Tuesday, August 28, 2012

स्वार्थ और राजनीति

आखिर सोनिया जी गरजीं...
पर गलत गरजीं......
उन का कद बढ़ता अगर सही समय पर जनता के साथ गरजतीं.....
एक सही व्यक्ति वो ही होता है और सही राजनीतिज्ञ भी वही है जो जनता की नब्ज़ पकड़ना जानता हो.....
सोनिया जी अभी परिपक्व राजनीतिज्ञ की श्रेणी में अपने आप को स्थापित नहीं कर पायीं हैं.....
ऊपर से लादी गयी या कहें थाली में परसी गयी मलाई को सडपना  भी एक कला है......
उस में उन की शून्यता उजागर हो गयी है.....
हाँ उन की मजबूरियाँ भी रही हैं कि अवसरवादियों की इस पार्टी में एक मूक सेवक को किस प्रकार नकार सकतीं हैं वे...

आखिर बेटे का मोह तो कमजोरी बन कर बांधे रखा है उन्हें.......

ये ही उन की Achilles Heel साबित होगा ......

भाजपा ने सही समय पर आन्दोलनरत जनता की भाषा को समझा और स्वयं आन्दोलनरत जनता से अपना जुड़ाव दिखा दिया...
उन ही का मुद्दा संसद में उछाल के और संसद का काम-काज ठप कर के......

फिर चाहे दलाली के छींटे उन के दामन पर भी पड़ रहे हों.......

जनता की आवाज़ संसद के अन्दर तो भाजपा द्वारा ही पहुंची.......कांग्रेस तो जनता को नकार ही रही थी......भाजपा ने स्वार्थवश ही सही उस मुद्दे को उठाया तो ........

सोनिया जी ने ललकारा है अपने अंध-भक्तों को ......सड़कों पर उतर कर जवाब देने को......

सड़कों पर सोनिया जी????
क्या आप सड़कों की ओर देखती भी हैं ?????
क्या आप आन्दोलन की भाषा समझती भी हैं ????

आप जब आह्वान करती हैं तो अपने आप पर शर्म तो महसूस होती होगी...... 

जनता को सड़कों पर पिछले डेढ़  साल से आन्दोलन रत देख कर भी अनदेखा करने वाली गांधारी  आज स्वयं जब अपने पिछलग्गुओं को आदेश देती हैं तो वे सड़कों का महत्त्व जानती तो हैं.....

खैर स्वार्थियों के आज के भारत में सड़कों के आन्दोलन के महत्त्व को अब सब पार्टियां जानने और मानने तो लगी ही हैं.........

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