मदिरालय जाने को घर से चलता है पीने वाला......
किस पथ से जाऊं असमंजस में है वो भोला भला
अलग अलग पथ सब बतलाते सब
पर मैं ये बतलाता हूँ
राह पकड़ तू एक चला चल..
पा जाएगा मधुशाला........
आज के सन्दर्भ में हरिवंश राय जी की सारगर्भित रचना.......
आज हर भ्रष्टाचार मुक्त भारत के लिए आन्दोलन रत कार्यकर्ता असमंजस की स्थिति में है....
ये विडंबना ही है कि सद्पथ पर चलने वालों में एकता का अभाव है और भ्रष्ट एक हो तमाशा देख रहे हैं......
सड़क से संसद तक की लड़ाई है......
व्यवस्था परिवर्तन हेतु संग्राम हर पथ पर लड़ा जाना आवश्यक है......
कोई एक पथ पकड़ रहा है,कोई दूसरा...
ठीक है ..
परन्तु
एक पथ दूसरे से बड़ा और सही है...ये किस आधार पर कह सकते हैं??
अरे हम तो अलग अलग लड़ कर अपने आप को कमज़ोर दिखा रहे हैं....
हर राह एक मंजिल तक तब ही पहुंचेगी जब हम अपने अपने पथ पर आगे बढ़ते हुए इक संकल्प मन ही मन ले रहें कि जब ज़रुरत पड़े तो एकता की शक्ति, बिना किसी अहम् के, सड़क से संसद तक दिखा देंगे....
मंजिल एक है...
राह अलग है तो क्या हुआ...
संकल्पित रहें कि जब देश को ज़रुरत हो तो,एक हो, मंजिल तक हमारे कदम बढ़ेंगे.....
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