Sunday, February 5, 2012

अधिकार व कर्त्तव्य

मानव के जीवन में अधिकार व कर्त्तव्य का स्थान एक साथ है. अभिव्यक्ति की आज़ादी हम सब का अधिकार है और इसी आजादी के साथ जुड़ा है हमारा कर्त्तव्य कि हम अपनी इस आजादी से किसी की भावनाओं को ठेस न पहुंचाएं. अधिकार व कर्त्तव्य मानव जीवन में साथ साथ चलते हैं-असल में सही बात तो यही है कि कर्तव्य पालना से अधिकार स्वयं ही प्राप्त हो जाते हैं. अभिव्यक्ति के अधिकार की आलोचना यदि कट्टर हो कर की जाए तो उस पर ऊँगली उठाना स्वाभाविक है और यदि सही आलोचना को positive frame of mind से ले कर मान लें तो व्यक्ति को सब की नज़रों में उठता है. उपरोक्त बातें तो सामान्यत: कही गयी हैं परन्तु वेदना का विषय है स्वातंत्र्य को दफ़न करना और उस से ज़्यादा उस गलत कदम को पोषित करना व् जायज़ ठहराना और सरकार द्वारा दमन की नीति अपनाना,खुले में न आना,व् किसी और के कंधे पर रख कर बन्दूक चलाना,राजनीति करना और वोट बैंक की तरह एक समुदाय विशेष को मानना . एक राजनैतिक पार्टी विशेष के प्रवक्ता ने कहा की उन की पार्टी नहीं चाहती थी कि व्यक्ति विशेष जयपुर आयें.उन कि यात्रा से समुदाय विशेष की भावनाएं आहत हो रही थीं,अगर वे आते तो कानून व्यवस्था की स्थिति बन जाती.माहौल खराब होने और हिंसा होने की प्रबल आशंका थी.इस लिए सरकार ने परिस्थितियों के अनुसार जनहित में जो कदम उठाया वह सही है.(दैनिक भास्कर -अजमेर-बुधवार,२५ जनवरी २०१२,पृष्ठ संख्या ६) यह पढ़ कर कुछ सवाल ज़हन में उठ खड़े होते हैं- १) पार्टी विशेष नहीं चाहती थी........... जनता कोई भी समारोह आयोजित करेगी तो क्या राजनीति उस पर हावी रहेगी? क्या आज आम जनता का दैनिक जीवन भी राजनीति की भेंट चढ़ेगा? क्या हमारी स्वतंत्रता हमारी उदासीनता लील गयी है? जागो भारत जागो!!!!!!!! २)उन की यात्रा से समुदाय विशेष की धार्मिक भावनाएं आहत हो रही थीं........ आज लेखक अपने कडवे किन्तु सत्य लेखों के लिए जाने जाते हैं.उन का मकसद किसी की भावना को आहत करना नहीं अपितु अगर कुछ ग़लत हो तो उस को उघाड़ कर मानव को झकझोरना होता है ताकि वे पथभ्रष्ट होने से बचें. हम आम आदमी तो सब समुदायों को एक ही नज़र से देखते हैं - एक धर्मनिरपेक्ष भारतीय की नज़र. इस कारण से प्रवक्ता जी का तर्क राजनीति की बू लिए दीखता है,तुष्टिकरण की नीति से प्रेरित दिखता है. जागो भारत जागो!!!!!!!!! ३) व्यक्ति विशेष आते तो कानून व्यवस्था की.......... कानून व्यवस्था को बनाये रखना,हिंसा आदि को रोकने के लिए सरकारी तंत्र है न और वे सब जिन से हिंसा का भय हो उन को पाबन्द करने के लिए कानून. परन्तु इन को प्रयोग में लाने के लिए इच्छाशक्ति की आवशयकता होती है और यह कोई वह सरकार ही कर सकती है जो राजनीति न करती हो और जन सेवा ही जिस का फ़र्ज़ हो. आज हमारे राजनेताओं में वोट बैंक,तुष्टिकरण इत्यादि शब्द कूट-कूट कर भरे हैं तो देशभक्ति व् जनकल्याण के लिए जगह कहाँ मिलेगी? जागो भारत जागो!!!!!!! ऐसे व्यक्ति चुनो जो सब को सामान दृष्टि से देखते हों,जो स्वच्छ राजनीति करें,जो देशभक्त हों,कार्यकर्ता हों और भ्रष्टाचार मुक्त भारत के निर्माण के लिए संकल्पबद्ध हों. आईये ऐसे व्यक्तियों को चुन कर एक सुनहरे भारत का निर्माण करें. जय हिंद.

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