Friday, March 27, 2015

एक सत्य का तमाचा ...

एक ब्लॉग पढ़ा -अरविन्द आप को क्या हो गया है ?

लेखक की इस बात से मैं पूर्णतः सहमत हूँ कि वे AC और गाड़ियों के आराम को छोड़ कर आंदोलनकारी कार्यकर्ताओं के साथ कभी भी सड़कों पर नहीं उतरे ....

वे दिल्ली चुनावों में कभी भी सड़कों की ख़ाक छानते मतदाताओं से व्यवस्था परिवर्तन और स्वराज की स्थापना हेतु मतदान की अपील करते नहीं घूमें ....

वे कभी भी आम कार्यकर्ता बनने इच्छुक नहीं थे बस कौशाम्बी में उपस्थिति दर्शा कर अपने नंबर बढ़वाने में व्यस्त रहे , उन्हें लगा कि बाकी राजनैतिक पार्टियों के समान यहाँ भी चापलूसी और चमचागिरी से काम चल पायेगा ...

कौशाम्बी कार्यालय को वे बहुत समय तक दिग्भ्रमित नहीं कर पाये ....

ये महानुभाव दिग्भ्रमित करते जब आँख के तारे थे तो स्वराज मात्र नारा था ...

आज अपने कुकृत्यों के चलते आँख की किरकिरी हैं तो स्वराज की स्थापना का बिगुल बजा कर अपना उल्लू सीधा करना चाहते हैं ...

सर्वप्रथम सब साथी आंदोलनकारियों से करबद्ध क्षमाप्रार्थी हूँ कि हम सब नवराजनीतिज्ञ गाय की खाल ओढ़े भेड़ियों को नहीं पहचान पाये और उन को पार्टी के राज्यों में कार्यभार सौंप कर उन से व्यवस्था परिवर्तन की लड़ाई में सार्थकता की उम्मीद पाल बैठे ...

आज जब उन के असत्यता भरे, स्वयं को परोसने वाले ब्लॉग्स पढ़ती हूँ तो स्वयं पर क्षोभ होता है ...

अतिमहत्वाकांक्षी ये अवसरवादी आम आदमी पार्टी के भोलेभाले देशभक्तों को अपने स्वार्थ के चलते कैसे दिग्भ्रमित कर रहे हैं ....

अपनी लकीर को बढ़ा पाने की काबिलियत ना होने के चलते ये दूसरों की लकीर मिटा कर छोटी करने का असंभव कुकृत्य में फंस कर रह गए हैं ...

इन के एक एक स्वार्थ को अब कार्यकर्ताओं के सामने लाना ज़रूरी हो गया है ....

आज पूछा जा रहा है कि क्या प्रश्न करना गुनाह है ?

अजमेर की तत्कालीन जिला संयोजक जब अपने खिलाफ लगे charges को बार बार पूछ रही थी तो आप का उत्तर था कि ये आरोप आप पर लगे हैं और संगीन हैं इस लिए आप को आरोप बताये नहीं जा सकते ....

कार्यकारिणी निलंबन में आरोप संगीन तो दिखे ही नहीं ...

जब अजमेर में निलंबित कार्यकारिणी सदस्य प्रश्न कर रहे थे और आप अपनी उपस्थिति का आभास भी होने से बच रहे थे और सर झुका कर बैठे थे और उत्तर देने आगे नहीं आये ,क्या तब प्रश्न पूछना गलत था ?

जब आप गुटबाज़ी को बढ़ावा देने की मंशा से कार्यकारिणी से प्रथक किये गए कार्यकर्ताओं को sms भेजते थे और कार्यकारिणी को ignore करते थे तब आप स्वराज का निर्वहन कर रहे होते थे right ?

जब आप ने बिना show cause notice के, media में, अजमेर की कार्यकारिणी भंग करने का notice एक रात को release किया,  जोकि निवर्तमान जिला संयोजक को दूसरे दिन दिन में 2 बजे प्राप्त हुआ , तब आप आम आदमी पार्टी में स्वराज की परिकल्पना को साकार कर रहे थे right ?

जब आप राज्य कारिकारिणी की बैठक की सूचना अजमेर की जिला संयोजक को नहीं देते थे तब आप स्वराज का झंडा बुलंद करते थे right ?

आफिस में बैठकर कर कार्यकर्ताओं को धमकाने वाली चौकड़ी का आज स्वराज स्वराज रटना इस शब्द की मर्यादा को तार तार कर रहा है ...

आइये आप के झूठों की समीक्षा की जाए ....

आप स्वयं जयपुर की कार्यकारिणी से बाहर नहीं रहे, अपितु आप का नाम किसी ने प्रोपोज़ ही नहीं किया ....

जयपुर से स्वयं के टिकट के लिए आप ने लॉबिंग की ...

शुरू से पदलोलुप और चुनाव में टिकट पाने की इच्छा लिए आप अपने ब्लॉग में झूठ लिख कर जो निःस्वार्थता का चोला ओढ़ने की कोशिश कर रहे हैं उस की सत्यता हर वो कार्यकर्ता जानता है जिस के समक्ष इन्होंने publicly इसे स्वीकार किया था ...

मेरी अपने साथी आंदोलनकारियों और कार्यकर्ता बंधुओं से अपील है कि क्षुद्र सोच लिए इन संकीर्ण मानसिकता वाले स्वार्थियों ने स्वराज का झंडा सिर्फ अपने को पार्टी में स्थापित करने को उठाया है ...

इन के जाल में ना फंसिए ...

लक्ष्य पर आँख रख हे अर्जुन

और

अपनी राह की बाधाओं को रौंदते हुए मंज़िल की ओर बढे चलो ....

जय हिन्द !!!

Sunday, March 1, 2015

अस्पताल - आँखों देखी

कहते हैं कि आँखों देखा ही सच होता है ....

बहुत सुना था कि अस्पताल में गन्दगी का आलम रहता है ....

डॉ और नर्सिंग स्टाफ मरीज़ का इलाज ढंग से नहीं करते ....

आये दिन मरीजों के परिजनों और डॉ के बीच झड़प और आरोप प्रत्यारोप का दौर चलता है ....

आदरणीय पिता जी के आईसीयू में भर्ती होने पर सच्चाई से रूबरू हुई ...

ये सच है कि व्यवस्था में अनेकों खामियां हैं ....

मरीज़ के साथ एक ही अटेंडेंट रह सकता है

परंतु

जांच के voils लेने, जांच के सैंपल देने, जांच के सैंपल लाने, दवाई लाने , मरीज़  की बेसिक needs में साथ देने और उस गन्दगी को साफ़ करने, दवाई खिलाने और आई वी पर निगाह रखने इन सब के लिए मरीज़ का अटेंडेंट ही ज़िम्मेदार होता है ...

आप स्वयं सोच सकते हैं कि क्या एक अटेंडेंट ये सब कार्य कर सकता है ?

कल इतवार था और पूरा दिन कोई सफाई नहीं हुई ...

यदि आई सी यू का ये हाल है तो दूसरे वार्ड का क्या हाल होगा ...

टॉयलेट्स बदबू मारते रहते हैं और सफाई का अभाव ....

ये बात भी सच है कि मरीज़ के परिजन भी गन्दगी फैलाने के दोषी हैं परंतु सफाई भी हर समय नहीं की जाती ....

जिस प्रकार डॉ की ड्यूटी पारी के अनुसार होती है उसी प्रकार सफाई कर्मी भी पारी के अनुसार कार्य सम्पादन हेतु रखे जाएँ तो सफाई व्यवस्था सुचारू हो सकती है ....

रही बात डॉ और नर्सिंग स्टाफ की तो कोई भी कोताही देखने को नहीं मिली ...

दोनों मुस्तैदी से अपना कार्य दिन रात करते हैं ...

हाँ नर्सिंग कर्मी अपनी बोली थोड़ी मधुर कर लें तो शायद उन की तरह सेवाभावी और प्रिय कोई और हो ही नहीं सकता ...

सिर्फ थोड़ी समझ, संवेदनशीलता और इच्छाशक्ति से अस्पताल की व्यवस्था बहुत अच्छी हो सकती है ....

बस प्रयास अस्पताल प्रशासन और मरीज़ के परिजन दोनों की ओर से होने ज़रूरी हैं ....