संक्रमण काल है......
अन्ना जी एक बात पहले दिन से कह रहे हैं.....राजनैतिक विकल्प की ज़रुरत है.....मैं राजनीति में नहीं आऊंगा....बाहर रह कर सब पर नज़र रखूँगा....
इस बात को बार-बार और कई बार दोहरा रहे हैं.....
हर बार उन के कहने का नित नए रूप में विश्लेषण करना??
इन हाथों में मत खेलिए.....
सब लोगों को अलग अलग गुटों में बांटना ???
किसी के हाथों में न खेलिए.....
गुट अलग हो सकते हैं....भावना देखिये....
अभी तात्कालिक आवेश में आ कर एक दूसरे पर कीचड उछालना बंद कीजिये.....
देश के लिए की जाने वाली इस लड़ाई को अहम् की लड़ाई में तब्दील न कीजिये.....
हमारा काम है जोड़ना .....ना कि तोडना......
दूसरा स्वतंत्रता की लड़ाई एक जुट हो कर ही लड़ी जा सकती है....
कुछ ऐसा कीजिये जिस से सब में निकटता उत्पन्न हो......
हमारी शक्ति हमारी एकता में है......
बंद कमरों में बैठ कर अपना गुबार निकालिए....ये ज़रूरी भी है....
परन्तु
बाहर आइये एक हल ले कर....
एकता का स्वर ले कर...
संसार में ऐसा कुछ भी नहीं है जिस का हल न हो......
ज़रुरत है कुछ त्याग और कुछ बदलाव की....
त्याग अहम् का और बदलाव दृष्टिकोण का.....
राजनीति के हाथों का खिलौना न बनिए.....
अपनी सूझ-बूझ बरकरार रखिये.......
ऐसा न हो ये लड़ाई हम लड़े बिना ही हार जाएँ.....
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