Monday, August 13, 2012

बाट जोहता देश


हम भारतीयों ने समयानुसार काम में आने वाली कई कहावतें गढ़ रखी हैं .........
जब जागो तभी सवेरा........
परन्तु जब ये सत्ता हथियाने,अवसरवादिता और अपना काम न करना आदि पर पर्दा डालने हेतु प्रयोग की जाती हैं तो ये कहावतें खोखली सी प्रतीत होती हैं.......या इन के दुरूपयोग की बू आने लगती है तो हम ठिठक से जाते हैं.....कि या तो हम जनता का आकलन गलत है या ये अवसरवादी लोग गलत हैं........

मंथन चल रहा है - हर भारतीय के मन में.......
इस पोस्ट को किसी व्यक्ति विशेष,आन्दोलन विशेष या किसी राजनीतिक पार्टी विशेष को इंगित कर के लिखा हुआ न माना जाए.....खरी-खरी बोलने की आदत सी है...हृदय द्रवित हुआ सो लेखनी अपने आप चल उठी.....

जनता का आन्दोलन.....

विपक्ष अपनी भूमिका सही प्रकार से नहीं निभा रहा था.....जनता का गुस्सा महंगाई और भ्रष्टाचार को ले कर अपनी सहनशीलता को जब लांघ गया तो हम सब सड़कों पर उतर आये.....जन्म हुआ जन आन्दोलन  का......

 जनता सड़कों पर उतर उतर कर थक गयी......सरकार नहीं चेती.....और तो और विपक्ष ने भी सरकार को न घेरा ......दांव पेच के खेल खेलते रहे सब.....अपना उल्लू  सीधा करने की फिराक में बैठे थे......सही समय की दरकार थी विपक्ष को.....(पुराने खिलाडी हैं न राजनीति और अवसरवादिता के मैदान में.......) जनता की भूलने की कमजोरी को जानते हैं.....जनता कुछ समय हुआ नहीं कि सब ज्यादतियां भूल जाती है....अपना समय व् शक्ति का क्षरण क्यों करें...जब चुनाव नज़दीक आ जायेंगे तभी चोट कर अवसर का लाभ उठाएंगे हमारे जनप्रतिनिधि और राजनैतिक  पार्टियां...वे मैदान में हैं अपने स्वयं के लिए | जनता के साथ का तो ढोंग मात्र है......

अब तेरह अगस्त को ही ले लें सब दूध के धुले बन ऐसे मंच पर आये मानों जनता ही नहीं बुला रही थी वे तो जीजान से काला धन लाने के लिए प्रयासरत थे.......
शर्म आती है हम पर कि हम ने इन पर भरोसा किया, अपना देश चलाने का अवसर प्रदान किया......ये अवसरवादी लोग सिर्फ अवसर को पकड़ना जानते हैं......देश सेवा और देश का कोई मोल नहीं है इन के ह्रदय में........
ये सत्ता -लोलुप सत्ता के दलाल अवसर मिलते ही सरकार पर चोट करने पहुँच गए.......
तब कहाँ थे जब जनता पर लाठियां भांजी जा रही थीं????
जब जनता का चीख चीख कर गला बैठ गया भ्रष्टाचार दूर करने के लिए जनता के जन लोकपाल बिल लाने के लिए.....
तब क्यों न चेती ये विपख में बैठी हुई पार्टियां???
तब देश और जनता याद क्यों न आयीं.......जब विशेषाधिकार प्रस्ताव ला रहे थे.......

आज सब को जन आन्दोलन से सत्ता प्राप्ति का सुख मिलने का सुखद स्वप्न दीख रहा है तो सीधे,निर्र्लज्ज भाव से मंच चढ़ गए.....

क्या जनता पार्टी का हश्र भूल गयी जनता???

(अरे हाँ हमें तो भूलने की बीमारी है न जिस के चलते राजनीति अपनी रोटियाँ सेकती है....)

क्या हम फिर अपने आप को इन के द्वारा ठगा जाने देंगे????
क्या हम अपने आन्दोलन को इन अवसरवादियों के हाथ का खिलौना बनने देंगे???
क्या हम अपनी नियति का गला अपने हाथों से घोंट देंगे......
आज पैंसठ साल बाद हम जागे हैं ....क्या इसी जागृति को खो देंगे???
क्या हम फिर से अवसरवादिता का शिकार होंगे???
क्या हम फिर से एक लम्बी नींद में खो जायेंगे और अपने स्वार्थों को प्राथमिकता देंगे???
क्या देश का हमारे मन में कोई मोल नहीं??????

अब हम ऐसा क्या करेंगे कि हमें  अपने आप को रोज़ सुबह दर्पण में  देख आँखें न चुरानी पड़ें????
अब हम ऐसा क्या करेंगे जिस से जब हमारे आगे आने वाली पीढियां हम से प्रश्न करें कि आप ने हमारे लिए क्या किया..तो हम उन कि आँख में आँख डाल कर उत्तर दे पायें.....

इन प्रश्नों का उत्तर जोहते हैं हम सब जनता ...अपने आप से.....

अभी नहीं तो कभी नहीं का समय है.....

अपने आप से प्रश्न करने का और अपने आप से जवाब लेने का समय है.......
अब हमें अवसर मिला है अपने देश और अपने बच्चों के भविष्य को संवारने का......अवसरवादी बनिए...इस अवसर को न खोइए......
कम से कम चैन की नींद तो ले पायेंगे ये सोच के कि एक सबक सिखाया तो है हम ने......इस देश को लूटने वालों को....
अपने आप को जानने और झकझोरने का समय है...इसे व्यर्थ न जाने दीजिये.....
किसी की सत्ता प्राप्ति का साधन मात्र न बन के रहिये.....
देश परिवर्तन मांग रहा है..अपने देश की पीड़ा के प्रति संवेदनशील बनिए.....

आइये देश के प्रति अपने दायित्व को पूरा करें.........
देश हमारी बाट जोह रहा है.......

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