Sunday, February 5, 2012

हाय मजबूरी

आज हमारे नेताओं का ज़मीर इतना कैसे मर गया है कि वे सत्ता लोलुपता की सारी सीमाएं लांघ चुके हैं. क्या उन को बिलकुल यह महसूस नहीं होता कि उन कि भी कुछ फ़र्ज़ है. मैं हमेशा से मानती आई हूँ कि personal attacks किसी पर भी करना गलत है सो बहुत ही सधे हुए शब्दों में कहना चाहूंगी कि - क्या हमारे प्रधान मंत्री को आज के उन के कैबिनेट मिनिस्टर्स पर बिलकुल भी शर्म नहीं आती? क्या उन को यह नहीं लगता कि नैतिकता के आधार पर उन्हें अपनी कुर्सी त्याग देनी चाहिए? क्या सत्ता का लालच उन को भी ले डूबा है? क्या उन को कोई भी statements रिलीज़ करने में शर्म महसूस नहीं होती कि वे किस हक से यह सब बोल पा रहे हैं? क्या उन का ज़मीर उन को रातों को सोने देता है? क्या वे ऐसा नहीं सोचते कि वे अपने देश कि जनता के साथ गद्दारी कर रहे हैं? क्या वे अपने आप को जनता कि अपेक्षाओं  के अनुरूप पाते हैं? क्या वे इस से अनभिज्ञ हैं कि जनता क्या चाहती है? क्या ये सब प्रश्न उन के दिमाग में मंथन करते हैं या वे अपनी conscience को गिरवी रख चुके हैं? क्या सत्ता की भूख ऐसी ही होती है कि व्यक्ति को उस कुर्सी के आगे कुछ दिखाई या सुनाई नहीं देता? मैं हतप्रभ हूँ!!!!!!!!!!!

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