भारत एक लोकतान्त्रिक देश है...
१९४७ में मिली आजादी के पश्चात हम ने अपने जिस संविधान को अंगीकार किया उस
के द्वारा प्रदत मूल अधिकारों में से एक अभिव्यक्ति की स्वंत्रता का
अधिकार भी है....
आज यह अधिकार एक ऐसा ज्वलंत मुद्दा बन गया है कि सब इस ही आग में कूदते नज़र आ रहे हैं...
हर मुद्दे के दो पहलू तो होते ही हैं परन्तु इस मुद्दे पर लोग बंटे तो नज़र
आ ही रहे हैं परन्तु अपनी रोटियाँ सेकते भी दीख पड़ रहे हैं....
चलिए इस आज़ादी को समझा जाए ......
अभिव्यक्ति की आजादी यानी कि यदि देश या समाज में प्रचिलित कोई बात आप को
बुरी लगे तो भारत का हर नागरिक उस का विरोध कर सकता है.....
हमारे संविधान निर्माताओं ने इसे इतना महत्वपूर्ण माना कि स्वतंत्रता के मौलिक अधिकारों में इसे सबसे पहला स्थान दिया.....
200 साल की गुलामी के बाद बड़ी मुश्किल से हासिल हुई है ये आजादी......
ये है बोलने की आजादी, अपनी बात कहने और विचार रखने की आजादी।
इस आजादी को परखने का पैमाना क्या है......
दरअसल ये नीयत और नज़रिए का फर्क है......
हमें देखना पड़ेगा कि हम किस चश्मे से इस आजादी को देखते हैं.....
हम पुराने तराजुओं में इस आजादी को नहीं तोल सकते....
देश की एकता और अखंडता को हानि पहुचाने वाले सभी तत्वों से सरकार को
सख्ती से निपटना चाहिए क्योंकि यह राष्ट्र-हित की बात है। परन्तु देश की
एकता और अखंडता बनाये रखने की आड़ में सरकार अपनी नाकामी छुपाने हेतु जिस
तरह से सरकारी तंत्र का प्रयोग कर रही है उसकी नियत पर सवाल खड़े होना
स्वाभाविक ही है।
सरकार को नींद से जगाने का काम जो विपक्ष नहीं
कर सका वो काम सोशल मीडिया और जागृत जनता ने कर दिखाया। परिणामतः सरकार
की विश्वसनीयता और उसकी कार्यप्रणाली पर प्रश्नचिंह खड़े हो गए।
अन्ना
जी द्वारा दूसरे स्वतंत्रता आन्दोलन में जो जन क्रान्ति का नारा बुलंद
किया गया उस से सरकार आज बौखला गयी है .उसे अपनी कुर्सी खतरे में नज़र आने
लगी है इसी लिए शांतिपूर्ण,अहिंसात्मक और गांधीवादी आन्दोलन को कुचलने की
नाकाम कोशिश शुरू कर दी गयी है......
अब एक प्रश्न-चिन्ह सब के मस्तिष्क में रह रह कर घूम रहा है....
क्या हमारी सरकार का दमनात्मक रवैया आने वाले आपातकाल और प्रेस सेंसरशिप का सूचक है ????
चलिए इस आज़ादी को समझा जाए ......
अभिव्यक्ति की आजादी यानी कि यदि देश या समाज में प्रचिलित कोई बात आप को बुरी लगे तो भारत का हर नागरिक उस का विरोध कर सकता है.....
हमारे संविधान निर्माताओं ने इसे इतना महत्वपूर्ण माना कि स्वतंत्रता के मौलिक अधिकारों में इसे सबसे पहला स्थान दिया.....
200 साल की गुलामी के बाद बड़ी मुश्किल से हासिल हुई है ये आजादी......
ये है बोलने की आजादी, अपनी बात कहने और विचार रखने की आजादी।
इस आजादी को परखने का पैमाना क्या है......
दरअसल ये नीयत और नज़रिए का फर्क है......
हमें देखना पड़ेगा कि हम किस चश्मे से इस आजादी को देखते हैं.....
हम पुराने तराजुओं में इस आजादी को नहीं तोल सकते....
देश की एकता और अखंडता को हानि पहुचाने वाले सभी तत्वों से सरकार को सख्ती से निपटना चाहिए क्योंकि यह राष्ट्र-हित की बात है। परन्तु देश की एकता और अखंडता बनाये रखने की आड़ में सरकार अपनी नाकामी छुपाने हेतु जिस तरह से सरकारी तंत्र का प्रयोग कर रही है उसकी नियत पर सवाल खड़े होना स्वाभाविक ही है।
सरकार को नींद से जगाने का काम जो विपक्ष नहीं कर सका वो काम सोशल मीडिया और जागृत जनता ने कर दिखाया। परिणामतः सरकार की विश्वसनीयता और उसकी कार्यप्रणाली पर प्रश्नचिंह खड़े हो गए।
अन्ना जी द्वारा दूसरे स्वतंत्रता आन्दोलन में जो जन क्रान्ति का नारा बुलंद किया गया उस से सरकार आज बौखला गयी है .उसे अपनी कुर्सी खतरे में नज़र आने लगी है इसी लिए शांतिपूर्ण,अहिंसात्मक और गांधीवादी आन्दोलन को कुचलने की नाकाम कोशिश शुरू कर दी गयी है......
अब एक प्रश्न-चिन्ह सब के मस्तिष्क में रह रह कर घूम रहा है....
क्या हमारी सरकार का दमनात्मक रवैया आने वाले आपातकाल और प्रेस सेंसरशिप का सूचक है ????
No comments:
Post a Comment