Wednesday, September 5, 2012

द कोल ओपरा शो -


कोल-गेट काण्ड ही सिर्फ एक ऐसा घोटाला नहीं है जहाँ भारत की खनिज सम्पदा का बेहताशा दोहन हुआ हो.......
अभी पिक्चर बाकी हैं मेरे दोस्त.......

इन सब पर यदि हम एक वृहद् नज़र डालें तो राजनीति का  कालापन,स्वार्थ और अवसरवादिता 
और
 जनता की उदासीनता और स्वार्थ 
दोनों ही का मुखौटा उतर कर असलियत सामने आ जाती है......

राजनीति आज शीघ्रातिशीघ्र संपन्न बनने का साधन मात्र बन कर रह गयी है......
आज हर व्यक्ति सत्ता और सम्पन्नता की दौड़ में शामिल हो बहती गंगा में हाथ धो लेना चाहता है.......
ये तो हुई व्याख्या आज की राजनीति की 

अब जनता  ???

राजनीतिज्ञ कौन हैं???

जनता......

समझे  न आप!!!!!!

आगे व्याख्या करना बेमानी है.......

चेतन भगत जी का लेख पढ़ रहे थे जहाँ उन्होंने एक संयुक्त परिवार का उदहारण देते हुए मैनेजर यानी के जनप्रतिनिधियों और मालिक यानी कि जनता का ज़िक्र किया.......
सही ही तो है......
अपार हीरे जवाहरातों के धनी एक संयुक्त परिवार ने अपने में से ही एक सदस्य को  मैनेजर नियुक्त किया और उस को अपनी आपार दौलत संभलवा दी.....
बेचने को नहीं,वरन,उस के स्वयं के  द्वारा तैयार किये गए मापदंडों की कसौटी पर, चयन कर के देने को......

अब शुरू होता है स्वार्थ का एक नंगा खेल.......

अपने चुनिन्दा लोगों में रेवड़ियां बाँट दी जाती हैं.......

परिवार नाखुश हो मैनेजर बदल देता है......

परिणाम वही ढाक के तीन पात........

अब रेवड़ियां दूसरी ओर बंटने लगती हैं.......

मालिक के अपने ऑडिटर से पता चलने पर जब जवाब तलब किया जाता है तो जनाब मैनेजर जो कि अपने आप को परिवार का राजा मानने लगे थे तल्ख़ शब्दों का प्रयोग करते हुए पहले तो नकारते हैं,फिर जोर पड़ने पर दोषारोपण और फिर मालिक को ही नकारने लग जाते हैं......

धीरे धीरे सामने आने लगता है कि हमाम में तो सब ही नंगे हैं.........

अब शुरू होता है आरोप-प्रत्यारोप का दौर......

पहला मैनेजर दूसरे मैनेजर पर ज़यादा लालची होने का आरोप लगता है ..

मोटा  माल  और छोटा  माल की व्याख्या होने लगती है.......

और

 परिवार अब फ्री स्टाइल कुश्ती देखने का मज़ा लेने लगता है......

क्या हम इसे हास्यास्पद कह सकते हैं ?????

नहीं

जहाँ अस्तित्व पर आ बनी हो वह स्थिति हास्यास्पद कैसे होगी ???

आज हमारा देश जिस दोराहे पर खड़ा है उसे हम हास्यास्पद कतई नहीं कह सकते......

हमारी अस्मिता और गौरव भी अब इस लड़ाई से जुड़ गया है......

हमारे मैनेजर पर बाहरी लोग टिप्पणी करते हैं और हम उसे सही देख कुछ नहीं कह पाते......
दबी जुबान से विरोध ज़रूर करते हैं कि किसी भी बाहरी व्यक्ति को टिप्पणी का अधिकार नहीं पर गिरेहबान में मुंह डालें तो इसे सही ही पाते हैं.......

आज का भारत अब उस स्थिति में आ चुका है कि अब तो आर या पार हो कर ही रहे......

क्रान्ति आज की मांग है.......

रक्तरंजित नहीं वरन एक वैचारिक क्रान्ति जो कि धरातल पर उतर कर लड़ी जाए और जो कि भारत की तस्वीर बदल कर रख दे.....

ये संभव होगा इस काली राजनीति का त्याग कर के.....

मालिक की उदासीनता और सेवकों पर उन का आँख मूँद कर विश्वास करना आज देश को एक नारकीय खाई में डाल चुका है.....

ये समय है हम मालिकों के चेतने का और अपने प्राकृतिक साधनों और संसाधनों की होती लूट और दोहन को रोकने का.....

अब हमें अपनी स्वार्थपरता ( जी हाँ हम ही तो स्वार्थी है.....ये राजनीतिज्ञ कहाँ से आते हैं...हम में से ही तो.....)को त्यागना होगा और ऐसे जनसेवकों और जन प्रतिनिधियों की फ़ौज खड़ी करनी होगी जो देश को कम से कम इस  स्वार्थ से बाहर निकाल सकें और जो कार्य सम्पादन हेतु इस शासन प्रणाली के अंग बनें न कि सत्ता के उपभोग हेतु......
 
मालिक के अब निद्रा त्यागने और अंगडाई लेने का समय आ गया है........
 हमारे जागने से  खलबली मचने लगी  है........
सही समय पर वार आवश्यक है........

क्या आप तैयार हैं ????

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