Thursday, February 26, 2015

उपहार

ईश्वरीय आत्माएं धरती पर विचरण करती हैं ...

अपने स्वरुप से निर्मित इन आत्माओं को ईश्वर द्वारा एक निश्चित समय के लिए एक शरीर दिया जाता है ...

आज व्यक्ति अपने भौतिक स्वरुप को अपना सच मान बैठा है जबकि ये नश्वर भौतिक शरीर हमारा नहीं , उसी सर्वोच्च सत्ता द्वारा कुछ समय के लिए दिया आवरण है , हम तो मात्र आत्मा हैं जिन का कोई भौतिक स्वरुप है ही नहीं ....

इस शरीर के प्रति मोह हम से कई ऐसे कार्य करवाता है जो कि अवांछित होते हैं ....

अगर हर मानव इस शरीर को ईश्वरीय भेंट मान कर उस की निर्लिप्त भाव से देखभाल करे और अपने जाने के समय इस भेंट को दूसरे ज़रूरतमंद मानव हेतु छोड़ जाए तब ही इस ईश्वरीय प्रदत्त देह का सच्चा सही उपयोग होगा ...

मरणोपरांत नेत्रदान के लिए हमारा समाज जागृत हो रहा है परंतु अंगदान के प्रति उदासीनता हमारे कई बीमार साथियों को रोज़ मर मर कर जीने को मजबूर कर रही है ....

हम में से बहुत लोग ये नहीं जानते कि हमारे शरीर के कई अंग हमारी मृत्यु पश्चात भी कई घंटे जीवित रहते हैं और यदि हम इन्हें मृत्यु पश्चात दान देने का संकल्प पत्र भरें तो हम बहुत से लोगों को मौत के मुँह में जाने से रोक सकते हैं ....

हमारे लीवर, किडनी, नेत्र आदि का दान किसी बीमार व्यक्ति के जीवन में रौशनी भर सकता है और उन के परिवार को ख़ुशी दे सकता है ...

ईश्वर ने जो उपहार हमें दिया है उसे हम आगे दे कर इस देने की परम्परा को आगे बढ़ा सकते हैं ...

मुझे गर्व है कि राजस्थान में इस परम्परा को शुरू कर आगे बढ़ाने के काम में मेरी एक मित्र डॉ अनीता हाड़ा सांगवान अपने पूरे जोश से लगी हुई हैं ...

मैं उन के साथ मिलकर इस काम को बढ़ाने में पूरा सहयोग दूंगी ...

क्या आप भी साथ हैं ??

आइये अब दान की एक नयी परिभाषा गढ़ें ...
स्वस्थ जीवन की नयी आशा बनें ...

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