कहते हैं कि आँखों देखा ही सच होता है ....
बहुत सुना था कि अस्पताल में गन्दगी का आलम रहता है ....
डॉ और नर्सिंग स्टाफ मरीज़ का इलाज ढंग से नहीं करते ....
आये दिन मरीजों के परिजनों और डॉ के बीच झड़प और आरोप प्रत्यारोप का दौर चलता है ....
आदरणीय पिता जी के आईसीयू में भर्ती होने पर सच्चाई से रूबरू हुई ...
ये सच है कि व्यवस्था में अनेकों खामियां हैं ....
मरीज़ के साथ एक ही अटेंडेंट रह सकता है
परंतु
जांच के voils लेने, जांच के सैंपल देने, जांच के सैंपल लाने, दवाई लाने , मरीज़ की बेसिक needs में साथ देने और उस गन्दगी को साफ़ करने, दवाई खिलाने और आई वी पर निगाह रखने इन सब के लिए मरीज़ का अटेंडेंट ही ज़िम्मेदार होता है ...
आप स्वयं सोच सकते हैं कि क्या एक अटेंडेंट ये सब कार्य कर सकता है ?
कल इतवार था और पूरा दिन कोई सफाई नहीं हुई ...
यदि आई सी यू का ये हाल है तो दूसरे वार्ड का क्या हाल होगा ...
टॉयलेट्स बदबू मारते रहते हैं और सफाई का अभाव ....
ये बात भी सच है कि मरीज़ के परिजन भी गन्दगी फैलाने के दोषी हैं परंतु सफाई भी हर समय नहीं की जाती ....
जिस प्रकार डॉ की ड्यूटी पारी के अनुसार होती है उसी प्रकार सफाई कर्मी भी पारी के अनुसार कार्य सम्पादन हेतु रखे जाएँ तो सफाई व्यवस्था सुचारू हो सकती है ....
रही बात डॉ और नर्सिंग स्टाफ की तो कोई भी कोताही देखने को नहीं मिली ...
दोनों मुस्तैदी से अपना कार्य दिन रात करते हैं ...
हाँ नर्सिंग कर्मी अपनी बोली थोड़ी मधुर कर लें तो शायद उन की तरह सेवाभावी और प्रिय कोई और हो ही नहीं सकता ...
सिर्फ थोड़ी समझ, संवेदनशीलता और इच्छाशक्ति से अस्पताल की व्यवस्था बहुत अच्छी हो सकती है ....
बस प्रयास अस्पताल प्रशासन और मरीज़ के परिजन दोनों की ओर से होने ज़रूरी हैं ....
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