Wednesday, February 29, 2012

क्या भारत सुरक्षित हाथों में है?

क्या भारत सुरक्षित हाथों  में है?
क्या वाकई विदेशियों का हमारी संसद पर नियंत्रण है?


१) ९० के दशक में आयकर विभाग द्वारा कई बहुराष्ट्रीय कंपनियों का सर्वे करने पर उन्हें रंगे हाथों टैक्स चोरी करते पकड़ा गया|उन्होंने अपना जुर्म क़ुबूल किया और बिना अपील किये सारा टैक्स जमा करा दिया|कोई और देश होता तो इन कंपनियों के वरिष्ठ अफसर जेल मे होते,परन्तु,  भारत है..........

२)ऐसे ही एक सर्वे के दौरान एक विदेशी कंपनी के मुखिया ने धमकी दी - भारत एक गरीब देश है और हम आप कि मद्दद करने आये हैं,यदि आप ऐसे तंग करोगे तो हम देश छोड़ कर चले जायेंगे|आप नहीं जानते कि हम कितने ताक़तवर हैं|हम चाहें तो आपकी संसद से कोई भी क़ानून पारित करवा सकते हैं|आप लोगों का तबादला भी करा सकते हैं| और इस के बाद एक वरिष्ठ अफसर का तबादला हो भी गया |   भारत है.........
३)जुलाई २००८ में यू पी ए सरकार को संसद में अपना बहुमत सिद्ध करना था|खुले आम सांसदों की खरीद फरोख्त चल रही थी|कुछ टीवी चैनलों ने  सांसदों को बिकते दिखाया |देश कि आत्मा हिल गयी| हमारे वोट की कीमत का एहसास हुआ |आज सांसदों को एक पार्टी खरीद रही है तो कल कोई और देश भी खरीद सकता है|हो सकता है कि ऐसा हो भी रहा हो???   भारत है.......
४)संसद में प्रस्तुत न्यूक्लीयर सिविल लायबिलिटी बिल कहता है कि कोई विदेशी कंपनी यदि भारत में परमाणु संयंत्र लगाती है और उस में कोई दुर्घटना हो जाती है तो कंपनी की ज़िम्मेदारी केवल १५०० करोड़ रुपए तक ही होगी|
भोपाल गैस त्रासदी में पीड़ित व्यक्तियों को अभी तक २२०० करोड़ रुपये मिले हैं और वे काफी कम हैं ऐसे में १५०० करोड़ रुपये तो कुछ भी नहीं होते|
इसी बिल में आगे है की उस कंपनी के खिलाफ कोई आपराधिक मामला भी दर्ज नहीं होगा और कोई मुकदमा भी नहीं चलाया जाएगा|कोई पुलिस केस भी नहीं होगा बस १५०० करोड़ रूपये ले कर उस कंपनी को छोड़ दिया जाएगा|
साफ़ साफ़ ज़ाहिर है कि ये कानून देशवासियों की जिंदगियों को दांव पे लगा कर विदेशी कंपनियों को फायदा पहुंचाने के लिए लाया जा रहा है|
हमारी संसद ऐसा क्यूँ कर रही है?यकीनन या तो हमारे सांसदों पर किसी प्रकार का दबाव है या कुछ सांसद या पार्टियां विदेशी कंपनियों के हाथों बिक गयी हैं.    भारत है...........

इन सब बातों को देख कर मन में प्रश्न खड़े होते हैं -"क्या भारत सुरक्षित हाथों में है?क्या हम अपनी ज़िन्दगी और अपना भविष्य इन कुछ नेताओं के हाथों में सुरक्षित देखते हैं?


सोचनीय प्रश्न हैं ...सोचिये और उत्तर दीजिये.......

आप के उत्तर की प्रतीक्षा है..........

Tuesday, February 28, 2012

ज़रा सोचिये

ज़रा सोचिये -
हम अपने देश की राजनैतिक व्यवस्था के अंतर्गत पांच साल में एक बार वोट दे कर अपने कर्तव्य की इतिश्री  कर लेते हैं और फिर हमारे उन चुने गए राजाओं (नेताओं)के सामने गिडगिडाते रहते हैं.
जनता का पूरी व्यवस्था पर किसी भी प्रकार का नियंत्रण नहीं है ....क्यूँ.......?????????
क्यूँ कि हम अपने कर्तव्यों का निर्वहन सही प्रकार से नहीं करते -
१) वोट देने नहीं जाते.
२)अगर जाते भी हैं तो धर्म,जाति,जान-पहचान,पैसा और पव्वे  आदि के आधार पर वोट देते हैं|
 सही आधार पर वोट देगे तो ही सही व्यक्तियों का चयन संभव होगा जो की जनता के सही जनप्रतिनिधि होंगे|
सही आधार क्या है?
सही आधार है कि हम एक अच्छे कार्यकर्ता को चुने -
१)ऐसा व्यक्ति जो हमारे क्षेत्र में जन हित कार्य में लगा रहा हो |
 २)सेवाभावी हो.हमें जाति के आधार पर न बांटे यानी कि हमें वोट बैंक न समझे |
३)हमारे वोट को खरीदने कि कोशिश न करे|
४)जो अपना जीतने के बाद कार्य करने का तरीका स्पष्ट करे - यानी कि क्या वह पार्टी लाइन  को सर्वोपरि रखेगा या जनता को जिस ने उसे चुन कर भेजा है|
५)जो जनता के प्रति अपनी जवाबदेही रखेगा.
६)जो, हर ऐसा मुद्दा जो कि जनता से जुड़ा होता है उस में जन सभा के माध्यम से जनता कि राय लेगा और सदन में उस ही राय पर अपना मत देगा.
७) जो अपने कोष का उपयोग जन सभा के माध्यम से,जनता की मर्ज़ी  से उपयोग करेगा और जनता को जांचने परखने का मौका देगा कि कहीं कोई भ्रष्टाचार तो नहीं हो रहा है|

आईये हम सब व्यवस्था परिवर्तन की ओर अग्रसर हों  और देश को चलने में मदद करें|आज समय की मांग है कि जनता खुल कर अपने कर्तव्यों का पालन करे ओर गर्त में डूबते अपने देश को बचाएं|

Wednesday, February 15, 2012

मौन व्यथा - सक्षम चेतना


आज की समयोचित पंक्तियाँ - काश आज की सरकार समझ पाए जन जन की वेदना और उन का दबा हुआ आक्रोश ...........


'जंजीर बढ़ा कर बाँध मुझे,
 हाँ हाँ दुर्योधन साध मुझे '




ये देख गगन मुझ में लय है
ये देख पवन मुझ में लय है
मुझ में लय है संसार सकल
मुझ में लय है झंकार सकल 
सब जन्म मुझी से पाते हैं
फिर लौट मुझी मैं आते हैं


हित वचन न तूने माना है
मैत्री का मूल्य न जाना है
याचना नहीं अब रण होगा 
जीवन, जय या फिर मरण होगा.........


यह भ्रष्ट हम को क्या साध पायेंगे....... आज तो सर पे कफ़न बाँध कर सब जन निकल चुके हैं......


ये न भूलें सब कि लौट के उन को जनता के पास ही आना है...... उन का हश्र क्या होगा वे जान लें.अब जनता चुप नहीं रहेगी.......


हम सब के हित वचन न मान कर अक्षम्य भूल करने वालों अब आर या पार की लड़ाई लड़ी जायेगी.........


जय जय भारत...... जय हिंद.

Wednesday, February 8, 2012

Voice Against Corruption: आधुनिक भारत का आधुनिक राजतंत्र

Voice Against Corruption: आधुनिक भारत का आधुनिक राजतंत्र: हम तो इसी खुशफ़हमी को पाले बैठे थे कि भारत एक प्रजातान्त्रिक देश है,एक लोकतंत्र है जहाँ की शासन व्यवस्था जनता के लिए-जनता के द्वारा की जात...

आधुनिक भारत का आधुनिक राजतंत्र

हम तो इसी खुशफ़हमी को पाले बैठे थे कि भारत एक प्रजातान्त्रिक देश है,एक लोकतंत्र है जहाँ की शासन  व्यवस्था जनता के लिए-जनता के द्वारा की जाती है.हम अपने जनप्रतिनिधियों का चुनाव के द्वारा चयन करते हैं और वे जनता को स्वच्छ और निष्पक्ष शासन उपलब्ध कराते हैं.
धीरे धीरे हम कूप मंडूकों ने बाहर  का रूख किया व् आँखों पर से पर्दा हटा,सच्चाई परत दर परत हट कर सामने आने लगी-अरे यह क्या??- विश्व को नए नए आविष्कारों से लाभान्वित करने वाले भारतियों ने एक नया तंत्र खोज निकाला.... प्रजाराजतंत्र -

अब चलिए इस की भी व्याख्या कर ली जाए - 

एक ऐसा तंत्र जिस की जड़ें सामंतवाद को न छोड़ पायीं हों - 

एक ऐसा वृक्ष जिस की जड़ हो वंशवाद,तना हो पार्टीवाद व् शाखाएं हो गुलामवाद की. 
जिस पर लगे मधुर फलों का रसास्वादन करें महान जड़ परिवार (जड़ ही फल डकार जाए ऐसा विश्व में कोई वृक्ष देखा है?),जूठन गुलाम परिवार व् यदि कोई रस धरती पर टपके या फल का कोई अंश धरती पर गिर जाए तो उसे लपका जाए घातवाद के व्यक्तियों द्वारा.

मूर्ख जनता इसी खुशफ़हमी में हर पांच साल  में उस प्रजाराजतान्त्रिक देश को सींचती रहे कि यह उस के द्वारा,उस के लिए खड़ा किया गया है और कभी न कभी तो उस का फल उस के भी नसीब में भी आएगा........

हम भारतीयों की एक खूबी है - धैर्य -हम में कूट कूट कर भरा हुआ है यह - हम किसी भी विपत्ति में इस का साथ नहीं छोड़ते (फिर चाहे सोमनाथ ही क्यूँ न लुट रहा हो-प्रभु आयेंगे न और सब ठीक कर देंगे).भगवान् सब का भला करे - आज नहीं तो कल हमारा भी भला होगा - अभी भगवान् हमारी परीक्षा ले रहा है......ये सब वाक्य हम ने ढूंढ़ रखे है अपने को दिलासा देने को व् अपनी अकर्मण्यता पर पर्दा डालने को.

अरे भलेमानसों अब तो जागो - आप के द्वारा सिंचित वटवृक्ष पर परिवारवाद हावी क्यूँ? जो भी इस परिवार से जुड़ता है मानने लगता है की वह सत्ता योग्य है,उस में यह भावना पनपती जाती है की वे भी शासन करने योग्य हैं चाहे योग्यता पर प्रश्नचिन्ह  हो.......... मानों परिवार पारस पत्थर है और लोहे को सोना कर देगा.

 पर ऐसा कुविचार हम सामंतशाही के पुजारी,अपने पाँव धो धो कर पीने की प्रवृति के चलते ही तो उन में भरते हैं न......

आज समय की मांग है कि हम सब उठें और अपने देश के लिए योग्य कार्यकर्ताओं का चयन करें.आज समय है समर्थ,non corrupt,निस्स्वार्थ सेवा भावी  व्यक्ति को चुनने का-

हे भारतवासियों अब निद्रा व् अकर्मण्यता त्यागो और योग्य सिद्ध होने पर ही किसी व्यक्ति को अपने अमूल्य वोट की सौगात दो अन्यथा नहीं.

आह्वान

जब हमारे चुने हुए प्रतिनिधि जनता की बात नहीं मानते तो उन को हटाना ज़रूरी हो जाता है और यदि इसी को सत्ता परिवर्तन कहते हैं तो हाँ सत्ता परिवर्तन आज की ज़रुरत है.आज के परिपेक्ष में हमारे जन प्रतिनिधि अपने दायित्व का निर्वाह नहीं कर पा रहे हैं,उन की अपनी मजबूरियां हो सकती हैं,इंडिया अगेंस्ट करप्शन टीम अन्ना उन को आह्वान करती है की वे मजबूरियों के बंधन को तोड़ दें और देश की जनता,जिन ने उन को चुना है,उनका साथ दें.यदि वे इस बार चूक गए तो जनता उन का साथ छोड़ देगी और किसी और को अपना प्रतिनिधि बनाएगी,सो समय रहते सब चेत जाएँ तो अच्छा है.
भ्रष्टाचार की लड़ाई में हम सिर्फ और सिर्फ स्वछ छवि वाले जनप्रतिनिधियों को चुनने के लिए जनता से अपील करेंगे,अब पार्टी गौण है,व्यक्ति ही अपनी छवि के कारण चुना जाएगा.
आईये एक भ्रष्टाचार मुक्त भारत के निर्माण की ओर कदम बढ़ाएं.

Sunday, February 5, 2012

जनता की अपेक्षा

विरोध की राजनीति करने वाले negative attitude रखते हैं.
आज समय की मांग है कि देश-हित व् जन -हित के मुद्दों पर सब राजनैतिक दल एक हो कर जनता के लिए काम करें.
अब जनता पुरानी सीधी-साधी,मूर्ख, gullible जनता नहीं है कि वह किसी नेता की व्यर्थ नाम कमाने कि कोशिशों को न भांप पाए.
अब हम सब नेताओं को कठघरे में खड़ा रखेंगे जब तक कि वे राजनीति छोड़ कर सिर्फ जनता के हिताय काम न करने लगें .
व्यर्थ की तू तू मैं मैं से हमें कोई मतलब नहीं,व्यर्थ कि टांग खिंचाई से हमें कोई लेना देना नहीं और वर्चस्व कि लड़ाई का हमारी निगाह में कोई महत्त्व नहीं है.


आप अपनी पार्टी के लोगों से जलते हो तो यह आप का निजी मामला है - आप ही  में कोई खामियां होंगी जो आप को उन के समकक्ष नहीं होने दे रहीं -  तो आत्म विश्लेषण कीजिये एकांत में,जनता के बीच अपनी टांग ऊँची सिद्ध करने कि बजाय जनता की सेवा करने में अपनी energies  लगाएं वह ज्यादा फायदे का सौदा रहेगा.


जनता को नेताओं कि व्यक्तिगत प्रतिस्पर्धा से अरुचि ही उत्पन्न होती है - हम ने आप को अपना निजी हित साधने हेतु नहीं जिताया है - जनप्रतिनिधियों को जिताया जाता है - देश,प्रदेश और स्थानीय विकास हेतु - और यदि आप  राजनीति और व्यक्तिगत लड़ाई और प्रतिस्पर्धा में लगे रहते हैं तो अभी से अपने दिन गिनना शुरू कर दीजिये क्यूंकि यकीनन आप से त्रस्त जनता की आप में कोई रूचि नहीं बची है.


जनता कि आँख टिकी है सिर्फ और सिर्फ विकास और सार्थक  प्रयास पर.


अगर किसी भी कार्य संपादन का प्रयास संजीदगी से किया जाए तो उस की असफलता के बाद भी जनता का जुड़ाव अपने नेता  से बना रहता है क्यूंकि उन  के सार्थक प्रयास को जनता  देख रही थी.
जनता उस नेता को ही अपना हितैषी व् कार्यकर्ता मानती है जो साफ़ नीयत से सार्थक प्रयास करे.


आज कोई भी राजनैतिक पार्टी यदि देश,प्रदेश या स्थानीय स्तर पर कोई जनता के हित के लिए कार्य करती है तो हम जनता कि ये अपेक्षा रहती है कि स्थानीय व्यक्ति जो अपने आप को जनता का प्रतिनिधि मानते हैं और होने का दावा करते हैं - वे सब उस सद्कार्य में कंधे से कन्धा मिला कर काम करें.श्रेय प्राप्ति की होड़ में न जुट जाएँ,सिर्फ काम करें. 
जनता कि निगाहें लगातार आप पर बनी हुई हैं कि आप क्या positive या negative कर रहे हैं.


अब सिर्फ काम करने का समय आ गया है - 
१)मलाई खानी है तो नेता ना बनें .
अब कार्यकर्ताओं का समय है  -
२)आराम करना है तो नेता ना बनें.
अब सब के हिताय काम करना है- 
३)जात-पांत कि गन्दी राजनीति खेलनी है तो नेता ना बनें.

अब से नेता का अर्थ है-
वह व्यक्ति जो- 
१)अपने हित से ऊपर देश हित को रखे.
२)स्वार्थ से ऊपर निस्स्वार्थ सेवा को रखे.
३)देश को विभिन्न जाति समाज में बांटने कि अपेक्षा - एक देश व् एक राष्ट्र कि नीति में विश्वास रखे.

फूट डालो और राज करो एक दुष्प्रयास था -
स्वस्थ एकात्मस्वरूप राष्ट्र का निर्माण करें तभी आप देश के नेता कहलायेंगे अन्यथा नहीं.

विरोध की मशाल

आज जनता क्या सोचती है कि वह भ्रष्टाचार के विरोध में खड़ी हो गयी है तो क्या ये भ्रष्ट लोग आसानी से हाथ में आ जायेंगे????????
 अरे भाई ये लोग इतनी आसानी से हार मानाने वाले नहीं है....
 ये इतनी आसानी से घुटने टेक देंगे क्या? ये आप को डरायेंगे,धमकाएंगे,आप के loop holes खोज कर साथ की जनता को बिद्कायेंगे,ये आप के खिलाफ लोगों द्वारा झूठे मुक़दमे दायर करवाएंगे,आप के घर के लोगों को तंग करेंगे,ये आप को भी प्रलोभन देने की कोशिश करेंगे,ये जांच agencies को खरीद लेंगे और आप पर दबाव बनाने की पूरी कोशिश करेंगे आखिर इन की ज़िन्दगी तो भ्रष्टाचार पर ही टिकी है न.


 अब हमारी भूमिका की भी व्याख्या करी जाए -
 १) हम में से कुछ लोग यानी कि जनता तो पहले से ही ये बोल रही है कि इस देश का कुछ नहीं हो सकता -बिना लादे हार मानने वाले लोग- यानि कि ये घुटने टेकने वाली पहली जमात है जो की बिने लड़े ही हार मान चुकी है और अपने स्वार्थों की पूर्ति में मग्न रह कर जीवन गुज़ार रही है-ज़ाहिर तौर पर सारा दोष हमारी इसी जमात का है.........
 २) हम में से कुछ लोग शुरुआत में इस लड़ाई में जोर शोर से हिस्सा लेंगे परन्तु इस लड़ाई को लम्बी खिंचती देख अपने पैर पीछे खींच लेंगे,इन का लम्बी लड़ाई का कोई मूड नहीं है-अगर फ़टाफ़ट परिणाम मिले तो ही इन का interest इस लड़ाई रह सकता है - हथेली पर सरसों उगे तो ही लड़ना है अन्यथा नहीं.
 ३) कुछ कहेंगे कि भाई क्या देश की वजह से अपने परिवार पर आंच आनें दें ? - विपरीत परिस्थितियों से डरने वाले दोस्त.......भाई हमारे पति/पत्नी का स्थानांतरण कर दिया तो मुश्किल बढ़ सकती है - न बाबा न.
 ४) और कुछ हमारे प्यारे दोस्त जो थोड़े से प्रलोभन से बिक सकते हैं - भाई वैसे ही कुछ पाने ही तो आये थे न इस आन्दोलन में......सो पा लिया न.....क्या फर्क पड़ता है...इधर या उधर ......अब सीढ़ी उस राह की चढ़ लेंगे......


 राहें ऐसे नहीं रोशन हुआ करतीं- दिया बन के रोशनी देनी पड़ती है,दिए की बत्ती की मानिद जलना पड़ता है,सर्वस्व होम करना पड़ता है तभी मनचाही आज़ादी पाने का स्वप्न पूरा हो पायेगा - देश को भ्रष्टाचारी आततायियों से निपटने में अभी समय लगेगा- आईये सब धैर्य और निस्स्वार्थ भाव से इस लड़ाई में जुटे रहें-
राह कठिन है पर दूर इक रोशनी की किरण अभी से ही नज़र आने लगी है -आयें उस की ओर रूख करें धीरे धीरे राह के काँटों को चुनते जाएँ और आने वाली पीढ़ियों के लिए राह आसान करते जाएँ- आखिर हमें उन को भी तो मूंह दिखाना है.........

स्वार्थ का खेल

हर जगह लेने वालों की धूम है.जिस को मौका पड़ता है कुछ लेने ही किसी भी आन्दोलन में या राजनीति में कूद पड़ता है. अब कोई ये इन्हें कैसे समझाए की आज का समय लेने का नहीं देने का है.आज हम को सिर्फ भारत माँ का क़र्ज़ चुकाना है. हमें कुछ लेने नहीं देने के लिए आगे आना है. अब स्वार्थ छोड़ कर निस्स्वार्थी होना है.आज देश को हमारी ज़रुरत है भ्रष्टाचार मुक्त भारत बनाने हेतु और आप हैं कि इस आन्दोलन से भी अपने ही फायदे की सोच रहे है...... लानत है ऐसे लोगों पर और उन की सोच पर. हर जगह शक्ति प्रदर्शन की ज़रुरत नहीं,किसी किसी जगह बिना किसी स्वार्थ के देश हित कार्य कर के देखिये उस में जो आनंद मिलेगा वो आप को कोई स्वार्थपूर्ति नहीं दे सकती. आईये स्वार्थ त्याग निस्स्वार्थ देशप्रेम का परिचय दें और सब जनता के लिए एक आदर्श स्थपित करें जिस से उन्हें आप के पीछे चलने में गौरव की अनुभूति हो. अब बस एक ही नारा - जयहिंद और जय-देशप्रेम .

हाय मजबूरी

आज हमारे नेताओं का ज़मीर इतना कैसे मर गया है कि वे सत्ता लोलुपता की सारी सीमाएं लांघ चुके हैं. क्या उन को बिलकुल यह महसूस नहीं होता कि उन कि भी कुछ फ़र्ज़ है. मैं हमेशा से मानती आई हूँ कि personal attacks किसी पर भी करना गलत है सो बहुत ही सधे हुए शब्दों में कहना चाहूंगी कि - क्या हमारे प्रधान मंत्री को आज के उन के कैबिनेट मिनिस्टर्स पर बिलकुल भी शर्म नहीं आती? क्या उन को यह नहीं लगता कि नैतिकता के आधार पर उन्हें अपनी कुर्सी त्याग देनी चाहिए? क्या सत्ता का लालच उन को भी ले डूबा है? क्या उन को कोई भी statements रिलीज़ करने में शर्म महसूस नहीं होती कि वे किस हक से यह सब बोल पा रहे हैं? क्या उन का ज़मीर उन को रातों को सोने देता है? क्या वे ऐसा नहीं सोचते कि वे अपने देश कि जनता के साथ गद्दारी कर रहे हैं? क्या वे अपने आप को जनता कि अपेक्षाओं  के अनुरूप पाते हैं? क्या वे इस से अनभिज्ञ हैं कि जनता क्या चाहती है? क्या ये सब प्रश्न उन के दिमाग में मंथन करते हैं या वे अपनी conscience को गिरवी रख चुके हैं? क्या सत्ता की भूख ऐसी ही होती है कि व्यक्ति को उस कुर्सी के आगे कुछ दिखाई या सुनाई नहीं देता? मैं हतप्रभ हूँ!!!!!!!!!!!

देशभक्त राजनेता ???

आज का वातावरण और देश में राजनीतिज्ञों के हाल देख कर मन खिन्न होता है. बात तो करते हैं देश को बचाने की परन्तु उस में भी राजनीति करने से बाज नहीं आते. अगर कोई बात बिना जात-पांत को बीच में लाये की जाए तो क्या उस का वजन कम हो जाता या क्या वह बात आम जन तक नहीं पहुँच पाती? ऐसा क्यों नहीं होता कि राजनेता सिर्फ देश और देश की बात करें,देश की दुर्दशा कि बात करें परन्तु सार्थक तरीके से. हम बिना जनता को जाति में बाँटें कोई बात क्यों नहीं कह सकते?हम कोई भी चर्चा करते हैं तो समाज के नाम से क्यूँ?कानून व्यवस्था की बात तो बिना जात-पांत के ही की जानी चाहिए न...... आज हाँ,कई हत्याएं हुई हों और एक ही समाज के व्यक्तियों की विद्वेश्तापूर्ण इरादे से तो माना जा सकता है कि समाज का नाम आये परन्तु तीन हत्याएं अलग -अलग समय पर की जाएँ और उन का एक दूसरे से कोई सम्बन्ध न हो और फिर भी वे प्रचारित की जाएँ कि अमुक समाज के लोगों की हत्या तो मामला समझ से परे है. हम अगर देश को जाति व् समाज में बांटे बिना आगे बढ़ें तो ही हम एक सच्चे देशभक्त कहलायेंगे. शान्ति समितियों के गठन की बात पर यदि जनप्रतिनिधि अपना प्रतिनिधित्व चाहते हैं तो उन को अपनी पार्टी लाइन के दायरे से बाहर आना होगा और जनता और सिर्फ जनता के प्रतिनिधि के तौर पे काम में हिस्सेदारी निभानी होगी.सब के साथ सामान व्यवहार रखते हुए कार्य करना होगा बगैर राजनीति को बीच में लाये. जनप्रतिनिधियों को ये बात कतई नहीं भूलनी चाहिए किवे जनता के प्रतिनिधि हैं न कि सिर्फ उन के जो उन की विचारधारा से सहमत हैं या जिन्होंने उन्हें वोट दिया है. बल्कि उन को तो इस तरह से कार्यसम्पादन करना चाहिए कि वे व्यक्ति जिन्होंने उन को पहले वोट नहीं दिया था वे भी उन के सद्कार्यों और निर्लिप्त भाव से सेवा करने कि आदत से प्रभावित हों अगली बार उन को वोट देने से अपने आप को ना रोक पायें. ऐसा तभी हो सकता है यदि जनप्रतिनिधि तुच्छ राजनीति से ऊपर उठ कर कार्य करने कि आदत डाल लें. उन का व्यवहार व् उन की कार्यप्रणाली ही उन कि जीत की गारंटी हैं. आज की मांग है कि हर राजनेता स्वार्थ छोड़ कर देशसेवा और जनसेवा में आनंद ढूंढे और अगर वह यह नहीं कर पाता है तो अब उसे यह मान लेना चाहिए की उस के दिन लद चुके हैं क्यूंकि जनता अब जाग चुकी है व् थोथे नारों या थोथी बातों में आने वाली नहीं है.

अधिकार व कर्त्तव्य

मानव के जीवन में अधिकार व कर्त्तव्य का स्थान एक साथ है. अभिव्यक्ति की आज़ादी हम सब का अधिकार है और इसी आजादी के साथ जुड़ा है हमारा कर्त्तव्य कि हम अपनी इस आजादी से किसी की भावनाओं को ठेस न पहुंचाएं. अधिकार व कर्त्तव्य मानव जीवन में साथ साथ चलते हैं-असल में सही बात तो यही है कि कर्तव्य पालना से अधिकार स्वयं ही प्राप्त हो जाते हैं. अभिव्यक्ति के अधिकार की आलोचना यदि कट्टर हो कर की जाए तो उस पर ऊँगली उठाना स्वाभाविक है और यदि सही आलोचना को positive frame of mind से ले कर मान लें तो व्यक्ति को सब की नज़रों में उठता है. उपरोक्त बातें तो सामान्यत: कही गयी हैं परन्तु वेदना का विषय है स्वातंत्र्य को दफ़न करना और उस से ज़्यादा उस गलत कदम को पोषित करना व् जायज़ ठहराना और सरकार द्वारा दमन की नीति अपनाना,खुले में न आना,व् किसी और के कंधे पर रख कर बन्दूक चलाना,राजनीति करना और वोट बैंक की तरह एक समुदाय विशेष को मानना . एक राजनैतिक पार्टी विशेष के प्रवक्ता ने कहा की उन की पार्टी नहीं चाहती थी कि व्यक्ति विशेष जयपुर आयें.उन कि यात्रा से समुदाय विशेष की भावनाएं आहत हो रही थीं,अगर वे आते तो कानून व्यवस्था की स्थिति बन जाती.माहौल खराब होने और हिंसा होने की प्रबल आशंका थी.इस लिए सरकार ने परिस्थितियों के अनुसार जनहित में जो कदम उठाया वह सही है.(दैनिक भास्कर -अजमेर-बुधवार,२५ जनवरी २०१२,पृष्ठ संख्या ६) यह पढ़ कर कुछ सवाल ज़हन में उठ खड़े होते हैं- १) पार्टी विशेष नहीं चाहती थी........... जनता कोई भी समारोह आयोजित करेगी तो क्या राजनीति उस पर हावी रहेगी? क्या आज आम जनता का दैनिक जीवन भी राजनीति की भेंट चढ़ेगा? क्या हमारी स्वतंत्रता हमारी उदासीनता लील गयी है? जागो भारत जागो!!!!!!!! २)उन की यात्रा से समुदाय विशेष की धार्मिक भावनाएं आहत हो रही थीं........ आज लेखक अपने कडवे किन्तु सत्य लेखों के लिए जाने जाते हैं.उन का मकसद किसी की भावना को आहत करना नहीं अपितु अगर कुछ ग़लत हो तो उस को उघाड़ कर मानव को झकझोरना होता है ताकि वे पथभ्रष्ट होने से बचें. हम आम आदमी तो सब समुदायों को एक ही नज़र से देखते हैं - एक धर्मनिरपेक्ष भारतीय की नज़र. इस कारण से प्रवक्ता जी का तर्क राजनीति की बू लिए दीखता है,तुष्टिकरण की नीति से प्रेरित दिखता है. जागो भारत जागो!!!!!!!!! ३) व्यक्ति विशेष आते तो कानून व्यवस्था की.......... कानून व्यवस्था को बनाये रखना,हिंसा आदि को रोकने के लिए सरकारी तंत्र है न और वे सब जिन से हिंसा का भय हो उन को पाबन्द करने के लिए कानून. परन्तु इन को प्रयोग में लाने के लिए इच्छाशक्ति की आवशयकता होती है और यह कोई वह सरकार ही कर सकती है जो राजनीति न करती हो और जन सेवा ही जिस का फ़र्ज़ हो. आज हमारे राजनेताओं में वोट बैंक,तुष्टिकरण इत्यादि शब्द कूट-कूट कर भरे हैं तो देशभक्ति व् जनकल्याण के लिए जगह कहाँ मिलेगी? जागो भारत जागो!!!!!!! ऐसे व्यक्ति चुनो जो सब को सामान दृष्टि से देखते हों,जो स्वच्छ राजनीति करें,जो देशभक्त हों,कार्यकर्ता हों और भ्रष्टाचार मुक्त भारत के निर्माण के लिए संकल्पबद्ध हों. आईये ऐसे व्यक्तियों को चुन कर एक सुनहरे भारत का निर्माण करें. जय हिंद.

राजनेताओं का कड़वा सच

बहुत समय से एक टीस सी थी मन में सो आज सब से शेयर करना चाहते हैं - हम ने देखा है की आज देश की तरक्की गौण रह गयी है इन नेताओं की आँखों में और इन का पार्टी प्रेम तो नहीं अपितु दिखावा शेष रह गया है कि वे एक विशेष पार्टी के हैं सो किसी और के राज में अगर कोई देश हित का काम हुआ तो वे उस में या तो खामियां ढूँढने की कोशिश करेंगे या अपने समय में बनी योजना का हवाला दे कर श्रेय लेने की कोशिश करेंगे. मेरी उन पथभ्रष्ट नेताओं से अपील है कि वे यह सब करना बंद कर दें क्यूंकि हम जनता की आँखें खुली हुई हैं व् हम सब साफ़ साफ़ देख पाते हैं,हमें न बताएं बस सिर्फ काम कर के दिखाएँ बाकी का सब हम देख लेंगे कि वोट किस को देना है और कौन कितने गहरे पानी में है?चुने हुए नेता व् स्थानीय नेता अपनी अपनी रोटी सेकने और छपास कराने के लिए न बोलें कुछ concrete कर के दिखाना हो तब ही मुह खोलिए नहीं तो अब मूंह खोलने और वोट देने को जनता जागरूक हो चुकी है व् किसी की भरमाई में नहीं आने वाली है. अब आप पूछना चाहेंगे कि यह आक्रोश क्यूँकर और आज ही क्यूँ? असल में देश कि मौजूदा स्तिथि को देख कर यह तड़प तो थी ही परन्तु आज का अखबार देख कर हृदय में एक ज्वाला सी धधकी - कल अजमेर में पुष्कर से अजमेर तक कि चिरप्रतीक्षित रेलगाड़ी को हरी झंडी दिखाई गयी व् पहली बार इस ट्रैक पर ट्रेन दौड़ी. यहाँ पर भी राजनीति!!!! हम किसी की व्यक्ति विशेष या राजनीति की बात नहीं कर रहे - हम सिर्फ वो ही बात कहेंगे जिस से जो दिल को चोट पहुंची, उस का ही बयां करेंगे जिस से दिल को दुःख पहुंचा - पुष्कर से अजमेर रेलमार्ग कितना लम्बा है या उस को हम रोड से कितने समय में कवर कर सकते है कल ये मुद्दा कतई नहीं था परन्तु गाडी ने डेढ़ घंटे का समय लिया,मंत्री जी इस गाडी में बैठते तो इस की खामियां पता चलती,रेलगाड़ी है या बैलगाड़ी,योजना NDA सरकार के समय बनी थी और अब तक के क्रियान्वन में जो समय लगा तो खर्च बढ़ा उस खर्च से आगे का भी काम हो सकता था इत्यादि. आज जब कार्य हो रहा है तो उस का खुश हो कर स्वागत करना चाहिए न कि इधर भी राजनीति लायी जानी चाहिए. आज जब सब को इतनी फ़िक्र थी तो आज तक अजमेर के लिए उन सब के द्वारा क्या कार्य किया गया इस का ब्यौरा यदि हम सब जनता मांगने लग जाए तो निश्चित ही अजमेर में राजनीति करने वाले सारे नेता मूंह छिपा कर भागते नज़र आयेंगे. अजमेर की जनता उन के लिहाज में अब तक चुप थी परन्तु अब अनर्गल प्रलाप करने वालों को उन ही के मंच से उन के अजमेर के लिए किये गए कामों का ब्यौरा माँगा जाएगा और वोट देने के लिए सौ बार सोचा जाएगा. सो सब राजनेताओं से अपील है कि वे सिर्फ अपने काम की और ध्यान दें और राजनीति भूल जाएँ - आज जनता को कार्यकर्ताओं की ज़रुरत है बोलने को तो अपने दिग्विजय जी हैं न सब की कमी पूरी करने के लिए. और यदि सब को बोलने का मन है तो बताइए कि भ्रष्टाचार के बारे में आप क्या बोलते है,इस को स्वयं में से और समाज से दूर करने के लिए आप क्या कर रहे हैं,एक सशक्त लोकपाल बिल के सम्बन्ध में आप का क्या रूख है और इसे लाने में आप जनता की कैसे मद्दद कर सकते हैं इत्यादि . किसी की टांग खीचने में क्या मज़ा है,मज़ा तो है positive बात करने में,देश हित कार्य करने में. आज के नेताओं सिर्फ अपना हित साधना चाहते हैं,परन्तु उन को यह नहीं पता कि आज जनता की पैनी नज़र उन के कार्यों और उन के विचारों पर है और उन सब का जनता समय आने पर ज़रूर हिसाब लेगी. आज की जनता यह नहीं चाहती की आप पार्टियां मिल कर राजनीति करें,अगर कोई सत्तासीन दल कुछ करता है तो विपक्ष को हम सिर्फ आलोचक के रूप में ही नहीं देखना चाहते ,हम चाहते हैं कि अगर कोई काम अच्छा है तो सभी उस कार्य की प्रशंसा करें और यदि आलोचना करनी ही है तो सार्थक आलोचना करें और उस का विकल्प सुझाएँ -जी हाँ विकल्प सुझाएँ ,अब सिर्फ आलोचना से काम नहीं चलेगा अब स्वस्थ आलोचना का समय है - यदि आप की निगाह मैं कोई कार्य मैं कोई खामी है तो उस खामी को बताएं और उस खामी को दूर करने का उपाय भी अब इन नेताओं को साथ ही बताना होगा अन्यथा उन से आग्रह है की वे निरर्थक बयानबाजी से बचें. हम जाग चुके हैं व् इन हथकंडों को समझ चुके हैं........

जागो

इस सियासी जंग में दुःख इस बात का है कि मुद्दों पर गौर नहीं किया जाता है और लोगों को उन से भटका कर दिशाहीन लड़ाई की और मोड़ दिया जाता है और हम जनता मूर्खों की तरह उस में शामिल हो व्यर्थ के मुद्दे को निशाना बना कर वोट देती है. हम को समझ कब आएगी की हमें काम में लिया जाता रहा है आज तक. कोई भारतीय कही से भी आ कर चुनाव में लड़ सकता है बस उस के एक अच्छा कार्यकर्ता होने की पहचान होनी चाहिए और स्थानीय जनता का समर्थन होना चाहिए. राहुल जी उमा जी पर निशाना साधते हैं और उमा जी सोनिया जी पर और दोनों ही बाहर के हैं.अब जब आप का घर ही शीशे का है तो पत्थर मारने से क्या फायदा,मुद्दों की बात कीजिये और चुनाव मैदान में अपने काम का दम भरिये. जनता अब सिर्फ काम देखे और जो भी एक सशक्त लोकपाल बिल ला कर भ्रष्टाचार दूर करने का वादा करे उसे वोट दे. अब जनता की इच्छा का सम्मान ही मुद्दा होना चाहिए और व्यर्थ के मुद्दों को जनता आवाज़ उठा कर नकार दे. जनता अब अपने आप में वो माद्दा पैदा करे की जब ये लोग चुनाव सभा में बोल रहे हों तो उन से प्रश्न करे और अपनी बातों का जवाब मांगे और आश्वासन की भाषा बोलने के इन के भाषणों को सुनने से इनकार करे. जागो जनता जागो अब अपना सामर्थ्य दिखाने का समय आ गया है. अब तो चेत जाओ .... अभी नहीं तो कभी नहीं का समय आ गया है. अपने अन्दर की ताक़त को पहचानो और उसे काम में लाओ अपने सुनहरे भविष्य के लिए,अपने भारत के लिए.

गाँधी की टोली

आज  के  इस  कलयुग   में 
कहाँ   है  गाँधी  की  टोली  ???

साथ  में  जिसे  लिए  चलती  थी  शांति,गीता  की  हमजोली ..

रामदेव , अन्ना  भी  गए  सरकार  की  इस  खताई  में ...

शांति  के  साथ  चतुराई  भी  गयी 
भ्रष्टाचार  की  लडाई  में .. 

नहीं  मिला  मुकाम  अब 'तक _ मीत ,
जिसकी   हमें  तलाश  थी ...
क्रांति  अब  वो  फिर  छिड़ेगी  जो  सन  ४७  की  आवाज़  थी ... 
अंग्रेज  डरके  भागे  थे
जनता  के  आगे  कांपे  थे ...

वही  जनता  फिर  जागेगी 
 सरकार  को  मिलकर  भांपेगी  ...

 आवाज  सत्याग्रह  की ही   नहीं,  गर्मजोशी  का  दबाव  भी  था ,
तभी  देश  आज़ाद  हुआ  था ...

जिस 'से  भारत  को   गुमान  हुआ  था - 
  यह 'तो  सत्याग्रह  की  आवाज़  है ...

गर्मजोशी  अभी  हुई  कहाँ   है  ?? :)

इतने  में  सरकार  लुट  गयी  है ,
 मीत  के  भाई  उतरेंगे  तो  ये  भागेगी  कहाँ   ??

 अंतिम  समय  तक  चलेगी  लडाई
भ्रष्ट  नेताओं  पे  होगी  कडाई ..
जंग   हार  सकते  नहीं  कभी ...

है  भ्रष्टाचार  की  यह  पहली  लडाई ..
 झुक   जाएगी  ये  सरकार, 
 फंस   जायेंगे  शातिर  मंत्री ,
आखिर  कबतक  झूठी  शान  रहेगी ??

भ्रष्टाचार  अब  नहीं  चलेगा  ... भ्रष्टाचार  अब  नहीं  चलेगा  ...
भ्रष्ठाचार   अब  नहीं ... चलेगा  ....

Dedicated to: all Indians. 
 Follow the rules to make India corruption free.......

आह्वान

जब हमारे चुने हुए प्रतिनिधि जनता की बात नहीं मानते तो उन को हटाना ज़रूरी हो जाता है और यदि इसी को सत्ता परिवर्तन कहते हैं तो हाँ सत्ता परिवर्तन आज की ज़रुरत है.आज के परिपेक्ष में हमारे जन प्रतिनिधि अपने दायित्व का निर्वाह नहीं कर पा रहे हैं,उन की अपनी मजबूरियां हो सकती हैं,इंडिया अगेंस्ट करप्शन टीम अन्ना उन को आह्वान करती है की वे मजबूरियों के बंधन को तोड़ दें और देश की जनता,जिन ने उन को चुना है,उनका साथ दें.यदि वे इस बार चूक गए तो जनता उन का साथ छोड़ देगी और किसी और को अपना प्रतिनिधि बनाएगी,सो समय रहते सब चेत जाएँ तो अच्छा है.
भ्रष्टाचार की लड़ाई में हम सिर्फ और सिर्फ स्वछ छवि वाले जनप्रतिनिधियों को चुनने के लिए जनता से अपील करेंगे,अब पार्टी गौण है,व्यक्ति ही अपनी छवि के कारण चुना जाएगा.
आईये एक भ्रष्टाचार मुक्त भारत के निर्माण की ओर कदम बढ़ाएं.