Monday, April 16, 2012

आईना -अपनी नज़रों में हम



वैश्विकरण का दौर - अजमेर - अचंभित,उत्तेजित,लालायित और फिर अजमेर की स्वार्थपरता व उदासीनता का नाच - एक नंगा नाच |
आईये हम अपने  आप को आईने में देखें व परखें - 

पूरे देश में नए बनने की होड़ - अजमेर भी इस होड़ में शामिल - 
नयी नयी अट्टालिकाओं का उभारना द्रुत गति से चालू हुआ |
अतिक्रमण का दौर शुरू - 
हमें येन केन प्रकारेण अपने भवन खड़े करने हैं - नियम कायदे ताक पर रख कर,एक पतली गली से निकलने की कोशिश -जी हाँ हम जनता द्वारा - हम अजमेर की जनता |

क्या हुआ ??? प्रतिबिम्ब पसंद नहीं आया ??? -अरे भाई ये आईना है .....दिख तो हम ही रहे हैं न ???

आईये और विस्तार से देखते हैं हम अपने आप को - 
बदलाव का दौर - अतिक्रमण हावी - करने वाले कौन - अजमेर की जनता |
अतिक्रमी को सहारा  - लालची सरकारी कर्मचारी - ये कौन - अजमेर की जनता |
अतिक्रमी को सहारा -छुटभैये नेता - ये कौन - अजमेर की जनता |
अतिक्रमी को सहारा - जातिवाद व अल्पसंख्यकवाद का - इस में लिप्त  कौन - अजमेर की जनता |
अतिक्रमी को सहारा - उदासीनता का - उदासीन कौन - अजमेर की जनता |

कैसा लगा अपने आप को देख कर ???
पसंद नहीं आया ??? पर भाई हम ने तो अपने आप को ही देखा है न ???

आईये और समझते हैं अपने आप को ........

हम अतिक्रमण करते हैं और अपने स्वार्थ के मोह में अपने शहर का चेहरा बिगाड़ते जाते हैं.........
और यह ही नहीं अगर कोई ईमानदार अफसर अपना कार्य भली भांति संपादित करना चाहे तो रोड़े अटकाते हैं उन की राह में,उन्हें ज़लील करते हैं |
जी हाँ, हम, अजमेर की जनता | 
हम अतिक्रमण करते हैं और लालची लोगों का साथ ले उस पर पर्दा डालते हैं - जी हाँ हम अजमेर की जनता - रिश्वत लेना व देना हम ही तो करते हैं |
हम अतिक्रमण करते हैं और राजनीति अपना फायदा उठाती है - जी हाँ छुटभैये नेता अपनी रोटियाँ सेकते हैं और political mileage   लेते हैं -छुटभैये नेता कौन - जी हाँ ,हम,अजमेर की जनता |
हम अतिक्रमण करते हैं और सहारा लेते हैं जातिवाद और अल्पसंख्यकवाद  का - कौन भुनाता है इस कार्ड को,वोट बैंक को - और कौन??? अजमेर की जनता |

अजमेर का स्थान दोयम दर्जे का है हमारी निगाहों में...........

पीड़ा है हमें - किस से ??? 
परिवारवाद,भ्रष्टाचार,अविकसित अजमेर और ट्रेफिक समस्या से और इन सब का निदान हम ढूंढ़ते हैं - चाय की चुस्कियों के बीच - मुडडा क्लबों में,
सिगरेट के धुंए में- हर फ़िक्र को धुंए में उड़ाते चले गए  की तर्ज़ पे......
फेस बुक पर  - 
हर जगह एक व्यथित सा अजमेरवासी अपने अजमेर की समस्याओं का अंत ढूंढता है - उसे स्वयं ख़त्म करने की कोशिश नहीं करता है........
संगठित हो कर - अजमेर के लिए हुंकार नहीं भरता है - सड़कों पर नहीं उतरता है,हक के लिए उच्च स्वर में मांग नहीं रखता है ......
सिर्फ way out  ढूंढता है - अरे सरकारी नौकर हूँ ,हाथ बंधे हैं ,सड़कों पर नहीं उतर सकते  - गोया कि अजमेर की समस्या न हो गयी राजनीति हो गयी........
लानत है ऐसी नपुंसकता पे,ऐसे पंगुत्व पे ............

ये ही है हमारा प्रतिबिम्ब..............
क्यूँ पसंद नहीं आया ????
पर असलियत ये ही है .......
हम ऐसे ही हैं.........    

2 comments:

  1. शब्द चित्र में माध्यम से आपने तो वाकई असली चेहरा दिखा दिया, भले ही बदसूरत हो, मगर हम भ्रम में न रहें, इसकी एक सशक्त प्रस्तुति है आपका लेख

    ReplyDelete