ज़िन्दगी धीमी मंथर गति से चली जा रही थी ...
घर में सिमटी ज़िन्दगी से कोई गिला तो ना था , अलबत्ता अपने आप में सिमटी ज़रूर थी ...
कभी कुछ ना कर पाने का ग़म सालता ज़रूर था पर वो दिल के सुदूर कोने तक में सीमित था ....
परेशान नहीं करता था ....
एक ठिठकी सी ज़िन्दगी ...
अपने आप में सम्पूर्णता का बोध कराती ,
शायद वो एक अधूरी ज़िन्दगी थी
या
पूर्णता का पुट लिए अपूर्ण थी ??
अभी भी असमंजस में ही हूँ ....
यकायक आंदोलन की प्रविष्ठी हुई और जीवन को पूर्णता का एहसास या दिशाबोध होने सा लगा ....
अपने आप को पाया मैंने ...
अब जब मुड़ कर देखती हूँ तो यकायक एक सवाल कौंधता है -
अपने आप को पाया
या
अपने आप को खोया मैंने ?
शायद अपने आप को पा कर खोया मैंने ....
सोच रही थी कि आंदोलन की प्रहरी बनी थी मैं
परंतु
भूतकाल में झांकती हूँ तो पाती हूँ कि खिलोना मात्र थी मैं ..
नियति के हाथों या लोगों के हाथों ?
विश्लेषण करने में अभी असमर्थ पा रही हूँ अपने आप को ...
कुछ बादल मंडरा रहे हैं और निष्पक्ष विश्लेषण में रुकावट हैं ...
अभी संवेदनाओं के वशीभूत असमंजस में हूँ ...
अभी इस पोस्ट को सिर्फ emotional outburst रहने देते हैं ...
तार्किक चीरफाड़ मन काबू में होने पर ....
Must of the people are having the same feeling. Beautiful craft of emotions Keerti ji. Kudos.
ReplyDeleteThanx Rahul jinfor the appreciation ...
DeleteAll were unnamed participants of a planed script by a few
ReplyDeleteRight ...
Deleteजब हम अपने आप को किसी के हाथों सौंप कर अपेक्षा के साथ काम करते हैं तो ऐसा ही प्रतीत होता है। इसके लिए सर्वप्रथम अपने आपको, फिर समीप के वातावरण को, और फिर सुदूर माहौल को समझना और स्वीकार करना ही सही दिशा देता है और मन को शांति।
ReplyDeleteजब हम अपने आप को किसी के हाथों सौंप कर अपेक्षा के साथ काम करते हैं तो ऐसा ही प्रतीत होता है। इसके लिए सर्वप्रथम अपने आपको, फिर समीप के वातावरण को, और फिर सुदूर माहौल को समझना और स्वीकार करना ही सही दिशा देता है और मन को शांति।
ReplyDeleteखिलोनो की दुनिया से आप बाहर आकर हकीकत को जन गयीं, ख़ुशी हुई दीदी.
ReplyDeleteकीर्ति जी के ब्लॉग अब आप http://www.indianewstv.in/blog.php पर भी पढ़ सकते हैं
Lovely piece of work :)
ReplyDeleteThis comment has been removed by the author.
ReplyDeleteबहुत ही शानदार ! साथ ही Inspirational भी..
ReplyDelete"अलबत्ता अपने आप में सिमटी ज़रूर थी....." - जी हाँ, मगर अब "आन्दोलन, क्रान्ति और एक नयी सोच" के बाद, आप "अपने आप" से बहुत ऊपर उठ चुकी हैं..
Emotional Outburst या यतार्थ की ख़ोज ?? कह पाना कठिन है।
आप की यात्रा को देखकर, यदि मैं अपने शब्दों में कुछ लिखता, तो कुछ इस तरह होता -
"बहुत कुछ खोया, बहुत कुछ पाया ।
इस यात्रा में मैं अपने आप को खोज पाया।"
जीवन में कभी कुछ गलत नहीं होता....
ReplyDeleteप्रतिपल में जिया हर पल अनुभव का मोती होता है.... सो पाना ही होता है...कभी कुछ नहीं खोता...