Wednesday, February 27, 2013

क्या सर्वोपरि है .....

एक साधारण जागरूक गृहणी हैं हम और कोई एक्सपर्ट नहीं ...
हमारी बात को पार्टी के शब्द न माने जाएँ ....
सिर्फ एक गृहिणी  की सोच ......
ठीक है चुनावी साल है और शब्दों के मायाजाल में घिरे लोक लुभावने बजट की उम्मीद है ....
धरातल की सच्चाइयों से कोसों दूर ......
पर थोडा बजट सेशन देखा तो लगी एक बात मन में घुमड़ने ......
ये सब को अलग थलग सा करता बजट देखने में तो सब का हित समेटे सा लगता है 
परन्तु 
सब को अलग अलग compartments में डालता हुआ .....
हम सब आम भारतीय जनता रहे ही कब हैं ....
हम तो जाति ,धर्म और लिंग में बंटे हैं .....राजनीति के मारे हैं .....
बस एक गुजारिश है वित्त मंत्री से .....
थोडा सा पैसा एक नए विभाग को भी दीजिये जो ये पता लगाए कि पिछले बजट के अनुसार कितने नए लोग लाभान्वित हुए,कितने अल्पसंख्यकों को सच में इन बजट की वित्तीय योजनाओं का लाभ मिला,कितने दलितों को और कितनी महिलाओं को ......
हर बार बजट में घोषणाओं का दौर तो चलता है पर एक feedback website भी बनाइये जिस से कि आम जनता को भी तो पता चले कि घोषणाएं सिर्फ घोषणाएं भर न थीं ...अमली जाम भी पहना था उन ने ....
विश्वास जगाइये आम आदमी में कि उस के टैक्स का पैसा आम जनता के काम आ रहा है ...किसी की जेब में नहीं जा रहा .....
अब बजट में बजट फीडबैक का भी प्रावधान हो .........
हम पिछले 65 सालों में सब दलितों,अल्पसंख्यकों और महिलाओं की स्थिति में सुधार नहीं कर पायें हैं .....
कहीं न कहीं तो कमी है ही न हमारे देश के नेताओं में ......
हमारी आम जनता की स्थिति में सुधार नहीं वरन गिरावट ही आई है .....
स्वयं अपनी योजनाओं का आकलन कीजिये और स्थिति की गंभीरता को समझिये .....
देश चलाना है या पार्टी ......
क्या सर्वोपरि है .....
देश या सत्ता ???