पिछले 65 सालों में सब दलितों,अल्पसंख्यकों और महिलाओं की स्थिति में सुधार नहीं कर पायें हैं .....
कहीं न कहीं तो कमी है ही न हमारे देश के नेताओं में ......
हमारी आम जनता की स्थिति में सुधार नहीं वरन गिरावट ही आई है .....
स्वयं अपनी योजनाओं का आकलन कीजिये और स्थिति की गंभीरता को समझिये .....
देश चलाना है या पार्टी ......
क्या सर्वोपरि है .....
देश या सत्ता ???